संजय श्रीवास्तव। भारत में नक्सल संकट आतंक का रूप ले चुका है। इसलिए इसे अब गंभीरता से लेना होगा। लेकिन इनसे निपटें कैसें? बेशक हमारे सुरक्षाकर्मी बहादुर और बलिदानी हैं, पर इनसे निपटने में हमें रोबोटिक्स का सहारा लेना चाहिए। रोबोटिक वेपनरी सिस्टम ही इनसे निपटने का सही तरीका है। वही इनके साथ सटीक और मारक मुकाबला कर सकते हैं। दुनिया के कई देश अपने यहां आतंक से ऐसे ही निपट रहे हैं।

आज दुनिया के 44 देशों के पास रोबोटिक वेपनरी सिस्टम है। इस मामले में हम रूस अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन, इजराइल हमकदम हैं। ढाई साल पहले हैदराबाद के एच बोटस रोबोटिक्स ने पांच फुट सात इंच के 43 किलो वजनी जिस स्मार्ट पुलिस रोबोट को लांच किया था, वह तो महज शिकायत दर्ज करने, संदिग्धों की निशानदेही, ऑडियो वीडियो की रिकॉìडग और ऐसे कुछ सामान्य कार्य कर सकता था, लेकिन अब यह काफी विकसित हो चुका है। अब ऐसे रोबोट आसपास के परिवेश को भांपने, आधा दर्जन से ज्यादा भाषाएं बूझने वाले हैं। बस्तर में कई स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल और सुरक्षाकíमयों का इससे परिचित न होना भी एक समस्या है। ये रोबोट कृत्रिम बुद्धिमत्ता, एलईडी लाइट्स, सक्षम सेंसर, बढ़िया कैमरे और थर्मल इमेजिंग की सुविधा से लैस हैं। सíवलांस, मैपिंग व डाटा एनॉलिसिस के लिए भी बेहतर हैं। यह दावा किया गया है कि सीधी मुठभेड़ों में इनका इस्तेमाल बेहद कारगर होने वाला है। दुर्गम क्षेत्रों में तैनाती के लिए ये बहुत मुफीद होंगे। डीआरडीओ का दावा था कि चूंकि ये रोबोट राडार और सेंसर संपन्न हैं, सो रात की लड़ाई में सुरक्षा बलों से बेहतर साबित होंगे। पर किसी ऐसे ऑपरेशन में इनका यह कौशल आजमाया नहीं गया।

सबसे पहला ऐसा ह्यूमनाइड रोबोट दुबई में बना था, यह दूसरा है। मगर एक मामले में यह अव्वल है कि दुबई में बना ह्यूमनाइड रोबोट फ्रांस में तैयार किया गया था, जबकि अपना रोबोट पूरी तरह से भारतीय संसाधनों और वैज्ञानिकों द्वारा निíमत है। अपना रोबोट कुछ ज्यादा ही उन्नत है। सूचना प्रौद्योगिकी, कंप्यूटर विज्ञानी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ यह पूर्णतया समायोजन रखता है। कुल मिलाकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता और कंप्यूटराइजेशन तथा रोबोटिक्स के मेल से अति उन्नत ‘रोबोकॉप’ हम आसानी से बना सकते हैं और सीमाओं, दुर्गम नक्सल क्षेत्रों तथा आतंक आशंकित इलाकों में तैनात कर सकते हैं। जंगलों, पहाड़ों या जहां नागरिक चपेट में न आते हों, वहां होने वाली मुठभेड़ों में इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या व्यवस्था इसके लिए तैयार होगी? शायद नहीं। भारत में भी यह तर्क दिया गया कि रोबोट के पास कभी इतनी बुद्धिमत्ता नहीं हो सकती कि वह युद्ध या मुठभेड़ के साथ जुड़े सामरिक और भू-राजनीतिक जोखिमों का अंदाजा लगा कर उसके हिसाब से निर्णय कर सके।

बेशक इस तरह के मशीनी सुरक्षाकर्मी की तैनाती के पीछे कई तरह की तकनीक और नैतिक सवाल हैं। मशीन को खुद फैसले लेने की ताकत देना कि वह अपने लक्ष्य खुद तय करे और उन्हें भेद सके, ‘ऑटोनोमस’ हो, इंसान की मदद या निर्देश की जरूरत न रहे तो मशीन बेलगाम हो जाएगी, तकनीक गलत फैसले ले सकती है, वह हमेशा कामयाबी के साथ सही लक्ष्य और बचाव में अंतर नहीं कर पाएगी। वह दुश्मनों के साथ बेकसूर नागरिकों को भी निशाना बना सकती है। परंतु मौजूदा वक्त में इस्तेमाल होने वाले स्वायत्त हथियारों का दायरा भी खासा बड़ा है। पैटिऑट मिसाइल से लेकर टíमनेटर तक। फिर इन्हीं पर रोक क्यों? हम इन्हें उन इलाकों में तो इस्तेमाल में ला ही सकते हैं जहां आबादी बहुत कम हो और आमजन के शिकार हो जाने की आशंका नहीं हो। (ईआरसी)

[विज्ञान के जानकार]