[ सचिन पायलट ]: कोविड इस दौर की सबसे बड़ी त्रासदी है। हम किसी तरह इस महामारी की पहली लहर से निकले ही थे कि उसकी दूसरी लहर ने दस्तक देकर दहशत फैला दी। पहली लहर में जहां नंगे पांव पलायन करते मजदूरों की दर्दनाक तस्वीरें आम रहीं तो इस दूसरी लहर ने हमारी प्रशासनिक क्षमताओं और इंफ्रास्ट्रक्चर की कलई खोलकर रख दी है। फिर भी राहत की कोई राह नहीं दिख रही। शोकसंतप्त परिवार अभी भी इस संक्रमण से भयाक्रांत हैं। बच्चे, बूढ़े और जवानों के अलावा टीका लगवा चुके लोग भी इस महामारी के कोप से बच नहीं सके। श्मशानों से लेकर कब्रिस्तानों की तस्वीरें इस आपदा की भयावहता को बताती हैं। इसके बावजूद तमाम गुमनाम भारतीय नायक अपनी जिजीविषा से मोर्चे पर डटे हुए हैं। इनमें स्वास्थ्य कर्मियों से लेकर स्वच्छता कर्मी, ऑक्सीजन टैंकर गंतव्य तक पहुंचाने वाले और श्मशान में सक्रिय लोगों तक न जाने कितने तबके शामिल हैं।

सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही नैतिक दायित्व है

इस पूरे परिदृश्य में जवाबदेही के स्तर पर स्वाभाविक रूप से नाकामी दिखी है। किसी लोकतंत्र में जवाबदेही को केवल चुनावों से ही जोड़कर नहीं देखा जा सकता। जवाबदेही तो वास्तव में एक दैनिक प्रक्रिया है। यह तो संस्थानों की अखंडता से तय होती है। अदालतें, लोकसेवक, ऑडिटर्स और स्वतंत्र मीडिया यह सुनिश्चित करें कि सरकारी नीतियां और कदम सार्वजनिक कल्याण के लक्ष्य के प्रति उत्तरदायी रहें। सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही एक नैतिक दायित्व है, जो अंतरात्मा और आत्मविश्लेषण से प्रभावित होती है।

देश ने कई क्षेत्रों में खूब तरक्की की, लेकिन स्वास्थ्य ढांचे में कई कमियां रह गईं 

नि:संदेह आजादी के बाद से देश ने कई क्षेत्रों में खूब तरक्की की है, लेकिन स्वास्थ्य ढांचे में कई कमियां रह गई हैं। टीकाकरण अभियान इसकी गवाही देता है। अप्रत्याशित गति से वैक्सीन विकसित करने के बावजूद हमारा प्रशासनिक, आर्थिक और सरकारी ढांचा टीकाकरण अभियान को अपेक्षित गति नहीं दे पाया है। इतना ही नहीं, महामारी के बीच जब वायरस के नए प्रतिरूप हमारे देश की सीमाओं में घुसे तो उनकी भी अनदेखी की गई। पहली लहर के शांत पड़ने के बाद सरकार ने सोचा कि उसने इस रक्तबीज रूपी राक्षस से मुक्ति पा ली। हम भूल गए कि ऐसे दानव का एक सिर कट जाए तो उसका दूसरा सिर निकल आता है। जिस दौर में हमें महामारी से निपटने के लिए व्यापक स्तर पर तैयारी करनी चाहिए थी, उस दौरान हम जीत के झूठे दंभ में डूबे रहे। इस बीच पांच राज्यों में चुनाव हुए और बड़े पैमाने पर र्धािमक जमावड़े भी। ये संक्रमण को कई गुना बढ़ाने वाले साबित हुए। इन्होंने भारत को कोरोना के नए और खतरनाक प्रतिरूपों की प्रयोगशाला में बदल दिया।

आने वाले महीनों में और भयावह मंजर नजर आने वाला

फिलहाल जान-माल के जारी भारी नुकसान के बावजूद आने वाले महीनों में और भयावह मंजर नजर आने वाला है। तमाम लोग गरीबी और भुखमरी के शिकार होंगे और किस्म-किस्म की अन्य बीमारियों की चपेट में आ जाएंगे। ऐसे में राष्ट्रीय-प्रादेशिक एवं स्थानीय प्रशासन के प्रत्येक स्तर पर किसी सुसंगत एवं समन्वित रणनीति के अभाव में महामारी के तगड़े झटके महसूस किए जाएंगे, जिन्हें कई पीढ़ियां याद रखेंगी। हमारी सरकारों के तीनों स्तरों की अपनी खूबियां, संसाधन और पहुंच की ताकत है। उनके बीच समन्वय के अभाव से ही मौजूदा संकट इतना विकराल हुआ है। विभिन्न स्तरों पर सरकारों के बीच परस्पर विश्वास नागरिकों का अपनी सरकारों में भरोसा बहाल करने के लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण है।

प्रभावी एवं पारदर्शी संवाद वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता

स्पष्ट, प्रभावी एवं पारदर्शी संवाद इस वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता है। इससे भरोसा बहाल होने के साथ-साथ अफवाहों और दुष्प्रचार पर भी प्रहार होगा। यह समय सत्य को स्वीकारने और सहानुभूति दिखाने का है। ऐसे में सरकार को आलोचनाओं के स्वरों पर प्रतिघात के बजाय उन्हें स्वीकार करना चाहिए। वहीं इंटरनेट मीडिया मंच भी परेशानियां बढ़ाने के बजाय उपयोगी जानकारियां आगे बढ़ाएं। करोड़ों भारतीयों के कष्ट दूर करने के लिए हम सभी को कंधे से कंधा मिलाकर काम करना होगा।

वैश्विक चुनौती की मांग, संसाधनों को करें साझा

यह समय विज्ञानी राष्ट्रवाद का नहीं है। वैश्विक चुनौती यही मांग करती है कि हम संसाधनों को साझा करें। साथ ही राष्ट्रीय संसाधनों का उपयोग महामारी संबंधी आर्पूित एवं उपकरणों के लिए किया जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों ने देर से ही सही, लेकिन आक्सीजन आर्पूित बढ़ाई, मगर अभी भी काफी कुछ किया जाना शेष है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमें महामारी से जुड़ी दवाओं के पेटेंट निरस्त करने को लेकर दबाव बनाए रखना होगा। अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मुश्किल में हमारी ओर मदद का हाथ बढ़ा रहा है, जिसे हमें पूरी गरिमा के साथ थामना चाहिए।

सभी कार्य नि:स्वार्थ भाव और बिना किसी पक्षपात के किए जाने चाहिए

असल में यह समय मानवतावाद का है। इस समय किसी और वाद के फेर में नहीं पड़ना चाहिए। सत्य और करुणा के भाव ही स्थापित होने चाहिए। सभी कार्य नि:स्वार्थ भाव और बिना किसी पक्षपात के ही किए जाने चाहिए। हमारा प्रशिक्षण, हमारा अनुभव और हमारा कौशल राष्ट्र के काम आना चाहिए। उसे किसी सरकारी विभाग, संगठन या वैचारिक आग्रह में न उलझने दें। हमें सुनिश्चित करना होगा कि हमारी कथनी-करनी में गरिमा, करुणा और सहानुभूति जैसे भाव प्रत्यक्ष दिखें।

महामारी पर विजय प्राप्त करने के लिए तीन स्तरीय रणनीति बनानी होगी

महामारी पर विजय और राष्ट्र की मर्माहत आत्मा को आसानी से सांत्वना नहीं मिलेगी। इसके लिए तीन स्तरीय रणनीति बनानी होगी। एक तो व्यापक स्तर पर टीकाकरण करना होगा। दूसरा, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना होगा। तीसरे, स्वास्थ्य से जुड़े वितरण तंत्र को बेहतर बनाने के साथ ही प्रत्येक व्यक्ति तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने की राह में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करना होगा। टीकाकरण में डाकघरों और सामुदायिक सेवा केंद्रों के नेटवर्क का लाभ उठाया जाना चाहिए। वैश्विक स्तर पर सफल नुस्खों को भी आजमाया जाए। मास्क के उपयोग को बढ़ावा दिया जाए। जरूरतमंदों को नकद वित्तीय मदद मुहैया कराएं। उन उपचार पद्धतियों को अपनाया जाए, जिनसे इस महामारी पर काबू पाने में मदद मिली हो।

कोरोना दौर में राष्ट्रीय नेतृत्व को एकजुट होकर लोगों की सहायता करनी चाहिए

इस दौर में हमारे राष्ट्रीय नेतृत्व को अपने भीतर झांकना चाहिए। मतभेदों को किनारे रखकर एकजुट होकर लोगों की सहायता करनी चाहिए। राजनीतिक एवं वैचारिक संबद्धता से ऊपर उठकर इस संकट के समाधान का संकल्प लेना चाहिए। कोई व्यक्ति या संगठन यह अकेले करने में सक्षम नहीं। याद रहे कि हमारे लोगों का वर्तमान और भविष्य दांव पर लगा हुआ है।

( लेखक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं )