संजय मिश्र। मध्य प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर विकराल रूप धारण कर चुकी है। संक्रमित मरीजों की संख्या में प्रतिदिन असामान्य रूप से बढ़ोतरी हो रही है। कोरोना के नए म्युटेंट ने ऐसा रूप धारण किया है कि अंदाजा लगाना मुश्किल है कि कौन कितने खतरे में है। जब तक लोग समझें तब तक वह फेफडे़ को काफी नुकसान पहुंचा चुका होता है। गंभीर मरीजों की तादाद बढ़ने से समय से अस्पतालों में बेड मिलना मुश्किल हो गया है। जिन्हें बेड मिल जा रहा है उनकी सांसों के लिए समय से आक्सीजन नहीं मिल पा रही है। शायद ही पहले कभी ऐसा हुआ हो कि मरीज को अस्पताल में छोड़कर स्वजन आक्सीजन की तलाश में भटक रहे हों। सांस चाहिए तो आक्सीजन का इंतजाम करना ही पड़ेगा। इसके लिए चाहे जो कीमत अदा करनी पड़े।

यद्यपि सरकार ने आक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित कराने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन जिन राज्यों से इसकी आपूर्ति होनी है वहां भी कम मारामारी नहीं है। जितनी आपूर्ति मिलती है अगले दिन उससे अधिक की मांग बढ़ जाती है। मध्य प्रदेश के अंदर आक्सीजन बनाने के रिसोर्स लगभग सीमित हैं। वर्षों से इस तरफ किसी का ध्यान ही नहीं था। न इतनी मांग कभी हुई और न सरकारों ने इस पर ध्यान दिया। पिछले वर्ष कोरोना काल में जब आक्सीजन की किल्लत हुई थी तब सरकार ने जैसे-तैसे दूसरे राज्यों से मंगाकर जरूरत पूरी कर दी थी। तब तय किया गया था कि दूसरे राज्यों पर निर्भरता कम करने के लिए आक्सीजन के प्लांट लगाने पर जोर दिया जाएगा। कई कंपनियों को इसके लिए रजामंदी दी गई, लेकिन बीच में कोरोना के तेवर ढीले पड़ते ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया। यही वजह है कि मध्य प्रदेश में अपेक्षा के अनुरूप आक्सीजन प्लांट नहीं लग सके।

अब जबकि आक्सीजन के लिए हाहाकार मची है तो सरकार प्लांट लगवाने एवं दूसरे राज्यों से आपूर्ति बढ़ाने पर जोर लगा रही है। केंद्र सरकार की मदद से आक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाने के साथ आक्सीजन प्लांट शुरू करने के उपाय तेज किए गए हैं, लेकिन इस बार मामला कुछ ज्यादा ही संवेदनशील है। मौजूदा परिस्थितियां बताती हैं कि प्रशासनिक तंत्र ने कोरोना की पिछली लहर से सबक नहीं ली। यही कारण है कि दूसरी लहर में जब संकट बढ़ा तो पूरी व्यवस्था की सांसें ही इंतजाम करने में फूलने लगी हैं।

मध्य प्रदेश में कोरोना का पहला मरीज 20 मार्च 2020 को जबलपुर में मिला था, जबकि भोपाल में पहला मामला 22 मार्च 2020 को सामने आया था। तब से अब तक एक वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन व्यवस्थागत कमजोरियां दूर नहीं हो सकीं। पिछली बार भी गंभीर मरीजों को आक्सीजन की जरूरत पड़ी थी। यह वह समय था, जब आने वाले संकट के लिए तैयारी की जा सकती थी। दूसरी लहर आने पर भी आक्सीजन की उपलब्धता को लेकर अधिकारियों के शुरुआती दावे भ्रमित करने वाले रहे हैं। भोपाल को उदाहरण के तौर पर देखें तो यहां आक्सीजन की मांग प्रतिदिन 110 टन की है, जबकि उपलब्धता 80 टन ही है। फिलहाल ऐसी ही स्थिति पूरे प्रदेश की है। अच्छी बात यह है कि देर से ही सही आक्सीजन की कमी से पैदा समस्या का समाधान ढूंढने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं।

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुद मोर्चा संभाल लिया है। वह दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों से सीधा संवाद भी बना रहे हैं। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए ही छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र से आक्सीजन की आर्पूित सुनिश्चित की गई। साथ ही जिलों में आक्सीजन प्लांट लगाने की कवायद भी शुरू कर दी गई है। मुख्यमंत्री राहत कोष से निर्माण एजेंसी सीएसआइआर गैसकॉन द्वारा भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, रीवा और शहडोल में प्लांट बनवाया जा रहा है। राज्य सरकार की मदद से एयरोऑक्स द्वारा सीहोर, विदिशा, गुना, सतना, रायसेन, बालाघाट, खरगोन, कटनी, बड़वानी, नरसिंहपुर, बैतूल, राजगढ़ में प्लांट शुरू करने पर तेजी से काम चल रहा है। उम्मीद है कि 15 मई तक इनका काम पूर्ण होगा और 22 मई तक उत्पादन शुरू किया जाएगा। इनके अलावा, डीआरडीओ ट्राइडेंट द्वारा बालाघाट, धार, दमोह, जबलपुर, बड़वानी, शहडोल, सतना और मंदसौर में प्लांट तैयार किए जा रहे हैं। इन प्लांटों की स्थापना से निश्चित रूप से आक्सीजन के मामले में मध्य प्रदेश की दूसरे राज्यों पर निर्भरता कम होगी।

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल]