[अवधेश कुमार]। किसी को अगर यह उम्मीद थी कि चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा दोनों देशों की प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत के बाद संबंधों में नाटकीय बदलाव आ जाएगा तो उसे निश्चय ही मामल्लपुरम ने निराश किया होगा। जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के निमंत्रण पर पिछले वर्ष अनौपचारिक बैठक के लिए वुहान गए थे तब भी उनको पता था कि कोई ठोस अनुकूल परिणाम नहीं आनेवाला।

चीन तिब्बत को अपना हिस्सा मानता है

वर्ष 2018 में 27 और 28 अप्रैल की बैठक के एक-एक कार्यक्रम की भारत में खूब चर्चा हुई। दोनों नेता जब भी सामने आए ऐसा लगा कि दो विश्वसनीय दोस्त विचारों का आदान-प्रदान कर रहे हों। किंतु अंत में हुआ क्या? संयुक्त बयान तक जारी नहीं हुआ। दोनों देशों ने अलग-अलग बयान जारी किए और दोनों प्रवक्ताओं के बयानों में भी अंतर था। प्रधानमंत्री मोदी की भारत वापसी के बाद चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कॉन्ग शॉयन्यू ने स्वीकार किया कि कई मुद्दों पर हमारे बीच विवाद हैं। तिब्बत पर भी उन्होंने खुलकर कहा कि चीन का मानना है कि भारत ने तिब्बत को लेकर भी अपना आधिकारिक पक्ष नहीं बदला है जबकि चीन, तिब्बत को अपना हिस्सा मानता है। बावजूद इसके उन्होंने कहा कि दोनों ही पक्ष सभी मामलों में सहयोग बढ़ाने, असहमतियों का हल निकालने, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने पर काम करेंगे।

ना वुहान में ऐसा हुआ ना मामल्लपुरम में

शी और मोदी की बैठक का इतने अच्छे वातावरण में संपन्न होना यह बताता है कि भारत ने इन कटु यथार्थों को स्वीकार कर लिया है कि चीन हमसे मतभेद रखेगा, हमारे खिलाफ जाएगा जिनका हमें हर स्तर पर सामना करना होगा, वह पाकिस्तान की मदद भी करेगा, लेकिन इससे संवाद, संपर्क और अन्य किसी तरह की अंत:क्रिया को बाधित करना कूटनीतिक चातुर्य नहीं। इसका यह अर्थ नहीं कि चीन के साथ संबंध बनाए रखने के लिए भारत अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता कर लेगा। ना वुहान में ऐसा हुआ ना मामल्लपुरम में।

वुहान में चीन ने जितना शानदार स्वागत मोदी का किया उससे बेहतर स्वागत व्यवस्था मामल्लपुरम में शी का मोदी ने कराया। हमारे संबंध विश्व में शांति और स्थिरता का कारक होंगे। इसका अर्थ क्या था यह बताने की आवश्यकता नहीं। अंत में उन्होंने कहा कि चेन्नई कनेक्ट से दोनों देशों के बीच सहयोग का एक नया दौर शुरू होगा। इसी तरह शी ने कहा कि वह मेहमाननवाजी से बहुत अभिभूत हैं और उनके लिए यह यादगार अनुभव है। चीन और भारत एक-दूसरे के अहम पड़ोसी हैं। दोनों दुनिया के इकलौते देश हैं जिनकी आबादी एक अरब से ज्यादा है।

आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर काम करने की बात

इसके बाद कुछ कहने की आवश्यकता नहीं कि इस बहुप्रचारित सम्मेलन का परिणाम क्या निकला? दोनों नेताओं के बीच रात्रि भोजन पर करीब ढाई घंटे तक बात होती रही। विदेश सचिव गोखले ने कहा कि मोदी और शी ने इस दौरान आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर काम करने की बात भी कही। आतंकवाद पर कहां एकजुट होकर काम करेंगे? दोनों देशों के बीच आतंकवाद विरोधी साझा युद्धाभ्यास कई वर्षों से हो रहा है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एकजुटता का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने में अकेले वही बाधा बना रहा। जब वह सुरक्षा परिषद में अलग- थलग पड़ गया, तब उसने विरोध बंद किया।

चीनी सामग्रियों ने भारत के कुटिर उद्योग को पहुंचाई क्षति

चीन के साथ इस समय हम 52 अरब डॉलर के व्यापार घाटे में हैं। यदि चीन इसे संतुलित करना चाहता है तो शी चिनफिंग और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल को इसके लिए कुछ ठोस प्रस्ताव लेकर आना चाहिए था। भारतीय सामग्रियों के वहां के बाजारों में प्रवेश का जितना खुला नियमन चाहिए वैसा नहीं है। ऐसा व्यापार लेकर हम करेंगे क्या? चीनी सामग्रियों ने भारत के कुटिर उद्योग को सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई है और लाखों लोगों का रोजगार छीना है। जहां तक निवेश का प्रश्न है तो चीन की कंपनियों का कुल निवेश अभी तक आठ अरब डॉलर है।

मोदी ने चीन के सामने पेश किया था पांच सूत्रीय एजेंडा

जो लोग यह तर्क देते हैं कि हमें विवादित मुद्दों को अलग रखकर व्यापार और निवेश आदि पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए वे इन तथ्यों को न भूलें। वुहान बैठक में प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत के दौरान मोदी ने चीन के सामने संबंधों की बेहतरी के लिए अपना पांच सूत्रीय एजेंडा पेश किया था। ये हैं- समान दृष्टिकोण, बेहतर संवाद, मजबूत रिश्ता, साझा विचार और साझा समाधान। मोदी के इस पांच सूत्री एजेंडे की तुलना 1954 में दोनों देशों के बीच हुए पंचशील समझौते से की गई थी। शी चिनफिंग ने कहा कि उनका देश मोदी के बताए पंचशील के इन नए सिद्धांतों से प्रेरणा लेकर भारत के साथ सहयोग और काम करने को तैयार है। इसमें संवाद छोड़ किसी विषय पर चीन ने काम नहीं किया।

कश्मीर का कुछ हिस्सा चीन के कब्जे में

वास्तव में चीन के बारे में यथार्थवादी रुख अपनाने की आवश्यकता है और भारत सरकार ने अपनाया भी है। मौजूदा भारत कूटनीति या विदेश संबंधों में अतीत की हिचकिचाहट तथा अनावश्यक अति शालीनता ओढ़ने से बाहर निकल चुका है। हम स्वागत खूब करते हैं पर बात हमेशा यथार्थ के स्तर पर और आवश्यकता पड़ने पर खरी-खरी भी। चीन को भी समझ में आने लगा है कि अब एक मुखर और अपने हितों के प्रति अडिग भारत से उसका सामना है। इस कारण उसे भी भारत के प्रति अपनी नीति निर्धारण में समस्याएं आ रही हैं। वुहान के बाद उसने हमारी सीमा पर तीन बड़े युद्धाभ्यास किए तो हम भी अरुणाचल में सीमा के पास बड़ा युद्धाभ्यास कर रहे हैं।चीन ने इसका विरोध किया, पर शी चिनफिंग की यात्रा के बीच भी यह जारी रहा।

तिब्बत और दलाई लामा पर हमारा रुख पहले से ज्यादा मुखर और स्पष्ट है। पाक अधिकृत कश्मीर पर भारत खुलकर बात कर रहा है। कश्मीर का कुछ हिस्सा चीन के कब्जे में भी है। चीन को लगता है कि मौजूदा भारत की नजर उस ओर भी है। चीन के साथ संबंधों के निर्धारण में इन सारे पहलुओं का ध्यान रखना चाहिए। सच यह है कि इस बैठक में भारत की किसी भी चिंता का समाधान चीन की ओर से नहीं किया गया और कर भी नहीं सकता। इसका हमारी सरकार को पूरी तरह पता था।

[वरिष्ठ पत्रकार]

यह भी पढ़ें:

Modi Jinping Meet: भारत और चीन के बीच तनाव वाले मुद्दों को दरकिनार कर साझा भविष्य पर ध्यान देने का फैसला

अमेरिकी ट्रेड वार के कारण दवाब में चीन, मौके का फायदा उठाए भारत