पीयूष द्विवेदी। वर्तमान वैश्विक महामारी के प्रकोप ने जीवन के लगभग सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया है। शिक्षा भी इससे अछूती नहीं है। इस दौर में शिक्षा के क्षेत्र में एक तरफ जहां विविध प्रकार की चुनौतियां खड़ी हुई हैं, वहीं उन चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न प्रयोग भी हो रहे हैं। प्राथमिक व माध्यमिक से लेकर उच्च शिक्षा स्तर तक शिक्षण संस्थानों द्वारा ऑनलाइन पढ़ाई करवाई जा रही है। शहर तो शहर, गांवों में भी ऑनलाइन अध्ययन-अध्यापन की यह व्यवस्था कमोबेश देखने-सुनने में आने लगी है। वीडियो कांफ्रेंसिंग से लेकर संचार व संपर्क के अन्य माध्यमों तक से अध्यापक आज घर बैठे छात्रों को पढ़ाने में लगे हैं।

इन शैक्षिक नवाचारों के बीच ही पिछले दिनों देश के प्रतिष्ठित दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई, जिसका सार यह था कि वर्तमान महामारी द्वारा पैदा परिस्थितियों के कारण स्नातक और परास्नातक कर रहे अंतिम वर्ष या सेमेस्टर के छात्रों के लिए विश्वविद्यालय ओपन बुक मोड में परीक्षा करवाने जा रहा है। इस तरीके से परीक्षा में यह होगा कि छात्रों को तय प्रारूप के अंतर्गत प्रश्न भेजे जाएंगे जिन्हें उनको एक निर्धारित समय के भीतर लिखकर ऑनलाइन भेजना होगा। इस विषय में दिल्ली विश्वविद्यालय के डीन एग्जामिनेशन द्वारा दी गई जारी जानकारी के मुताबिक प्रत्येक प्रश्न पत्र के लिए दो घंटे का समय निर्धारित किया जाएगा, कुल छह प्रश्न होंगे जिसमें से विद्यार्थियों को चार प्रश्न हल करने होंगे और एक घंटे के अंदर उसे वापस भेज देना होगा। 

विश्वविद्यालय प्रशासन की इस घोषणा के बाद से ही डीयू के छात्र संघ तथा दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ एकसाथ इसके विरोध में खड़े हैं। इस घोषणा के बाद ट्विटर पर डीयू अगेन्स्ट ऑनलाइन एग्जाम हैश टैग के साथ हजारों की तादाद में विद्याíथयों ने ट्वीट कर इस निर्णय के प्रति अपना विरोध व्यक्त किया।

आखिर विश्वविद्यालय के इस निर्णय का इतना विरोध क्यों हो रहा है? गौर करें तो इस विरोध के पीछे कारणों की लंबी फेहरिश्त नजर आती है। 

दरअसल दिल्ली विश्वविद्यालय जिस प्रकार की परीक्षा लेने की तैयारी कर रहा है, उसके लिए छात्रों के पास कंप्यूटर-लैपटॉप या स्मार्टफोन के साथ-साथ अच्छे इंटरनेट की उपलब्धता भी आवश्यक है। ऐसे में जिन छात्रों के पास ये तकनीकी संसाधन नहीं होंगे, वे कैसे इस परीक्षा में भाग ले पाएंगे? आखिर वह कौन-सा तंत्र है जिसने यह सुनिश्चित कर लिया कि छात्रों के पास कंप्यूटर-लैपटॉप जैसे संसाधन तथा बढ़िया इंटरनेट भी उपलब्ध होंगे? क्या डीयू प्रशासन की तरफ से कभी अपने सभी छात्रों को यह संसाधन उपलब्ध कराए गए थे? जवाब है, नहीं। 

तो जब ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो इस संकट काल में अचानक विश्वविद्यालय प्रशासन किस आधार पर छात्रों से ऑनलाइन परीक्षा देने की अपेक्षा कर रहा है? इतना ही नहीं, ऑनलाइन परीक्षा का जो प्रारूप विश्वविद्यालय ने तय किया है, उसमें न्याय की भावना भी कम ही दिखती है। क्या यह संभव नहीं कि कोई कम पढ़ा छात्र इस ओपन बुक परीक्षा में किताब की सहायता से बेहतर कर जाए, जबकि कोई खूब पढ़ा छात्र तकनीकी संसाधनों के अभाव में परीक्षा देने से ही वंचित रह जाए। जाहिर है, ऑनलाइन परीक्षा का यह प्रारूप फिलहाल किसी भी ढंग से उचित व व्यावहारिक नहीं प्रतीत होता।