[ संजय गुप्त ]: मोदी सरकार ने अपने आखिरी बजट में गरीब किसानों, मजदूरों और मध्यम वर्ग को राहत देने वाली जो अनेक घोषणाएं कीं उनके बारे में संदेह नहीं कि वे आम चुनाव को ध्यान में रखकर ही की गई हैं। चुनावी वर्ष में प्रवेश कर रही किसी भी सरकार के लिए मतदाताओं को रिझाने के लिए घोषणाएं करना उसकी अपनी राजनीतिक जरूरत होती है। इस जरूरत की पूर्ति करना उसका अधिकार है। हर सत्तारूढ़ राजनीतिक दल चुनाव के पहले बजट में जनता को लुभाने की कोशिश इसलिए भी करता है, क्योंकि पहले की घोषणाओं का असर एक बड़ी हद तक कम या खत्म हो जाता है अथवा वे उतनी आकर्षक नहीं रह जातीं।

इस बार मोदी सरकार ने जो घोषणाएं की हैं उनमें सबसे महत्वपूर्ण है छोटे किसानों को सीधे उनके खाते में सालाना छह हजार रुपये देना। यह योजना इसलिए विशेष है, क्योंकि अन्य कल्याणकारी योजनाओं में अफसरशाही की निर्णायक भूमिका होने के कारण लाभार्थियों को समुचित लाभ नहीं मिल पाता था या फिर वे भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती थीं। इस बारे में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का यह कहना सही ही था कि केंद्र सरकार किसी योजना में एक रुपया भेजती है तो लाभार्थी तक पहुंचते-पहुंचते 10-15 पैसे ही रह जाते हैैं। ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि पहले की योजनाएं सीधे लाभार्थी के खाते में धन देने यानी डीबीटी पर आधारित नहीं होती थीं। डिजिटल तकनीक के चलते अब ऐसा करना आसान हो गया है और अनेक योजनाओं में इसका सफल परीक्षण भी हो चुका है। एक तथ्य यह भी है कि तब बहुत कम गरीबों के पास अपने बैैंक खाते होते थे।

अब करीब-करीब सभी गरीबों के पास जन-धन खाता है। यदि पहले के सिस्टम के रहते छोटे किसानों को छह हजार रुपये सालाना की सहायता देने की कोई योजना शुरू की जाती तो अच्छी-खासी रकम सिस्टम में ही खप जाती और फिर भी सभी लाभार्थियों को रियायत देना मुश्किल होता।

अंतरिम बजट में मोदी सरकार की एक अन्य उल्लेखनीय घोषणा पशुपालक किसानों को कर्ज में दो प्रतिशत की छूट देने की है। मनरेगा के लिए 60,000 करोड़ का आवंटन भी ग्रामीण जनता को राहत देने वाला है। असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को तीन हजार रुपये की मासिक पेंशन देने की घोषणा ने भी सबका ध्यान खींचा है। सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करने वाली इस घोषणा के अलावा मोदी सरकार ने आंगनबाड़ी और आशा योजना के तहत मानदेय में 50 प्रतिशत वृद्धि तो की ही है, कामकाजी महिलाओं का मातृत्व अवकाश 26 हफ्ते किया है। महिलाओं को लाभ देने वाली एक अन्य घोषणा उज्ज्वला योजना के तहत दो करोड़ मुफ्त गैस कनेक्शन देने की भी है।

अंतरिम बजट की एक और बड़ी घोषणा पांच लाख रुपये तक की आय को आयकर से मुक्त करने की है। सामान्य बचत योजनाओं में निवेश करने पर आयकर में छूट का यह लाभ 6.5 लाख रुपये तक बढ़ जाएगा। स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा को 40 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये करने से भी मध्य वर्ग को लाभ मिलेगा। इस वर्ग के लिए एक आकर्षण यह भी है कि अब दूसरे घर से मिलने वाले अनुमानित किराये पर टैक्स नहीं देना होगा। इसी तरह एफडी के ब्याज पर 40 हजार रुपये तक टैक्स नहीं लगेगा। लोगों को सीधे राहत पहुंचाने वाली इन घोषणाओं के अतिरिक्त सरकार ने कुछ ऐसी घोषणाएं भी की हैैं जिनसे आम आदमी को कुछ न कुछ परोक्ष लाभ मिलेगा। सरकार ने जो कल्याणकारी घोषणाएं की हैं उनसे करीब 25 करोड़ लोगों के लाभान्वित होने का अनुमान है। इनमें 10-12 करोड़ छोटे एवं सीमांत किसानों के अलावा असंगठित क्षेत्र के दस करोड़ श्रमिक हैं। इसके अलावा तीन करोड़ आयकर दाता भी हैैं, जो टैक्स छूट से लाभान्वित हुए हैं। माना जा रहा है कि अगर इनमें से आधे लोगों ने भी भाजपा के पक्ष में मतदान किया तो वह आसानी से फिर सरकार बनाने में कामयाब हो सकती है।

बजट घोषणाओं के बाद स्वाभाविक तौर पर जहां भाजपा और सरकार यह मान रही है कि वह किसानों, मजदूरों के साथ मध्य वर्ग को संतुष्ट करने में सफल रहेगी वहीं विपक्ष इन घोषणाओं को नाकाफी और नाकाम बताने में जुट गया है। छोटे किसानों को साल में छह हजार रुपये की मदद देने के फैसले का कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह कहते हुए उपहास उड़ाया कि यह राशि तो 17 रुपये प्रतिदिन ही बैठती है। कांग्रेस ने अपने नेतृत्व वाली संप्रग-एक सरकार के अंतिम दिनों में किसानों का 70 हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था और इसके सहारे चुनाव जीतने में कामयाबी हासिल की थी। क्या उस कर्ज माफी से किसानों और देश का कोई भला हुआ था? तथ्य तो यही है कि संप्रग-2 सरकार के समय भी किसानों की हालत खराब रही।

बीते कुछ समय से एक सोचा-समझा अभियान यह जताने के लिए चलाया जा रहा है कि किसानों की हालत बहुत खराब है और इसके लिए मोदी सरकार ही पूरी तौर पर जिम्मेदार है। यह ठीक है कि पिछले वर्षों में इस सरकार ने किसानों के लिए जो कुछ किया उससे उनकी स्थिति में वैसा सुधार नहीं आ सका जैसा आना चाहिए था, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती है कि मोदी सरकार की ओर से जो कदम उठाए गए हैैं वे दीर्घकालिक सुधारों पर केंद्रित हैैं।

नि:संदेह यह समय ही बताएगा कि आगामी आम चुनाव में मतदाता किसे वोट देते हैं और किसकी सरकार बनेगी, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि मोदी सरकार के पास अंतरिम बजट के पहले भी किसानों और मजदूरों को राहत देने वाली योजनाओं को शुरू करने का अवसर था। पता नहीं इस अवसर का लाभ क्यों नहीं उठाया गया? यदि ये योजनाएं पहले ही शुरू की जातीं तो शायद आज स्थिति दूसरी होती। ध्यान रहे कि यदि गरीबों को कल्याणकारी योजनाओं के तहत सीधे पैसा मिले तो वे उसे अपने तरीके से और अपनी जरूरत के हिसाब से खर्च करने में समर्थ होते हैैं। इसी कारण यह कहा जाता है कि अन्य मदों में सब्सिडी को समाप्त कर लाभार्थियों को सीधे धनराशि उपलब्ध कराई जाए। इससे उनके जीवन स्तर में कहीं बेहतर तरीके से सुधार आ सकता है।

देखना है कि किसानों को सीधे पैसा देने की योजना कितनी लाभदायक साबित होती है? जो भी हो, यह गौर करने लायक है कि सरकार ने वित्तीय अनुशासन के चलते पैसा पानी की तरह बहाने से परहेज किया। इसके विपरीत पहले की सरकारों ने चुनावी लाभ के लिए वित्तीय अनुशासन की अनदेखी कर राजकोषीय घाटे को बढ़ने दिया। मोदी सरकार ने वित्तीय अनुशासन का परिचय देकर परिपक्वता का ही प्रदर्शन किया है। यह भी उल्लेखनीय है कि पार्टी और सरकार ने यह भी साबित करने की कोशिश की है कि उसे अपने पर भरोसा है। यह संतोषजनक है कि उसने उन लोगों को गलत साबित किया जो यह मान रहे थे तीन राज्यों के चुनावों में मिले झटके के बाद सरकार मजबूरी में लोक-लुभावन योजनाओं की झड़ी लगा देगी। यह अच्छा हुआ कि भाजपा और मोदी सरकार ने इन लोगों की ओर से बनाए जा रहे दबाव में आने से इन्कार किया।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]