[ संजय गुप्त ]: भारत गलवन घाटी में चीन की धोखेबाजी का जवाब देने के लिए प्रतिबद्ध है, इसे प्रधानमंत्री ने लेह दौरे के अपने उस संबोधन से और अच्छी तरह स्पष्ट कर दिया जिसमें उन्होंने चीन को विस्तारवादी बताया। चीनी दुस्साहस के प्रतिकार का सबसे सही तरीका यही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर उसकी मजबूत पकड़ को ढीला किया जाए। इससे ही उसे सबक मिलेगा, क्योंकि वह अपनी आर्थिक ताकत के जरिये अपने विस्तारवादी एजेंडे को बढ़ा रहा है।

आखिर भारत चीन के आर्थिक चंगुल में क्यों फंसा

यह बहस का विषय हो सकता है कि आखिर भारत चीन के आर्थिक चंगुल में क्यों फंसा, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि जब चीनी कंपनियां सस्ता माल उपलब्ध कराएंगी तो कोई भी देश उन्हें खरीदने के लिए लालायित होगा। आज चीन के सस्ते कच्चे माल और उत्पादों के मामले में जो स्थिति भारत की है वही दुनिया के अन्य देशों की भी। चीन सस्ते उत्पाद उपलब्ध कराने में इसलिए सफल हुआ, क्योंकि बीते चार दशकों में इसके लिए उसने न केवल एक अभियान छेड़ा, बल्कि अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर अपने निर्यात को आकर्षक भी बनाया। इसके चलते ही वह दुनिया का कारखाना बन गया।

सीमा विवाद सुलझाने के लिए बात होती रही, लेकिन भारत ने इस पर गौर नहीं किया

भारत 1962 के युद्ध के बाद कई दशकों तक तो चीन से सशंकित रहा, लेकिन बाद में जब चीनी सत्ता ने अपना रुख बदला तो भारत भी उससे दोस्ताना संबंध कायम करने पर सहमत हो गया। इन दोस्ताना संबंधों के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए बात होती रही, लेकिन भारत ने इस पर गौर नहीं किया कि चीन इस विवाद को सुलझाने का इच्छुक नहीं। हम यह भी नहीं देख सके कि चीन किस तरह पाकिस्तान को हमारे खिलाफ इस्तेमाल कर रहा है। हम उसकी संवेदनशीलता की तब भी चिंता करते रहे जब वह अरुणाचल और कश्मीर को लेकर अपनी बदनीयती दिखाता रहा। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में गलियारे का निर्माण भी उसकी बदनीयती का प्रमाण है।

59 एप पर पाबंदी का चीन पर असर दिखने लगा, डब्ल्यूटीओ जाने की दी धमकी

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का भारत में शरण लेना चीन को नागवार गुजरा और वह अभी भी उनके प्रति आक्रामक है। अब जब चीन ने अपने विस्तारवादी इरादे खुलकर जाहिर कर दिए हैं तब फिर इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि भारत अपनी रणनीति बदले। इस बदली हुई रणनीति के तहत चीन के 59 एप पर पाबंदी लगाने के साथ उसकी कंपनियों को तमाम क्षेत्रों से बाहर किया जा रहा है। इसका चीन पर असर दिखने लगा है। उसने अपने एप पर पाबंदी के खिलाफ डब्ल्यूटीओ जाने की धमकी दी है। इससे उसे कुछ हासिल होने वाला नहीं, क्योंकि वह खुद डब्ल्यूटीओ के नियमों का उल्लंघन करता है।

59 एप पर पाबंदी से चीनी कंपनियों को अरबों रुपये की चोट पहुंच सकती है

एक आकलन के अनुसार 59 चीनी एप पर पाबंदी से चीनी कंपनियों को अरबों रुपये की चोट पहुंच सकती है। तकनीक के क्षेत्र में भारत में पैठ बनाने के उनके इरादों पर भी पानी फिरेगा। आइटी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सही कहा कि चीनी एप पर पाबंदी एक तरह की डिजिटल स्ट्राइक है। यह भी आवश्यक है कि चीन के खिलाफ विश्व स्तर पर जो आवाज बुलंद हो रही है उसमें भारत अपना सुर मिलाए। वैसे भी विश्व समुदाय चीन से पहले से ही खफा है, क्योंकि उसकी लापरवाही से ही कोविड-19 महामारी दुनिया भर में फैली।

गलवन घाटी की घटना के बाद कई देशों ने भारत से सहानुभूति जताई

गलवन घाटी की घटना के बाद कई देशों ने भारत से सहानुभूति भी जताई है। इनमें विकसित देश भी हैं। यह अच्छा हुआ कि अन्य देशों के साथ भारत ने भी यह मांग की है कि इसकी तह तक जाया जाए कि कोरोना वायरस वुहान से निकलकर सारी दुनिया में कैसे फैला?

चीन को अहसास होना चाहिए कि 1962 वाला भारत नहीं है

चीन को जवाब देने के लिए सैन्य मोर्चे पर भी तैयारी समय की मांग है। भारत ने अपनी सेनाओं के लिए राफेल समेत अन्य लड़ाकू विमान और हथियार एवं उपकरण जुटाने की तैयारी तेज कर दी है। चीन को यह अहसास होना चाहिए कि यह 1962 वाला भारत नहीं है। चीन को यह संदेश देना जरूरी है कि अगर उसने भारत की जमीन हथियाने की कोशिश की तो उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। चीन ने कीमत चुकानी शुरू भी कर दी है। अहंकारी चीनी सत्ता के सिर उठा लेने के बाद यह आवश्यक है कि सभी राजनीतिक दल उसके खिलाफ एकजुट हों।

कांग्रेस और वामदल देश की एकजुटता में बाधक

यह दुखद ही नहीं, शर्मनाक भी है कि कांग्रेस और वामदल इस एकजुटता में बाधक बन रहे हैं। राहुल गांधी मोदी सरकार और प्रधानमंत्री को लांछित करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। वह छल-कपट का सहारा भी लेने में लगे हुए हैं। जिस दिन प्रधानमंत्री लेह में थे उसी दिन उन्होंने एक वीडियो जारी किया जिसमें कथित तौर पर लद्दाख के कुछ निवासियों के हवाले से यह बताया गया कि गलवन के हालात को लेकर सरकार जो कह रही है वह सही नहीं। बाद में पता चला कि लद्दाख के ये कथित नागरिक कांग्रेसी नेता या कार्यकर्ता हैं। यह नकारात्मकता की हद है।

राहुल की नकारात्मक बातों से देश की छवि खराब होती है

राहुल नकारात्मक बातों से देश की छवि खराब करने के साथ ही राष्ट्रीय हितों पर चोट करते दिख रहे हैं। उनकी बेजा बयानबाजी पर भाजपा ने जो पलटवार किया कि उससे यह पता चला कि संप्रग शासन के वक्त कांग्रेस ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी से एक वैचारिक समझौता किया। यह समझौता सोनिया और राहुल की वामपंथी सोच को ही उजागर करता है।

राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास से चंदा मिला 

कांग्रेस को साफ करना चाहिए कि आखिर इस समझौते से देश को क्या लाभ हुआ? अब तो इसके आंकड़े भी सामने आ रहे हैं कि 2004 में चीन के साथ जो व्यापार घाटा 1.1 अरब डॉलर का था वह 2013-14 में बढ़कर 36.2 अरब डॉलर का हो गया । भाजपा का आरोप तो यह भी है कि कांग्रेसी नेताओं के वर्चस्व वाले राजीव गांधी फाउंडेशन को चीनी दूतावास से जो चंदा मिला उसके एवज में चीन के आर्थिक हितों का पोषण किया गया।

चीन से व्यापार घाटे को बढ़ाना सरकार की ही नहीं अपितु कारोबारियों की देन है 

मोदी सरकार इस कार्यकाल में चीन के साथ व्यापार घाटे को तेजी से पाटने की कोशिश कर रही थी। यह कोशिश तभी सफल होगी जब हमारे कारोबारी भी यह ठान लेंगे कि उन्हें चीन से सस्ता माल नहीं मंगाना। चीन से व्यापार घाटा अकेले सरकार की देन नहीं। तमाम कारोबारियों ने मैन्यूफैक्चरिंग बंद कर चीन से माल मंगाना शुरू कर इस घाटे को बढ़ाया। अब उन्हें इसे घटाने का काम करना चाहिए।

चीन पर आर्थिक निर्भरता को न्यूनतम स्तर पर लाने की जरूरत है

आत्मनिर्भर भारत अभियान का एक बड़ा मकसद चीन पर आर्थिक निर्भरता कम करना ही है। चीन पर आर्थिक निर्भरता को न्यूनतम स्तर पर लाने की जरूरत है। समय आ गया है कि देशवासी हमारे सैनिकों को नुकसान पहुंचाने वाले दुस्साहसी चीन के प्रतिकार में सरकार का साथ कंधे से कंधा मिलाकर दें।

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