[ डॉ. सूर्यकांत ]: जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज के अनुसार भारत में लगभग 27 करोड़ लोग तंबाकू का सेवन करते हैैं। भारत में तंबाकू के कारण प्रतिवर्ष लगभग 12 लाख लोगों की मृत्यु होती है। यहां तंबाकू सेवन प्रारंभ करने की औसत आयु 18.7 वर्ष है। महिलाओं की तुलना में पुरुष कम उम्र में तंबाकू का सेवन करना प्रारंभ कर देते हैं। तंबाकू के कारण 25 तरह की बीमारियां तथा लगभग 40 तरह के कैंसर हो सकते हैं, जिसमें प्रमुख हैं-मुंह का कैंसर, गले का कैंसर, फेफडे़ का कैंसर, प्रोस्टेट का कैंसर, पेट का कैंसर, ब्रेन ट्यूमर आदि। हमारे देश में लगभग 12 करोड़ लोग धूम्रपान करते हैं। विकसित देशों में धूम्रपान के विषय में जागरूकता के परिणामस्वरूप धूम्रपान का औसत गिरता जा रहा है, लेकिन गरीब और विकासशील देशों में अभी भी धूम्रपान के संबंध में चेतना की कमी है।

इस वर्ष के विश्व तंबाकू निषेध दिवस की थीम तंबाकू और फेफडे़ का स्वास्थ्य है। आज अधिकांश बीमारियों के पीछे तंबाकू की लत एक बड़ी वजह है। तंबाकू से निर्मित उत्पादों के सेवन से न सिर्फ व्यक्तिगत, शारीरिक एवं बौद्धिक ह्रास हो रहा है, अपितु समाज पर भी इसके दूरगामी सामाजिक, आर्थिक दुष्प्रभाव दिखाई देने लगे हैं।

गौरतलब है कि 16वीं शताब्दी में अकबर के शासन में पुर्तगाली पहली बार तंबाकू लेकर भारत आए थे। बाद में जहांगीर के शासनकाल में इसके उपभोग को नियंत्रित करने के लिए इस पर भारी कर लगाया गया, पर सदियां बीत गईं और तंबाकू व्यापार एवं उपभोग पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पाया। तंबाकू के धुएं से 500 हानिकारक गैसें एवं 7000 अन्य रासायनिक पदार्थ निकलते हैैं, जिनमें निकोटीन और टार प्रमुख हैं। शोध में 70 रासायनिक पदार्थ कैंसरकारी पाए गए हैं।

सिगरेट की तुलना में बीड़ी ज्यादा नुकसानदायक होती है। बीड़ी में निकोटीन की मात्रा कम होने के कारण निकोटीन की लत के शिकार लोगों को इसकी आवश्यकता बार-बार पड़ती है। हमारे देश में महिलाओं की अपेक्षा पुरुष अधिक धूम्रपान करते हैं। जब कोई धूम्रपान करता है तो बीड़ी या सिगरेट का 30 प्रतिशत धुआं उस पीने वाले के फेफडे़ में जाता है एवं 70 प्रतिशत आसपास के वातावरण में रह जाता है, जिससे परिवार के लोग और उसके मित्र प्रभावित होते हैं, जिसको हम परोक्ष धूम्रपान कहते हैं। विश्व भर में होने वाली मृत्यु में 50 प्रतिशत मौतों का कारण धूम्रपान है।

धूम्रपान के परिणामस्वरूप रक्त का संचरण प्रभावित हो जाता है, ब्लड प्रेशर की समस्या हो जाती है, सांस फूलने लगती है और नित्य क्रियाओं में भी अवरोध आने लगता हैै। धूम्रपान से होने वाली प्रमुख बीमारियां हैं-ब्रांकाइटिस, एसिडिटी, टीबी, ब्लडप्रेशर, हार्ट अटैक, फॉलिज, नपुंसकता, माइग्रेन, सिरदर्द, बालों का जल्दी सफेद होना आदि। यदि महिलाएं गर्भावस्था के दौरान परोक्ष या अपरोक्ष रूप से धूम्रपान करती हैं तो उनके होने वाले नवजात शिशु का वजन कम होना, गर्भाशय में ही या पैदा होने के बाद मृत्यु हो जाना और पैदाइशी बीमारियां होने आदि का खतरा बना रहता है।

बीड़ी या सिगरेट के धुएं में मौजूद निकोटीन जैसे विषैले तत्व हमारे मस्तिष्क में लगभग 10 से 19 सेकेंड में पहुंच जाते हैं, जिससे न्यूरोट्रांसमीटर्स का अधिक स्नाव होने लगता है, जो कि हमारे लिए हानिकारक है। इसके कारण हमारी सोच तथा हमारी कार्यप्रणाली में बदलाव होने लगता है। यह सब केवल कुछ समय के लिए ही होता है, क्योंकि निकोटीन का असर आधे घंटे से दो घंटे तक रहता है। इसके बाद आपको पुन: इसकी जरूरत महसूस होने लगती है।

लोगों में धूम्रपान करने के बहुत से कारण हैं जैसे कि उत्तेजना, इसका स्वाद जानने की इच्छा एवं चिंता से मुक्ति आदि। कुछ लोग इसे वैभव का भी प्रतीक मानते हैं, परंतु जब एक बार आप धूम्रपान करने लगते हैं तो आपको इसकी लत लग जाती है। धूम्रपान बंद करने से फायदे ही फायदे हैं। धूम्रपान बंद करने के एक वर्ष के भीतर दिल की बीमारियों की आशंका 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। फेफडे़ का कैंसर होने की संभावना 10 से 15 वर्षों में 50 प्रतिशत तक कम हो जाती है। शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से होने लगता है और शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा अच्छी हो जाती है। ब्रांकाइटिस एवं श्वसन तंत्र के अन्य रोगों की संभावना भी काफी कम हो जाती है। थकान कम होती है और मन प्रसन्न रहता है और आत्म विश्वास भी बढ़ता है।

तंबाकू सेवन से हो रहे दुष्प्रभावों को देखते हुए पूर्व में भारत सरकार ने कुछ व्यापक कदम उठाए हैैं। सिगरेट और अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 के अंतर्गत तंबाकू या उससे बने पदार्थों का प्रचार-प्रसार, खरीद-फरोख्त एवं वितरण पर सख्ती से रोक लगाने की बात कही गई थी। 2004 में विश्व तंबाकू निषेध दिवस पर इस कानून को कार्यान्वित किया गया। वहीं विश्व समुदाय के लोग भी इस गंभीर विषय पर एकजुट हैं। इसके लिए वर्ष 1994 में एक विश्व संगोष्ठी में सुझाव दिया गया था कि धूम्रपान वाले उत्पादों पर टैक्स की बढ़ोतरी कर देनी चाहिए। इससे तंबाकू उत्पादों पर बढ़े कराधान से उपजी मूल्य वृद्धि से उनके उपभोग में कमी आएगी। लोगों की सेहत पर मंडराता खतरा कुछ हद तक कम होगा। सरकार को अधिक राजस्व प्राप्त होगा, जिसका प्रत्यक्ष उपयोग तंबाकू के खिलाफ जागरूकता पैदा करने और तंबाकू जनित रोगों से पीड़ित लोगों के उपचार और पुर्नवास में किया जाना चाहिए।

दुख की बात है कि तंबाकू के व्यवसाय में भारत काफी अग्रणी है। विश्वभर में तंबाकू के उत्पाद एवं उपयोग के संबंध में भारत दूसरे स्थान पर है। तंबाकू के दुष्प्रभावों को देखते हुए इसके उत्पादन तथा ब्रिकी दोनों पर रोक लगाना ही एकमात्र उपाय है, लेकिन इसके लिए दो कुतर्क दिए जाते है कि तंबाकू उत्पाद से लगभग तीन करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है और इससे काफी राजस्व की प्राप्ति होती है। राजस्व की प्राप्ति एक मिथक ही है, क्योंकि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार तंबाकू के उत्पादों से प्रतिवर्ष 31,000 करोड़ रुपये अर्जित होते हैं, जबकि हम 1,04,500 करोड़ रुपये तंबाकू के दुष्प्रभावों से हो रही प्रमुख बीमारियों पर ही खर्च कर देते हैं। जाहिर है कि तंबाकू नुकसान के कहीं अधिक हैैं और इसीलिए उसे एक अभिशाप कहा जाता है।

( लेखक किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ में रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हैैं )

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