[ प्रो. निरंजन कुमार ]: किसी भी समाज में सत्ता का विमर्श सिर्फ राजसत्ता तक सीमित नहीं होता। लोकतांत्रिक समाजों में यह बात और भी ज्यादा लागू होती है। इसीलिए अब्राहम लिंकन लोकतंत्र को जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा चुनी हुई सरकार कहते हैं। जनसाधारण की यह भागीदारी राजसत्ता की परिधि के बाहर व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में भी होती है। यह लोकतांत्रिक भागीदारी भारत रत्न या फिर पद्म पुरस्कारों जैसे देश के राजकीय अलंकरणों या पुरस्कारों से लोगों को नवाजे जाने में भी दिखनी चाहिए।

मोदी सरकार ने पद्म पुरस्कारों को आम जन के द्वार तक पहुंचा दिया

पिछले पांच वर्षों का अपना इतिहास दोहराते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने इस बार भी गणतंत्र दिवस पर पद्म पुरस्कारों द्वारा देश की साधारण जनता को उनके असाधारण कार्यों के लिए देश की तरफ से एक सम्मान दिया। हालांकि कुछ विवाद भी उठे हैैं, लेकिन देखा जाए तो मोदी सरकार ने अभिजात्य घेरे में दशकों से बंद इन पुरस्कारों को आम जन के द्वार तक पहुंचा दिया है।

मोदी ने बदली पद्म पुरस्कार देने की प्रक्रिया

भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में शुमार पद्म पुरस्कार कला, समाज सेवा, विज्ञान, इंजीनियरिंग, व्यापार, उद्योग, चिकित्सा, साहित्य, शिक्षा, खेलकूद और सिविल सेवा इत्यादि के संबंध में दिए जाते हैं। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 2014 के पहले ये पुरस्कार एक तरह से विशिष्ट लोगों तक सीमित थे। वीआइपी कल्चर की परंपरा को खत्म करने की पहल करने वाली मोदी सरकार ने न्यू इंडिया के निर्माण में हर नागरिक के योगदान को महत्व देते हुए पद्म पुरस्कार देने की पूरी प्रक्रिया को बदल दिया। अब व्यक्ति के संपर्क अथवा पहुंच के बजाय उसके काम को ज्यादा महत्व दिया जाना शुरू हुआ है।

पुरस्कार के नामांकन को ऑनलाइन और पारदर्शी कर दिया गया

पहले प्रधानमंत्री और कुछ प्रभावशाली मंत्रियों के हाथ में यह होता था कि ये पुरस्कार किन लोगों को दिए जाएं? अब इसमें आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया गया है। एक तो नामांकन को ही ऑनलाइन और पारदर्शी कर दिया गया है ताकि कोई भी इन पुरस्कारों के लिए आवेदन कर सके। यही नहीं कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की गई है। इस समिति में अन्य लोगों के अतिरिक्त विभिन्न प्रतिष्ठित विद्वानों, शिक्षाविदों, समाजशास्त्रियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को रखा गया है। समिति को स्पष्ट निर्देश है कि वह जाति, मजहब या क्षेत्र आदि से परे जा कर और सिर्फ उच्चवर्गीय लोगों तक सीमित न रहकर देश के सुदूर कोनों तक में उत्कृष्ट कार्य कर रहे लोगों की सूची तैयार करे।

2014 के बाद गांवों, कस्बों में गुमनाम रहने वालों को मिला पद्म पुरस्कार

यह अनायास नहीं है कि 2014 के बाद देश के ऐसे अतिसाधारण लोगों को पद्म पुरस्कार मिल रहे हैं जो आमतौर पर अखबारों की सुर्खियों, टेलीविजन की सनसनीखेज खबरों अथवा बड़े-बड़े समारोहों में दिखाई नहीं पड़ते, बल्कि इन्होंने वास्तव में समाज-देश के लिए असाधारण कार्य किया है। इस प्रकार से गांवों, कस्बों और छोटे-छोटे शहरों में रहने वाले उन लोगों को मोदी सरकार ने सम्मानित करना शुरू किया है जो गुमनामी में रहकर नाम-इनाम की परवाह किए बिना निष्काम भाव से समाज-देश में बदलाव लाने के लिए जमीनी स्तर पर सार्थक कार्य कर रहे हैैं।

2020 के पद्म पुरस्कारों की सूची में दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक शामिल हैं

जरा वर्ष 2020 के पद्म पुरस्कारों की सूची को ही देखें। कई नाम ऐसे हैं जिन्हें शायद ही कोई जानता था। बड़ी बात यह है कि जिस मोदी सरकार को दलित, आदिवासी या अल्पसंख्यक विरोधी कहा जाता है उसने बड़ी संख्या में इन समुदाय के लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया है।

राजस्थान की मैला ढोने वाली, मेघालय की आदिवासी किसान महिला हुईं सम्मानित

इनमें कभी मैला ढोने वाली अतिदलित समुदाय की राजस्थान की उषा चौमर, केरल के दलित सामाजिक कार्यकर्ता एमके कुंजोल, हल्दी की खेती को एक लाभकारी आंदोलन में बदल देने वाली मेघालय की आदिवासी किसान महिला ट्रिनिटी साइओ, बीज माता के नाम से प्रसिद्ध महाराष्ट्र के एक गांव की रहने वाली आदिवासी महिला राहीबाई सोमा पोपेरे, लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले फैजाबाद के मोहम्मद शरीफ, राजस्थान के भजन गायक रमजान खान उर्फ मुन्ना मास्टर, दो दशकों से अधिक समय से बच्चों को मुफ्त शिक्षा प्रदान कर रहे जम्मू-कश्मीर के दिव्यांग सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अहमद टाक, 1984 के भोपाल गैस त्रासदी के बचे लोगों के लिए संघर्ष करने वाले अब्दुल जब्बार और गुजराती व्यंग्यकार एवं शिक्षाविद शहाबुद्दीन राठौड़ प्रमुख हैैं।

पद्म सम्मान पाने वाली हस्तियों में 19 मुसलमान शामिल

आज जब यह माहौल बनाया जा रहा है कि यह सरकार मुसलमानों के खिलाफ है तब यह देखा जाना चाहिए कि पद्म सम्मान पाने वाली हस्तियों में 19 मुसलमान शामिल हैं। देश में सीएए और एनआरसी को लेकर चल रहे विरोध-प्रदर्शनों और मुसलमानों के उत्पीड़न के नाम पर वितंडा खड़ा करने वालों को माकूल जवाब इस सम्मान में भी नजर आता है कि देश में मुसलमानों को बराबर का हक और सम्मान हासिल है।

पाक के पूर्व नागरिक-गायक अदनान सामी को लेकर सवाल उठे

पाकिस्तान के पूर्व नागरिक-गायक अदनान सामी को पुरस्कृत करने पर कुछ लोगों द्वारा सवाल उठाए जा रहे हैैं, लेकिन अदनान सामी को पद्मश्री देकर सरकार ने देश-दुनिया को एक साथ कई जवाब दे दिए हैं। अदनान सामी को सम्मानित करना स्पष्ट संदेश है कि भारतीय संविधान में आस्था रखने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भारत सरकार नहीं है। साथ ही यह कि पाकिस्तान या किसी मुस्लिम देश से आए मुसलमान को सरकार गले लगाने के लिए तैयार है। यह हास्यास्पद है कि अदनान सामी को पद्म सम्मान देने की घोषणा पर सबसे अधिक आपत्ति कांग्रेस के नेताओं ने जताई। पता नहीं क्यों वे यह भूल गए कि खुद कांग्रेस के सत्ता में रहते उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिले।

पद्म सम्मान पाने वाले नामों के जरिये एक संदेश दिया गया है कि सबका साथ, सबका विकास

पद्म सम्मान पाने वाले नामों के जरिये एक तरह से अतिवादियों, अस्मिताई राजनीतिबाजों और लुटियन दिल्ली को भी यह एक संदेश दिया गया है कि सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास ही इस सरकार का मूल मंत्र है। स्पष्ट है कि वह दौर बीत गया जब पहुंच वालों को ही पुरस्कार मिलते थे।

( लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं )