रवि शंकर। देश के लाखों किसानों को मोदी सरकार ने एक बड़ी राहत दी है। सरकार ने धान समेत 14 खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी करने के साथ तीन लाख रुपये तक के शॉर्ट टर्म लोन चुकाने की अवधि बढ़ा दी है। इसके अलावा सरकार ने एक देश एक बाजार नीति को भी मंजूरी दे दी है। इससे किसान देश में कहीं भी अपनी फसल को बेच सकेंगे। पहले किसानों को अपनी फसल केवल एग्रीकल्चर प्रोडक्ट मार्केट कमेटी की मंडियों में ही बेचने की बाध्यता थी, लेकिन अब यह बाध्यता खत्म हो जाएगी। सरकार का दावा है कि इससे किसानों की आय बढ़ेगी।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि कृषि मंडी के बाहर किसान की उपज की खरीद-बिक्री पर किसी भी सरकार का कोई टैक्स नहीं होगा। ओपन मार्केट होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इससे किसानों की आमदनी बढ़ेगी। जिस व्यक्ति के पास पैन कार्ड होगा, वह किसान के उत्पाद खरीद सकता है। कई तरह के प्रतिबंधों के कारण किसानों को अपने उत्पाद बेचने में काफी दिक्कत आती है।

कृषि उत्पाद विपणन समिति वाले बाजार क्षेत्र के बाहर किसानों द्वारा उत्पाद बेचने पर कई तरह के प्रतिबंध हैं। उन्हें अपने उत्पाद सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त खरीदारों को ही बेचने की मंजूरी है। इसके अतिरिक्त ऐसे उत्पादों के सुगम व्यापार के रास्ते में भी कई तरह की बाधाएं हैं। लेकिन संबंधित अध्यादेश के लागू हो जाने से किसानों के लिए एक सुगम और मुक्त माहौल तैयार हो सकेगा जिसमें उन्हें अपनी सुविधा के हिसाब से कृषि उत्पाद खरीदने और बेचने की आजादी होगी। इससे किसानों को अधिक विकल्प मिलेंगे।

यह सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संकल्प लिया है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना किया जा सके। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों के विकास के लिए नए प्रयास कर रही है। इस बीच खेती की लागत निरंतर बढ़ती जा रही है, लेकिन उस अनुपात में किसानों को मिलने वाले फसलों के दाम बहुत ही कम बढ़े हैं। इसका परिणाम किसान पर कभी नहीं खत्म होने वाले बढ़ते कर्ज के रूप में सामने आता है।

चूंकि किसानों की उपज की बिक्री बिचौलियों और व्यापारियों के हाथों ज्यादा होती है, लिहाजा वे किसी न किसी तरह से उनके चंगुल में फंस ही जाते हैं। बिचौलिये का काम ही होता है किसान से अनाज सस्ते दाम में खरीद कर महंगे दाम में बेचना। इस पूरी प्रक्रिया में ज्यादातर असली मुनाफा बिचौलिए खा जाते हैं और किसान एवं उपभोक्ता दोनों ठगे रह जाते हैं। किसी फसल उत्पाद के लिए उपभोक्ता जो मूल्य देता है, उसका बहुत ही कम हिस्सा किसान को मिल पाता है। बाजार मूल्य का कभी-कभी तो 20 से 30 फीसद तक का हिस्सा ही किसान तक पहुंचता है।

ऐसे में किसान खुशहाल कैसे रह सकता है। लेकिन एक देश एक बाजार नीति लागू होने के बाद बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और उन्हें अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा। आखिर क्या कारण है कि प्रत्येक वर्ष लाखों किसान खेती से विमुख होते जा रहे हैं। हमें भूलना नहीं चाहिए कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में फिलहाल कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 फीसद तक है, जबकि इस पर देश की करीब 53 फीसद आबादी निर्भर है।

इतना तो स्पष्ट है कि खेती का कुल क्षेत्रफल सिमटा है और किसानों की संख्या तेजी से कम हो रही है। आज नहीं तो कल इस प्रवृत्ति का प्रतिकूल असर खाद्यान्न उत्पादन पर भी पड़ेगा। इसलिए सरकार को समय रहते इस ओर पर्याप्त ध्यान देना होगा, वरना अन्न के उत्पादन में हमारी आत्मनिर्भरता प्रभावित हो सकती है जो भविष्य के लिहाज से कहीं से भी बेहतर नहीं है। इसलिए सबसे पहले सरकार को किसी भी तरह से किसानों की आमदनी बढ़ाने के तमाम व्यावहारिक उपायों को अमल में लाने पर जोर देना होगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)