[रहीस सिंह]। पिछले दिनों जोको विडोडो को विश्व के तीसरे बड़े लोकतंत्र यानी इंडोनेशिया का राष्ट्रपति फिर से चुना गया। उन्होंने राष्ट्रपति चुनावों में लगातार दूसरी बार जीत हासिल की है। इंडोनेशियाई निर्वाचन आयोग के अनुसार ‘इंडोनेशियन डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ स्ट्रगल’ पार्टी के जोको विडोडो ने अपने प्रतिद्वंद्वी एवं सेवानिवृत्त जनरल प्राबोवो सुबियांतो को पराजित किया। साथ ही उनके उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार मारूफ अमीन ने सांडियागा यूनो के खिलाफ विजय हासिल की। हालांकि, अनधिकृत आंकड़ों में विडोडो की जीत का पूर्वानुमान व्यक्त किया गया था, लेकिन सुबियांतो ने मतदान में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए विडोडो की जीत को चुनौती देने का संकल्प लिया है। फलत: इंडोनेशिया में तनाव की स्थिति है। यहां जो सबसे अहम बात है, वह यह कि वहां इस्लामिक स्टेट यानी आइएस की सक्रियता बढ़ी है। ऐसे में देखना यह है कि जोको विडोडो इन आंतरिक चुनौतियों से कैसे निपटेंगे? दूसरा प्रश्न यह भी है कि विडोडो पूर्व की भांति भारत के साथ निर्णायक साझेदारी का निर्माण कर सकेंगे या नहीं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी अच्छी मित्रता है जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली बार जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंडोनेशिया की यात्रा पर गए थे तो उन्होंने बताया था कि उन्होंने अपने पोते का नाम प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर श्रीनरेंद्र रखा है। इसलिए इस बात की संभावनाएं अधिक हैं कि विडोडो इंडोनेशिया को वह दिशा देंगे जो भारत के अधिक अनुकूल होगी। हालांकि नई दिल्ली जकार्ता के संबंधों को लंबे समय से पाला पोसा गया है ताकि इस क्षेत्र में दोनों देश नई ऊंचाइयों को पाने में सफल हो सकें। इस दृष्टि से तो भारत और इंडोनेशिया को इन संबंधों पर केवल सीमेंटिंग ही करनी है। ध्यान रहे कि इंडोनेशिया की भारत से यह निकटता संस्कृति, परंपरा और इतिहास के संबंधों को दर्शाती है। इसलिए इस बात की संभावना अधिक बनती है कि भारत के इंडोनेशिया से संबंध और मधुर होंगे।

धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम देश

दुनिया की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी वाला देश इंडोनेशिया उन चुनिंदा मुस्लिम बहुल देशों में शामिल है, जो धर्मनिरपेक्ष बने हुए हैं। भारत से इनकी निकटता और अभिन्नता किस प्रकार की है इस संदर्भ में इंडोनेशिया के पूर्व राष्ट्रपति सुकर्णो के शब्दों को याद करने की जरूरत है। उन्होंने कहा था- ‘हमारी नसों में भारतीय पूर्वजों का खून बहता है और हमारी संस्कृति भारत से लगातार प्रभावित रही है, दो हजार वर्ष पहले, आपके देश (यानी भारत) से लोग भाईचारे की भावना से जावाद्वीप और सुवर्ण पहुंचे, उन्होंने श्रीविजय, माताराम और मजापहित जैसे शक्तिशाली राज्यों की स्थापना की पहल की और उसके बाद हमने उन देवताओं की उपासना करना सीखा, जिनकी उपासना आप लोग (यानी भारतीय) अभी तक करते हैं। हमने ऐसी संस्कृति विकसित की जो भारत से बहुत मिलती जुलती है, लेकिन बाद में हमने इस्लाम को अपना लिया, किंतु हमारा धर्म भी हमारे पास उन लोगों के जरिये आया जो सिंधु नदी के दोनों किनारों से यहां पहुंचे।’ सुकर्णों के इन शब्दों को कुछ समय पूर्व नीमराणा फोर्ट पैलेस में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रैटेजिक स्टडीज (लंदन) द्वारा ‘रीथिंकिंग इंडियाज रोल इन वल्र्ड’ विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में इंडोनेशियाइ विद्वान एस द्विजवांदोनों ने जब दोहराया था तो लगा कि इंडोनेशिया वास्तव में भारत के इतना करीब है कि एक भारत अभी भी इंडोनेशिया में बसता है।

ऐतिहासिक संबंध

इंडोनेशिया और आधुनिक भारत के बीच संबंधों की शुरुआत आजादी से कुछ समय पहले ही हो गई थी, मार्च-अप्रैल 1947 में जब भारत में नेहरू द्वारा इंडोनेशिया की समस्या पर विचार-विमर्श करने के लिए नई दिल्ली में पहले एशियाई संबंध सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन में संपूर्ण एशिया के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नेता एकत्रित हुए थे। यह एशियाई एकता के निर्माण की दिशा में पहला कदम था। वर्ष 1955 के बांडुंग सम्मेलन से इंडोनेशिया को एशियाई या एफ्रो-एशियाई राजनीति में एक नया मुकाम हासिल हो गया था जिसका श्रेय भारत को ही जाता है। यहीं से चले संबंध आज संस्कृति, रक्षा, अर्थव्यवस्था आदि के क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रकट होते हैं। सामान्यतया जब हम द्विपक्षीय संबंधों की बात करते हैं तो व्यापार और अर्थव्यवस्था को केंद्र में रखते हैं। लेकिन मेरी समझ से हमें इंडोनेशिया के साथ संबंधों की समीक्षा करते समय संस्कृति और सामरिकता को केंद्र में रखना चाहिए। ध्यान रहे कि इंडोनेशिया भारत का समुद्री पड़ोसी है। सुमात्रा द्वीप का सबसे पश्चिमी छोर अर्थात बंदर असेह भारत के अंडमान निकोबार द्वीप समूह के सबसे पूर्वी छोर से मुश्किल से 90 नॉटिकल मील दूर है। दोनों ही देश इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन पर घनिष्ठ सहयोग के लिए कदम उठा रहे हैं।

भारत से रणनीतिक साझेदारी

कुछ समय पहले हिंद महासागर से जुड़े मुद्दों पर त्रिपक्षीय ट्रैक-2 का आयोजन किया गया था जिसमें भारत और इंडोनेशिया के अतिरिक्त ऑस्ट्रेलिया भी शामिल हुआ था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो के बीच हुई जकार्ता शिखर बैठक के बाद दोनों देशों ने समग्र रणनीतिक साझेदारी के लिए अपने संबंधों को और मजबूती प्रदान करने पर सहमति जताई थी। दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग समेत कुल 15 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने सागर (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन रीजन) विजन की चर्चा करते हुए भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के विकास के लिए भारत की प्रतिबद्धता को जाहिर किया था। बैठक के दौरान दोनों नेताओं ने समुद्र, अर्थव्यवस्था और सामाजिक- सांस्कृतिक क्षेत्र में सहयोग की संभावनाओं के साथ क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी बातचीत की थी और मोदी ने कहा था कि भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ और सागर दृष्टिकोण राष्ट्रपति विडोडो की ‘मैरीटाइम फल्क्रम नीति’ से मेल खाता है।

जहां तक विडोडो की मैरीटाइम फल्क्रम नीति का प्रश्न है तो इसके पांच प्रमुख स्तंभ हैं- मैरीटाइम कल्चर, मैरीटाइम इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड कनेक्टिविटी, प्रोटेक्शन ऑफ मैरीटाइम रिसोर्सेज, मैरीटाइम डिप्लोमेसी और मैरीटाइम डिफेंस। विडोडो सरकार ने इस नीति की घोषणा 2014 की ‘नै पी तॉव’ (म्यांमार) ईस्ट एशिया समिट से की थी, लेकिन इसे लागू 2017 में किया गया। यह नीति इंटर-आइलैंड कनेक्टिविटी को इन्फ्रास्ट्रक्चर के माध्यम से मजबूत बनाती है और मैरीटाइम रिसोर्सेज का संरक्षण करती है। इसका उद्देश्य है इंडोनेशिया को विभिन्न क्षेत्रीय पहलों के लिए सेतु के रूप में निर्मित करना- विशेषकर बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव, इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन, रीजनल कॉम्प्रीहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप और कॉम्प्रीहेंसिव एंड प्रोग्रेसिव एग्रीमेंट फॉर ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप। इस नीति का एक अन्य उद्देश्य है कि वैश्विक जल मार्ग में इंडोनेशिया की स्ट्रैटेजिक लोकेशन का बेहतर इस्तेमाल करना। इस दृष्टि से ग्लोबल मैरीटाइम फल्क्रम नीति एक बेहतर रक्षा क्षमता की प्रतीक है जिसका उद्देश्य इंडोनेशिया को शक्तिशाली मैरीटाइम पावर बनाना है।

चीन- इंडोनेशिया के बीच टकराव की स्थिति

हालांकि अभी तक यह माना जा रहा है कि इंडोनेशिया में समुद्री राष्ट्रवाद (मैरीटाइम नेशनलिज्म) का दावा नहीं किया जा रहा है और न ही ऐसी संभावनाएं दिख रही हैं। लेकिन यह इंडोनेशिया को मजबूती प्रदान करने का एक बेहतर माध्यम हो सकती है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार, इंडोनेशिया का रक्षा खर्च उसके जीडीपी के एक प्रतिशत से भी कम है। हालांकि वर्ष 2017 में इसमें आकस्मिक वृद्धि देखी गई थी, लेकिन इसके बाद से इसमें ठहराव है। यह भी संभव है कि इंडोनेशिया की यह नीति चीन को रोकने के उद्देश्य से निर्मित की गई हो, क्योंकि नातुना समुद्र में चीन और इंडोनेशिया के बीच में टकराव की स्थिति है। चूंकि चीन की स्ट्रिंग ऑफ पल्र्स नीति और न्यू मैरीटाइम सिल्क रूट भारत के लिए गंभीर चुनौती उत्पन्न कर रहे हैं, इसलिए इस मुकाम पर आकर भारत और इंडोनेशिया के हित समान हो सकते हैं और दोनों चीन के विरुद्ध साझी रणनीति बना सकते हैं। लेकिन चिंता की बात यह है कि इंडोनेशिया चीन की बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का समर्थन करता है और भारत इसका विरोध कर रहा है। फिर भी भारत रणनीतिक संबंधों को लेकर संवेदनशीलता के साथ आगे बढ़ रहा है।

भारत-इंडोनेशिया द्विपक्षीय संबंध

उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में तत्कालीन रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री रियामिजार्ड रियाकुडू के बीच हुई बैठक में भारत और इंडोनेशिया ने अपने द्विपक्षीय संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी के साथ आगे ले जाने का निर्णय लिया था। इसमें भारत ने दोनों देशों के बीच नजदीकी राजनीतिक संवाद, आर्थिक व व्यापारिक संबंधों, सांस्कृतिक व नागरिक जुड़ावों की परंपरा की बात करते हुए भारत-इंडोनेशिया के बीच समुद्री पड़ोसियों के तौर पर पारस्परिक रूप से लाभदायक और लगातार बने रहने वाले संबंधों पर जोर दिया। दोनों ओर से सेनाओं के बीच पारस्परिक संबंधों पर संतोष व्यक्त किया गया था और द्विपक्षीय नौसेना एवं वायुसेना अभ्यासों को प्रोत्साहित करने पर भी सहमति व्यक्त की गई थी। इन संबंधों में दोनों ओर से सूचना के बेहतर आदान-प्रदान और विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने संबंधी विषय भी शामिल किए गए। भारतीय नौसेना एवं तटरक्षक दल और इंडोनेशियाई नौसेना के बीच भी सहयोग बढ़ा है। हम इंडोनेशिया को रक्षा उपकरणों की आपूर्ति के साथ ही वहां उनके संयुक्त उत्पादन के लिए शोध एवं विकास की संभावनाएं तलाश सकते हैं। भारत सुमात्रा के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बंदरगाह में भी निवेश कर सकता है। इसे आसियान इन्फ्रास्ट्रक्चर योजना के तहत मूर्त रूप दिया जा सकता है।

मजबूती की ओर कारोबारी रिश्ते

बहरहाल मजबूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार पर दोनों देश अपने परंपरागत मूल्यों के साथ-साथ रक्षा, शिक्षा, ऊर्जा, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यटन और कला के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कदम उठा रहे हैं। दोनों देश अपने द्विपक्षीय व्यापार को 2025 तक 50 अरब डॉलर पर ले जाने के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं। लेकिन फिर भी चूंकि चीन और उसके महत्वाकांक्षी बीआरआइ को लेकर इंडोनेशिया का नजरिया अलग है। वह दक्षिण चीन सागर को लेकर भी मुखर नहीं है, बल्कि चीन न्यू मैरीटाइम सिल्क रूट के जरिये मलक्का और ग्वादर (पाकिस्तान) को कनेक्ट करना चाह रहा है। दूसरी तरफ वह इंडिया-प्रशांत क्षेत्र में भारत की चार देशों को लेकर बन रहे क्वैड (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा निर्मित रणनीतिक चतुर्भुज) को लेकर कुछ सशंकित हो सकता है। इन सबके बावजूद वह सामुद्रिक सुरक्षा को संतुलन देने में भारत के महत्व को भी बखूबी समझता है। इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन में वह भारत का पूरा समर्थन और इस्लामिक देशों के संगठन में भारत विरोधी अभियान का विरोध करता है। इन्हीं संवेदनशील आयामों को समझते हुए दोनों देशों को आगे बढ़ने की जरूरत है।

[विदेश मामलों के जानकार]

लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप