[शिवानंद द्विवेदी]। Delhi Election 2020 : दाग देहलवी का एक मशहूर शेर है- वफा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे, तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किसका था। दिल्ली चुनावों पर यह शेर मौजूं है। यही कोई छह-सात वर्ष पुरानी बात है। वर्ष 2013 का नवंबर-दिसंबर महीना रहा होगा जब दिल्ली ही क्या, पूरे देश की जनता रोज नए-नए शब्दों से आह्लादित और आकर्षित हुआ करती थी। कानों को कितना सुकून देता था ऐसा सुनना कि ‘हम नए तरह की राजनीति करने आए हैं। हम ना गाड़ी लेंगे, ना बंगला लेंगे, अपनी पार्टी का उम्मीदवार हम मोहल्ला सभा से तय करेंगे, हर फैसला जनता से पूछकर लिया जाएगा!’ वैसे राजनीति की व्यावहारिकता में यह सब हो पाना एक तरह से दुर्लभ ही है, किंतु अतिवादी प्रवचनों से झूठ पर टिका आदर्शलोक गढ़ देने वालों के लिए यह सब बेबाकी से बोलना कठिन नहीं था।

जनलोकपाल के मुद्दे पर समझौता नहीं: जनता ने भरोसा जताया और 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में आदर्शलोक का पिटारा लेकर उतरी नई-नवेली आम आदमी पार्टी को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। यह भरोसा अरविंद केजरीवाल की तमाम बातों के साथ कैमरे पर ऑन रिकॉर्ड कही उस बात के लिए भी था जिसमें उन्होंने कहा था कि वह किसी भी दशा में कांग्रेस के समर्थन से सरकार नहीं बनाएंगे। हालांकि उन्होंने उसी चुनाव के बाद कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई। खैर सरकार बनी और जनलोकपाल विधेयक के मुद्दे पर 49 दिनों में गिर भी गई। इस्तीफा देते हुए अरिंवद केजरीवाल ने यह कहा था कि वह जनलोकपाल के मुद्दे पर समझौता नहीं कर सकते।

‘70-प्वाइंट एक्शन प्लान’ : वर्ष 2015 फरवरी में दोबारा दिल्ली में चुनाव हुए। हालांकि इस बार आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल के आदर्शवादी नारों के स्वर थोड़े मद्धम पड़ने लगे थे। मोहल्ला सभा से पूछकर चुनावों में उम्मीदवार उतारने की नीति पर कोई बात करने को भी तैयार नहीं था। जहां और जिस दल से उम्मीदवार मिले, वहां से लिया और चुनाव में उतर गए। इस बार आम आदमी पार्टी बाकी दलों की तरह अपना घोषणा-पत्र ‘70-प्वाइंट एक्शन प्लान’ के नाम से लेकर आई। उस एक्शन प्लान के 70 वादों को आज कसौटी पर देखने की जरूरत है।

स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने में विफल रही सरकार : केजरीवाल सरकार ने अपने वर्ष 2015 के एक्शन प्लान में छह बिंदुओं का वादा दिल्ली की जनता से शुद्ध पेयजल को लेकर किया था। पहला बिंदु था- वाटर एज ए राइट। इसके लिए वाटर स्टोरेज बनाने, पानी माफियाओं का तंत्र तोड़ने, हर घर तक शुद्ध पेयजल मुहैया कराने सहित कई वादे किए गए थे, किंतु केजरीवाल सरकार के साढ़े चार साल बीत जाने के बाद 2019 के अंत में आई भारतीय मानक ब्यूरो की रिपोर्ट में दिल्ली के पेयजल को कई मानकों पर विफल बताया गया।

परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करने में नहीं मिली सफलता : यातायात और परिवहन को लेकर 2015 में आम आदमी पार्टी ने पांच बिंदुओं का एक्शन प्लान दिया था। उसमें एक बिंदु में दिल्ली परिवहन निगम के बेड़े में पांच हजार नई बसों को शामिल करने का वादा किया गया था। आज जब उस वादे की पड़ताल करते हैं तो सरकार का प्रदर्शन फिसड्डी ही नजर आता है। नवंबर 2019 में मुख्यधारा की एक न्यूज वेबसाइट की एक रिपोर्ट में यह बताया गया कि 2015 में जब केजरीवाल सरकार बनी थी, तब जितने बसें चल रहीं थीं उससे भी कम बसें वर्तमान में दिल्ली में संचालित हो रही हैं। वर्तमान में सरकार के पास उपलब्ध बसों की संख्या दिल्ली की जरूरत के लिहाज से एक तिहाई से भी कम है। सवाल है कि यातायात को लेकर यह सरकार पांच साल सोई क्यों रही? सवाल यह भी है कि क्या अपनी इस नाकामी पर पर्देदारी के लिए सरकार ने चुनावी मौसम में महिलाओं के लिए ‘फ्री बस सेवा’ की शुरुआत कर दी? वहीं ऑटोरिक्शा वालों के लिए केजरीवाल द्वारा किए गए वादों पर नीतिगत स्तर पर कुछ किया गया हो, ऐसा नहीं नजर आता।

स्वास्थ्य सेवाओं का नहीं हुआ व्यापक विस्तार : वर्ष 2015 में आम आदमी पार्टी के ‘70 प्वाइंट एक्शन प्लान’ में वादा था कि उनकी सरकार आने पर 900 नए प्राथमिक उपचार केंद्र और 30,000 बेड का विस्तार किया जाएगा, किंतु पांच साल में एक भी स्तरीय प्राथमिक उपचार केंद्र बनाने का काम दिल्ली सरकार द्वारा नहीं किया गया। साथ ही 30,000 बेड विस्तार का वादा करने वाली सरकार ने 400 से भी कम बेड का विस्तार अस्पतालों में किया। मोहल्ला क्लीनिक में बुनियादी व्यवस्थाओं का अभाव किसी से छिपा नहीं है। प्रति हजार व्यक्तियों पर पांच बेड की उपलब्धता के वादे की स्थिति का अंदाजा लगाने पर आंकड़े सिफर नजर आते हैं। दवाओं की उपलब्धता के मानकों पर भी इस सरकार के कार्य निराशाजनक ही नजर आते हैं। आधारभूत संरचना के विषय- मसलन सड़क निर्माण, मुफ्त वाइ-फाइ की सुविधा, सीसीटीवी कैमरे, यमुना से जुड़े प्रोजेक्ट, दिल्ली के ग्रामीण इलाकों का विकास, भूमि-सुधार जैसे वादों पर केजरीवाल सरकार ने पांच वर्षों तक चुप्पी ही साधे रही।

‘आप’ के एक्शन प्लान में शुरू के तीन वादे थे- जनलोकपाल बिल, स्वराज बिल और दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा। ये तीनों ही वादे दिल्ली सरकार के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र से बाहर के थे। सवाल है कि संविधान सम्मत व्यवस्था में क्या कोई राजनीतिक दल सिर्फ वोट के लिए ऐसा वादा कर सकता है जो उसके अधिकार क्षेत्र में ना हो? दरअसल वादों के पिटारे खोलने में कंजूसी नहीं करने वाली आम आदमी पार्टी अब जब एक बार फिर चुनाव में है तो इन वादों पर बोलने में कंजूसी दिखा रही है। अब जब सवाल खड़े हो रहे हैं तो इन सवालों का जवाब तो उन्हें देना ही चाहिए।

[सीनियर रिसर्च फेलो, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन]

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