नई दिल्ली, जेएनएन। Modi Jinping Meet: कश्मीर मसले पर चीन के बार-बार बदलते बयान को विशेषज्ञ उसकी कश्मकश बता रहे हैं। इसके पीछे कुछ खास वजहें गिनाई जा रही हैं। कश्मीर पर चीन की पलटती बयानबाजी की एक वजह राष्ट्रपति शी का प्रस्तावित दौरा भी रहा। लिहाजा कोई ऐसा बयान देकर नई दिल्ली में वे माहौल को खराब करने से बचते रहे, जिससे कि उनका ये दौरा पिछली बार वुहान सम्मेलन की तरह ही सफल साबित हो।

रसरहित नींबू बना पाकिस्तान 

बीजिंग के साथ राजनयिक रिश्तों में इस्लामाबाद का कोई वजन नहीं रहा। पाकिस्तान के ऊपर भारी-भरकम कर्ज की देनदारी है, जिसे उसे अगले तीन महीनों में चुकाना है। पाकिस्तान पर जितना ऋण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का है उसका दोगुना सिर्फ उसने चीन से ले रखा है। 

अच्छे संबंधों की विवशता 

चीन अपने उइगर मुस्लिमों के साथ किए जा रहे बर्ताव के लिए अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की निंदा का पात्र बना हुआ है। चीन ने शिनजियांग प्रांत में बड़ी संख्या में उइगर मुस्लिमों को कैंपों में नजरबंद करके रखा हुआ है। हाल ही में यूरोपीय संघ के साथ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान और कनाडा ने एक संयुक्त पत्र जारी करके चीन से अपेक्षा जताई कि वह उस क्षेत्र में अपनी नीतियों को बदले। इस पत्र पर हस्ताक्षर न करके भारत ने चीन को सकारात्मक रूप से चौंकाया था। वास्तव में उइगर मामले पर किसी बयान ने भारत ने एक दूरी बना रखी है। भारत इस मसले को चीन का आंतरिक मामला बताता है। इससे भी चीन को लग सकता है कि कश्मीर पर वह खुलकर भारत का विरोध इसलिए नहीं कर सकता है क्योंकि कश्मीर भी भारत का आंतरिक मामला है।

 साझा हित 

अमेरिका के साथ चीन और भारत के साझा हित जुड़ते हैं। अमेरिका के साथ एक साल से अधिक समय के साथ चल रहे ट्रेड वार ने उसकी अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर डाला है। चीन के आर्थिक संकेतकों में इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इससे चिंतित बीजिंग अपने उत्पादों के लिए दूसरे बाजारों की तरफ निहारना शुरू किया है। भारत से ज्यादा और प्रभावी उपभोक्ता बाजार भला कहां होगा। 

कतने पास

कई ऐसे मसले हैं जिनमें भारत और चीन की रीति-नीति एक सी है। समान हितों, जरूरतों के चलते अहम अंतरराष्ट्रीय मसलों पर दोनों के सुर एक ही होते हैं।

डब्ल्यूटीओ में फूड सब्सिडी 

दोनों देशों का डब्ल्यूटीओ में पक्ष है कि खाद्य वस्तुओं व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों पर अनुदान जारी रहना चाहिए। वहीं डब्ल्यूटीओ के प्रस्तावित ट्रेड फेसिलिटेशन एग्रीमेंट के तहत कुल कृषि उत्पादन मूल्य का 10 प्रतिशत से अधिक अनुदान नहीं दिया जा सकता है। 

जलवायु परिवर्तन 

दोनों देशों की राय रही है कि यूएन क्लाइमेट समिट ऐसा फोरम नहीं है जिससे पूरे विश्व की जलवायु के विषय पर कोई निर्णय सुनाया जा सके। विकसित व विकासशील देशों में अंतर करना ही होगा।

अफगानिस्तान 

शांत, स्थिर और समृद्ध अफगानिस्तान दोनों देशों के हित में है। 

सीरिया 

भारत-चीन का पक्ष रहा है कि किसी देश की संप्रभुता-एकता पर आंच नहीं आनी चाहिए। 

वित्तीय प्रणाली में सुधार 

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं के नियम-कानूनों में बदलाव लाते हुए कोटा सिस्टम चाहते हैं।

ब्रिक्स 

ब्रिक्स डेवलपमेंट बैंक आइएमएफ में अमेरिका के वर्चस्व को देखते हुए खड़ा किया गया है।

कितने दूर

कई मसलों पर एशिया के दोनों देशों के बीच मतभेद हैं। 

सीमा विवाद 

दोनों देशों के बीच 3488 किमी लंबी सीमारेखा है। ब्रिटिश भारत और तिब्बत ने 1914 में शिमला समझौते के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मैकमहोन रेखा निर्धारित की। चीन इस रेखा को अवैध मानता है, लेकिन वास्तविक नियंत्रण रेखा की स्थिति भी कमोबेश यही है।

नत्थी वीजा

अरुणाचल प्रदेश व लद्दाख के कुछ विवादित क्षेत्रों के लिए चीन नत्थी वीजा जारी करता है।

ब्रह्मपुत्र पर बांध 

ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन द्वारा डैम बना लेने से इस नदी में 200 अरब क्यूबिक मीटर पानी का बहाव कम हो जाएगा। इस मसले को लेकर भी दोनों के बीच तनातनी है।

दक्षिण चीन सागर 

चीन को दक्षिण चीन सागर के हिस्से में वियतनाम के साथ मिलकर भारत के प्राकृतिक गैस की खोज का काम करने पर एतराज है। ओएनजीसी की विदेशी शाखा ओएनजीसी विदेश लिमिटेड व वियतनाम की कंपनी पेट्रो वियतनाम मिलकर काम कर रहे हैं। 

तिब्बती शरणार्थी 

तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा के भारत में शरण लिए जाने पर चीन आंखें तरेरता रहा है। चीन ने 1950 में तिब्बत को अपने में मिला लिया था। विदेश में कारोबार भारत की द. अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में कारोबारी गतिविधियों से चीन सशंकित रहा है। 

द्विपक्षीय कारोबार 

1978 में व्यापारिक संबंध शुरू हुए। छह साल बाद दोनों ने मोस्ट फेवर्ड नेशन का समझौता हस्ताक्षरित किया। वर्ष 2000 में व्यापार मात्र 2.92 अरब डॉलर था। 2011 में यह 73.9 अरब डॉलर हुआ।

ओबोर परियोजना

राष्ट्रपति शी चिनफिंग की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट वन रोड परियोजना से बाहर रहकर भारत ने एक तरह से उसे चिढ़ाया है। अब जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की ऐसी ही परियोजना में भारत हिस्सा ले रहा है।

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