मधुकर कोटावे। बीते दिनों केंद्र सरकार ने रक्षा क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 101 वस्तुओं के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिसे चरणबद्ध तरीके से दिसबंर 2020 से दिसंबर 2025 के बीच लागू किया जाना है। प्रतिबंध की सूची में आर्टिलरी गन, असॉल्ट राइफल्स, ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट, रडार आदि शामिल हैं। सरकार यह मान रही है कि इससे रक्षा उत्पादन के मामले में भारत आत्मनिर्भर होगा और स्वदेशीकरण को बढ़ावा मिलेगा, किंतु आयात पर प्रतिबंध की इस घोषणा के साथ कई सारी चुनौतियां भी जुड़ी हुई हैं। पहली, सरकार के पास इस तरह के रोडमैप का विस्तृत विवरण नहीं है और दूसरी, कुछ महीने पहले ही निर्मला सीतारमण ने रक्षा क्षेत्र में एफडीआइ की सीमा को बढ़ाकर 75 प्रतिशत किया था। एक तरफ हम स्वदेशीकरण की बात कर रहे हैं और साथ ही साथ एफडीआइ भी ला रहे हैं, तो क्या यह विरोधाभासी है।

आज भारत रक्षा क्षेत्र में पहले की अपेक्षा काफी अधिक सामग्री आयात कर रहा है। हाल में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया था कि अमेरिका और चीन के बाद भारत सैन्य क्षेत्र में सबसे ज्यादा खर्च करने वाला दुनिया का तीसरा बड़ा देश है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने वर्ष 2019 में रक्षा क्षेत्र में 71 बिलियन डॉलर खर्च किया था, जो वर्ष 2018 की तुलना में 6.9 प्रतिशत अधिक है। वहीं वर्ष 2019 में चीन ने रक्षा क्षेत्र में 261 बिलियन डॉलर खर्च किया था और अमेरिका ने 732 बिलियन डॉलर खर्च किया था। अभी तक भारत सैन्य उत्पादों की सबसे ज्यादा खरीदारी रूस से करता रहा है। उसके बाद अमेरिका, इजरायल और फ्रांस का स्थान आता है। इन तथ्यों के आलोक में यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या यह तस्वीर रक्षा मंत्रालय की इस नई घोषणा के बाद बदल जाएगी?

वास्तव में भारत में आज जो रक्षा उपकरण बन रहे हैं, उनमें से कई के पार्ट विदेशों से बन कर आते हैं। वहीं कई उपकरण ऐसे भी हैं, जो लाइसेंस के आधार पर यहां बनाए जाते हैं। इसका मतलब यह है कि सैन्य उपकरण बनाने का लाइसेंस विदेशी कंपनी के पास है और उस विदेशी कंपनी के भारत के साथ समझौते के आधार पर ये रक्षा उत्पाद अभी भारत में बन रहे हैं। इसके अलावा एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि रक्षा मंत्रालय की नई घोषणा में इस बात का जिक्र नहीं है कि इस तरह के लाइसेंस के आधार पर भारत में बनने वाले उपकरणों को आत्मनिर्भरता के अभियान का हिस्सा माना जाएगा या नहीं। यह भी साफ दिख रहा है कि जब तक विदेशी कंपनियों का रक्षा सौदों में हस्तक्षेप रहेगा, तब तक रक्षा उपकरणों में आत्मनिर्भरता संभव ही नहीं है।

उदाहरण के लिए हल्के लड़ाकू विमान का इंजन और कई दूसरे पार्ट भारत विदेश से आयात करता है और फिर उसे यहां असेंबल करता है। क्या रक्षा में आत्मनिर्भरता के नए नारे के अनुसार यह कहा जा सकता है कि उसका इंजन भी भारत में बनने लगेगा? या फिर इंजन विदेशी होने पर भी उसे भारतीय हल्के लड़ाकू विमान ही माना जाएगा? इस बात को सरकार स्पष्ट नहीं कर रही है। इसी तरह हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर का इंजन फ्रांस से आता है और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में दूसरे पुर्जों के साथ उसे असेंबल किया जाता है। अब जरा बुलेट प्रूफ जैकेट का उदाहरण देखें, जिसे 1990 से भारत में बनाने की कोशिश की गई थी। अभी एक प्राइवेट कंपनी यह बना रही है, लेकिन इस जैकेट में इस्तेमाल होने वाले केवलार विदेश से ही मंगाए जाते हैं। ऐसे में कैसे स्वदेशीकरण की बात कहीजा रही है?

भारत में 2001 तक रक्षा क्षेत्र में सरकारी कंपनियां जैसे डीआरडीओ और ऑर्डिनेंस फैक्टरी ही मुख्य रूप से कार्यरत थीं, जिसे बाद में केंद्र सरकार ने सकारात्मक दिशा में बदला। इसका असर भी भारत के रक्षा क्षेत्र में देखने को मिला, लेकिन ये सभी प्रयास एक सीमा से आगे फलदायी साबित नहीं हुए हैं। वास्तव में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए भारत को डिजाइन और विकास पर गंभीरतापूर्वक जोर देना होगा। हालांकि यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र में डिजाइन और विकास के साथ-साथ नवीन शोध और अनुसंधान को भी प्रोत्साहन दे रही है। साथ ही भारत की निजी कंपनियों को भी इस मुहिम में शामिल करने की कोशिश कर रही है, जिससे कि वे भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए आगे आएं। इसमें दोराय नहीं कि भारत की निजी कंपनियां यदि अपनी पूरी क्षमता से आगे आएं तो भारत का रक्षा क्षेत्र आत्मनिर्भर बन सकता है।

आज समस्या यह भी है कि भारत की कंपनियां रक्षा क्षेत्र में अधिक निवेश नहीं करतीं। हालांकि इसका एक अलग व्यावसायिक कारण है, क्योंकि रक्षा क्षेत्र में पूंजी लगाने पर रिटर्न मिलने में काफी समय लग जाता है। साथ ही इसमें अधिक पूंजी निवेश भी करना होता है। विदेशी कंपनियां अधिक अनुभवी और तकनीकी रूप से दक्ष हैं, जो यहां की कंपनियों से अच्छा सामान बनाती हैं। इसलिए प्रतिस्पर्धा में भारत की कंपनियां उनसे पीछे रह जाती हैं। सरकार की घोषणा में अगर इनकी इन समस्याओं का समाधान किया जाता है, तो आत्मनिर्भरता के सपने को पूरा किया जा सकता है। इसके साथ ही भारत की कंपनियों को वैश्विक स्तर की प्रतिस्पर्धा में खड़ा करने की भी जरूरत है, जिससे कि भारत रक्षा क्षेत्र में न केवल आत्मनिर्भर हो, बल्कि एक निर्यातक के रूप में भी स्थापित हो। वर्ष 2009 से 2012 के दौरान भारत ने 8 ध्रुव हेलीकॉप्टर इक्वाडोर को बेचे थे। इसी तरह से इंसास राइफल को भारत ने नेपाल को बेचा था। ऐसे ही प्रयास की जरूरत है। वास्तव में केवल स्वदेशीकरण ही आत्मनिर्भरता के लिए जरूरी नहीं है, बल्कि निर्यातक के रूप में स्थापित होना ही हमें आत्मनिर्भर बनाएगा।

यह अच्छी बात है कि मोदी सरकार रक्षा क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए डिजाइन और विकास के साथ-साथ नवीन शोध और अनुसंधान को भी प्रोत्साहन दे रही है। साथ ही देश की निजी कंपनियों को भी इस मुहिम में शामिल करने की कोशिश कर रही है, जिससे कि वे भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए आगे आएं। इसमें दोराय नहीं कि भारत की निजी कंपनियां यदि अपनी पूरी क्षमता से आगे आएं तो भारत का रक्षा क्षेत्र आत्मनिर्भर बन सकता है।

[रक्षा विशेषज्ञ]