[मनप्रीत बादल]। अगर मनमोहन सिंह ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ थे तो फिर मुझे कहना होगा कि यह एक सुखद और गंभीर घटना थी। वास्तव में उनका जीवन भारत के लोगों विशेषकर युवाओं के लिए महान सबक और प्रेरणा प्रदान करता है। मनमोहन सिंह का प्रारंभिक जीवन एक ऐसे लड़के की कहानी है जिसने अपनी मां को कम उम्र में खो दिया था और जिसका परिवार विभाजन से विस्थापित हो गया था। उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले वह

अपने परिवार में शायद पहले सदस्य थे। लगभग हर परीक्षा में वह अव्वल रहे। कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने के लिए उन्होंने छात्रवृत्ति हासिल की जहां उन्होंने प्रसिद्ध एडम स्मिथ (पिछले विजेताओं में जेएम कीन्स) सहित कई पुरस्कार जीते। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डॉक्टर ऑफ फिलोसॉफी हासिल करने के बाद वह आधुनिक युग के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों में से एक के रूप में दुनिया भर में पहचान बनाते गए।

भाजपा की ‘प्रचार मशीन’ द्वारा प्रसारित की जा रही अतिरंजित कथाओं की अपेक्षा उनकी यह उपलब्धि भरी कहानी निश्चित रूप से आज की युवा पीढ़ी के लिए कहीं अधिक प्रेरणादायी है। अपने पूरे जीवन में मनमोहन सिंह ने कभी भी किसी पद के लिए इच्छा नहीं जताई। प्रधानमंत्री जैसे किसी बड़े सार्वजनिक कार्यालय की महत्वाकांक्षा भी उनकी कभी नहीं रही। लेकिन जब भी कभी देश को जरूरत पड़ी तो यह मृदुभाषी, प्रतापी देशभक्त न केवल आगे आया, बल्कि अपने कर्तव्य से बढ़कर भी कार्य किया। वह चाहे भारतीय शिक्षण संस्थानों के लिए उनका योगदान हो या सरकारी संस्थानों के लिए बतौर सलाहकार विभिन्न भूमिकाएं रही हों या फिर रिजर्व बैंक के सलाहकार के रूप में उनका कार्यकाल, उन्होंने परिश्रम और लगन से कार्य करते हुए ईमानदारी के उच्चतम मानक स्थापित किए हैं।

जब भारतीय अर्थव्यवस्था गर्त की ओर जा रही थी और आइजी पटेल ने वित्त मंत्रालय के सामने हाथ खड़े कर दिए थे तो पूर्व मंत्री नरसिम्हा राव ने देश को आर्थिक संकट से बचाने के लिए मनमोहन सिंह की ओर रुख किया। जिस नॉर्थ ब्लॉक में अव्यवस्था और असमंजस की स्थिति बरकरार थी, वहां नए वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने सकारात्मक तरीके से सही दिशा में काम शुरू किया। आर्थिक सुधारों को शुरू करते हुए उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की तमाम बुराइयों को उखाड़ फेंका। वह इस बात के प्रति सचेत थे कि यह कार्य अधूरा नहीं रहना चाहिए। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था की ओवरहॉलिंग का बीड़ा उठाया। उनके प्रयासों से देश को गौरव और समृद्धि मिली, जिसका आनंद हम आज ले रहे हैं।

एक प्रधानमंत्री के रूप में भी मनमोहन सिंह का योगदान असाधारण रहा। भारतीय जनता पार्टी के हालिया आंकड़े इस तथ्य को झुठला नहीं सकते कि एनडीए के शासनकाल के दौरान इस सदी के आरंभिक दौर में छद्म ‘इंडिया शाइनिंग’ अभियान की अपेक्षा मनमोहन सिंह के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रगति कहीं ज्यादा सही और समावेशी थी। मनमोहन सिंह की नीतियों की वजह से ‘मनरेगा’ जैसी योजना के परिवर्तनकारी प्रभाव रहे जो विशेष रूप से ग्रामीण भारत में वास्तविक मजदूरी और खर्च करने की शक्ति के संदर्भ में सामने आए। भारत-अमेरिका परमाणु समझौते की सफलता ने भारत के परमाणु अलगाव को समाप्त कर दिया। उन्होंने दूरसंचार और हवाई यात्रा को आम आदमी के लिए सुलभ करा दिया।

लंबे समय से व्याप्त पोलियो जैसी बड़ी स्वास्थ्य समस्या को दूर करने के लिए देशव्यापी कार्यक्रम की शुरुआत की गई। शहरी नवीनीकरण योजनाएं बनीं। नए आइआइटी, आइआइएम के अलावा नॉलेज सिटी का निर्माण हुआ। जीएसटी के अलावा खुदरा और बीमा सुधारों का ब्लूप्रिंट मनमोहन सिंह के कार्यकाल में ही तैयार किया गया। सबसे महत्वपूर्ण रहा सरकार के साथ नागरिकों का संपर्क और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए आरटीआइ को शुरू करना। ये सभी वास्तविक उपलब्धियां हैं केवल नारेबाजी नहीं।

एक वह ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ हैं जिनकी वजह से बढ़िया जीडीपी हासिल हुई और कई संस्थानों की स्थापना हुई, दूसरी ओर वह प्रधानमंत्री जिन्होंने जानबूझकर नोटबंदी जैसी दुर्घटनाएं करवाईं और देश के शीर्ष संस्थानों को कमजोर कर दिया। जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं, भाजपा ने फिर से गांधी परिवार को निशाना बनाने के लिए पुराने हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं। वह एक ऐसे आडंबरी अधिकारी के संस्मरणों पर आधारित फिल्म को बढ़ावा दे रही है जो व्यावसायिक शुचिता से ज्यादा अपनी निजी अहमियत को आंकता था।

हैरानी होती है कि दस साल के कार्यकाल में भी जो केवल चार साल मीडिया सलाहकार रहा, क्या वह वाकई इतना प्रभावशाली था कि प्रधानमंत्री कार्यालय के सभी गोपनीय मामलों की उसे जानकारी होती थी। सिंह ने इस विवाद से खुद को जिस विनम्र भाव और प्रतिष्ठा के साथ अलग कर लिया है वह सर्वोत्कृष्ट है। दूसरी ओर पुस्तक के लेखक और फिल्म के निर्माताओं के प्रति कड़ा रुख अपनाया जाना चाहिए।

कोई यह मान लेगा कि लोग अपनी गलतियों से सीखते हैं, लेकिन यह भाजपा के लिए सही नहीं है। वर्ष 2004 के चुनावों में भाजपा के कुछ वर्गों ने सोनिया गांधी पर सियासी हमला किया और उनके भारत का प्रधानमंत्री होने के अधिकार पर सवाल उठाया, जबकि उनके नेतृत्व में यूपीए ने निर्णायक जनादेश हासिल किया था। सोनिया गांधी द्वारा देश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी वाला पद छोड़ने के कारण भाजपा बेचैन हो गई थी। उपलब्धियों वाले जीवन, बेदाग छवि और सद्चरित्र व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद के लिए नामित करके उन्होंने देश को एक महान नेता दिया।

पिछले पांच वर्षों में अपने खराब प्रदर्शन और हाल के चुनावी झटके से घबराई भाजपा अब उम्मीद कर रही है कि ‘मुर्गा और बैल’ की एक कहानी उसे 2019 के चुनावों में काफी फायदा पहुंचा सकती है, लेकिन यह उसके लिए दुर्भाग्य की बात है कि कल्पनाओं में किए गए कार्यों के आधार पर भारतीय मतदाता वोट नहीं देता।

[वित्त एवं योजना मंत्री, पंजाब सरकार]

यहां पढ़ें 7th Pay Commission की सिफारिशें, सरकारी कर्मियों को मिलेगा लाखों का एरियर 
पश्चिम बंगाल के तीन बैंकों के खाते में अचानक जमा हुए हजारों रुपये, इस स्कीम से आया पैसा 
IAS अधिकारी चंद्रकला ने पत्राचार से किया था एमए, कुछ ही वर्षों में एक करोड़ की हुई संपत्ति 
अंतरिक्ष में इतिहास बनाने की तरफ जापान आज बढ़ा रहा है बड़ा कदम, जानें कैसे और क्‍यों  
देश के नौनिहालों को मिल रही शिक्षा का बुरा हाल, 56 फीसद नहीं जानते सामान्‍य गणित