[नौशाबा परवीन]। Delhi Election 2020: आगामी आठ फरवरी को होने जा रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव के संदर्भ में एक तथ्य सामने आया है कि करीब 20 फीसद उम्मीदवार आपराधिक छवि के हैं। यह तथ्य एडीआर यानी एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष इन प्रत्याशियों द्वारा दाखिल किए गए शपथपत्रों की पड़ताल से सामने आया है। एडीआर का यह भी कहना है कि पिछले एक दशक के दौरान इस चुनाव में करोड़पतियों, उच्च शिक्षितों, महिलाओं व बुजुर्ग प्रत्याशियों का हिस्सा भी सबसे ज्यादा है।

वर्ष 2008 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में दागी प्रत्याशियों का प्रतिशत 14.1 था और तब से हर चुनाव में इसमें वृद्धि देखने को मिल रही है। वर्ष 2013 में यह प्रतिशत बढ़कर 16.2 हुआ जो 2015 में 16.9 प्रतिशत हो गया और 2020 में यह 19.8 प्रतिशत तक पहुंच गया है। हालांकि सभी प्रत्याशियों पर गंभीर अपराध दर्ज नहीं हैं, लेकिन गंभीर अपराध के आरोपी प्रत्याशियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है जो वर्ष 2008 में 4.1 प्रतिशत था, वर्ष 2013 में 11.7 प्रतिशत, वर्ष 2015 में 11 प्रतिशत और 2020 में 15.5 प्रतिशत हो गया है। वैसे यह राजनीति के अपराधीकरण के राष्ट्रीय ट्रेंड से कुछ अलग नहीं है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में दागी उम्मीदवारों की हिस्सेदारी दशक में सबसे ज्यादा थी, इसलिए वर्तमान लोकसभा में भी 539 सांसदों में से 233 ऐसे हैं जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि है यानी इन्होंने अपने ऊपर अपराधिक मामले दर्ज होने घोषित किए हैं।

यह सब इसके बावजूद हो रहा है कि इस अवधि के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के उद्देश्य से अनेक सराहनीय प्रयास किए हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि उन्हें लागू नहीं किया गया और नतीजा सिफर रहा, जैसा कि दागी प्रत्याशियों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट है। सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में जो कुछ प्रमुख आदेश इस संदर्भ में दिए, वे इस प्रकार हैं कि यदि किसी जन-प्रतिनिधि को अदालत से दो वर्ष या उससे अधिक की सजा हो जाए तो तुरंत प्रभाव से उसकी सदन सदस्यता समाप्त हो जाएगी।

इसके साथ ही मार्च 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि राजनीतिक नेताओं के खिलाफ जो विभिन्न अदालतों में आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं, उनका निपटारा एक वर्ष के भीतर हो जाना चाहिए। लेकिन इस पर अमल न हो सका। हालांकि इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने सियासत को अपराधियों से मुक्त करने के लिए अपने प्रयासों को नहीं छोड़ा है। उसके इन प्रयासों में एक यह भी शामिल है कि नवंबर 2017 में उसने ना केवल यह जानकारी तलब की थी कि तब यानी 2014 से 2017 तक नेताओं के विरुद्ध कितने नए मामले दायर किए गए हैं और अदालतों में उनकी स्थिति यानी स्टेटस क्या है, बल्कि केंद्र सरकार से यह भी कहा कि वह नेताओं पर चल रहे आपराधिक मुकदमों को जल्द निपटाने के लिए विशेष अदालतें गठित करने की योजना बनाए। यह भी नहीं हुआ।

स्थिति यह है कि अब जो दिल्ली विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं, उनमें हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, दुष्कर्म व महिलाओं के विरुद्ध अन्य अपराधों के आरोपी विधायक बनने के इच्छुक हैं। इस वर्ष 32 प्रत्याशी ऐसे हैं जिन पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध के मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें एक दुष्कर्म का भी है। यही नहीं, चार प्रत्याशियों के विरुद्ध हत्या के प्रयास के मामले भी हैं। आठ उम्मीदवारों के खिलाफ नफरत फैलाने व भड़काऊ भाषण देने के मामले दर्ज हैं।

लगभग 20 प्रतिशत दागी प्रत्याशियों का आंकड़ा इस तथ्य को ओझल कर देता है कि अधिकतर दागी उम्मीदवार बड़ी पार्टियों से संबंधित हैं, जैसे 60 प्रतिशत आम आदमी पार्टी से, 39 प्रतिशत भाजपा से और 27 प्रतिशत कांग्रेस से। अरविंद केजरीवाल पर भी आपराधिक मामले दर्ज हैं। इस संबंध में आम आदमी पार्टी का कहना है कि केजरीवाल सहित उसके प्रत्याशियों के विरुद्ध जो मामले दर्ज हैं वे केंद्र सरकार की राजनीतिक साजिश के कारण हैं। ‘आप’ की दिल्ली इकाई के संयोजक गोपाल राय का कहना है, ‘यह बात दिल्ली की जनता से छुपी नहीं है कि वर्ष 2015 में हमारे सत्ता में आने के साथ ही केंद्र हमारे पीछे पड़ा हुआ है। उसने केजरीवाल व अन्य मंत्रियों जैसे सत्येंद्र जैन व कैलाश गहलोत और अनेक ‘आप’ विधायकों के खिलाफ झूठे मुकदमे कायम किए हैं। केजरीवाल के घर पर छापा मारा, पर हर प्रयास नाकाम रहा, क्योंकि अदालत में कोई केस न टिक सका। ’

दिल्ली विधानसभा के लिए जो पिछले चार चुनाव हुए हैं, उनकी तुलना में इस बार सबसे ज्यादा करोड़पति भी चुनाव लड़ रहे हैं। कुल प्रत्याशियों में से 36 प्रतिशत करोड़पति हैं। इनमें तीन बड़ी पार्टियों का प्रतिशत सबसे ज्यादा है। कांग्रेस 83 प्रतिशत, आम आदमी पार्टी 73 प्रतिशत और भाजपा 70 प्रतिशत। सबसे रईस प्रत्याशी हैं ‘आप’ के धर्मपाल लाकड़ा जो मुंडका से चुनाव लड़ रहे हैं, उनके पास 292 करोड़ रुपये मूल्य के एसेट्स हैं। लाकड़ा के बाद जो दूसरे नंबर के रईस प्रत्याशी हैं उनके एसेट्स इससे लगभग चार गुणा कम हैं। आरके पुरम से ‘आप’ की उम्मीदवार प्रमिला टोकस के पास 81 करोड़ रुपये मूल्य के एसेट्स हैं, लेकिन इस बार 2008 के बाद से महिला प्रत्याशी (11.8 प्रतिशत) सबसे ज्यादा हैं। कांग्रेस की 15 प्रतिशत प्रत्याशी महिला हैं, जबकि ‘आप’ की 13 प्रतिशत और भाजपा की नौ प्रतिशत।

इस बार युवा प्रत्याशी यानी 30 वर्ष से कम उम्र के मात्र 8.5 प्रतिशत हैं। 27.5 प्रतिशत 31 से 40 वर्ष आयु वर्ग में हैं और शेष 41 वर्ष से ऊपर के हैं। दूसरे शब्दों में बुजुर्ग प्रत्याशी भी सबसे ज्यादा इसी बार हैं। एक अच्छी बात इस बार यह है कि उच्च शिक्षित प्रत्याशियों का हिस्सा बढ़ा है। वर्ष 2008 में जहां स्नातक प्रत्याशियों का प्रतिशत 32 था, वह अब बढ़कर लगभग 45 प्रतिशत हो गया है, लेकिन दागी व करोड़पति प्रत्याशियों में निरंतर हो रहे इजाफे से यही प्रतीत होता है कि डंडे व पैसे को अब भी चुनावों से अलग नहीं किया जा सका है जिससे शरीफ व गरीब के लिए विधायक बनना अभी सपना ही है। - ईआरसी

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]

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