[डॉ. विकास सिंह]। ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की शुरुआत बहुत उत्साह और वाहवाही के साथ की गई थी। इसकी अवधारणा और लक्ष्यों की काफी तारीफ की गई थी। इसके अपेक्षित प्रभाव की बात करें तो इसने न केवल आम आदमी की कल्पना को नई उड़ान दी, बल्कि उद्योग जगत की उम्मीदों को भी पुनर्जीवित किया। उद्योग जगत ने इससे व्यापक स्तर पर प्रक्रियाओं में बदलाव की परिकल्पना की थी और उससे भी महत्वपूर्ण यह कि ‘न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन’ की सोच के कार्यान्वित होने की उम्मीद थी।

विनिर्माण क्षेत्र में महज दो फीसद हिस्सेदारी : विनिर्माण क्षेत्र से देश को नई उम्मीदें हैं। ऐसे समय में जब चीन ने खुद को इस संबंध में दुनिया की ‘कार्यशाला’ के रूप में स्थापित किया है, वैश्विक विनिर्माण में हमारा हिस्सा महज दो प्रतिशत है। एक अध्ययन के अनुसार विनिर्माण वैश्विक बाजार में प्रत्येक एक प्रतिशत की वृद्धिशील हिस्सेदारी 50 लाख नई नौकरियां पैदा करेगा। कई लोग यह मानते हैं कि भारत दुनिया के विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर रहा है। इन सबके बीच हमारे नीति निर्माता और राजनेता एक जैसे हैं। एक पक्ष को समग्र समझ और प्रोत्साहन की कमी है, तो दूसरे पक्ष में वास्तविकता की कमी है। इस तरह की योजना की घोषणाओं में काफी कोलाहल सुनने को मिलता है जिन्हें सुनकर कोई भी यकीन कर लेगा कि दुनिया की ‘कार्यशाला’ में भारत के आगमन से चीन के इस संदर्भ में कायम एकाधिकार को खत्म किया जा सकता है। हालांकि यह हकीकत से कोसों दूर है। टेक्सटाइल, चमड़े और जूते के व्यापार का बांग्लादेश और वियतनाम में स्थानांतरित होना इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है।

दो कदम सीधा, एक कदम टेढ़ा : सरकार इस संबंध में कोई भी अवसर नहीं छोड़ रही है। रक्षा, रेलवे, अंतरिक्ष आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों को खोल दिया गया है। विनियामक ढांचे को उदार बनाया गया है। विनिर्माण में मदद करने वाली योजनाओं को एक तरह से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। ‘इज ऑफ डूइंग बिजनेस’ यानी ‘कारोबारी सुगमता’ पर ध्यान देने से उद्देश्य के प्रति विश्वसनीयता बढ़ गई है। सरकार की इस बात के लिए सराहना करने की जरूरत है कि प्रतिस्पर्धा तथा उन्नयन के लिए नई तकनीक से युक्त अनुसंधान विकास के साथ ही गुणवत्ता के बारे में आधुनिक विनिर्माण जरूरतों, विशेषज्ञता व आधुनिक तकनीक, स्पष्टता, परिपक्वता आदि का ध्यान रखा जा रहा है।

बदल रहा है विनिर्माण क्षेत्र : इसकी मुख्य विशेषता अकुशल श्रम और कम पूंजी की तुलना में व्यापक पूंजी और कुशल श्रम पर अधिक निर्भरता है। यहां तकनीकी विशेषज्ञों की कमी है। इस बीच, सरकार कमजोर योजनाओं, गलत कार्यान्वयन वाली कौशल विकास कार्यक्रमों में हजारों करोड़ का निवेश कर रही है। आज उद्योग जगत की कर्ज से दबी दशा ‘मेक इन इंडिया’ की धीमी प्रगति के कारण है, जो एनपीए क्रेडिट की दुर्दशा और अंतत: डूबते उद्योग के दुष्चक्र को बढ़ाने का काम करते हैं। फंडिंग, विशेषज्ञता और नौकरशाही बाधाओं की पैठ जैसी अंतर्निहित चुनौतियों से निराश, हमारी अधिकांश बुनियादी परियोजनाएं या तो पूरी नहीं होती हैं और यदि होती हैं तो उनमें काफी समय लगता है और वे लोगों की जरूरतों के लिहाज से अपर्याप्त होती हैं।

भारत तत्पर है, लेकिन तैयार नहीं : अप्रचलित और अवरोधक रूपरेखाओं को खत्म करना होगा और एक पारदर्शी प्रणाली के साथ इसे बदलना होगा। नवाचार को बढ़ावा देने, कौशल को बढ़ाने और निवेश को आकर्षित करने आदि सुनियोजित तरीके से होना चाहिए। इसे एकल-खिड़की, ऑनलाइन पोर्टल, ईबिज के अतिरिक्त विभिन्न सेवाओं से एकीकृत किया गया है, लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है।

दिवालिया अधिनियम पारित होना तथा जीएसटी का कार्यान्वयन एक अनुकूल कदम है, लेकिन यह सिर्फ छोटे कदम हैं। हमारे नेताओं की सोच के साथ-साथ अंतर्दृष्टि, डिजाइन और वितरित करने की हमारी क्षमता, नौकरशाही का लचीलापन तथा योग्यता ‘मेक इन इंडिया’ के मुख्य पहलू हैं और हमारे कारोबार को जीवंत

करने के लिए यह महत्वपूर्ण है। कम मुद्रास्फीति, कम ब्याज दर और उच्च विकास से युक्त परिवेश प्रतिस्पर्धा के लिए आवश्यक हैं। प्रचलित श्रम कानून और नौकरशाही की परेशानी ही इसे कम करते हैं। इसके अलावा, उद्योग को एक पुनरुद्धार योजना की आवश्यकता है जो बाधाओं को हटा सकती है और अनेक मौजूदा तथा घाटे वाली परियोजनाओं को पुनर्जीवित और पुनर्गठित कर सकती है। हमें भूमि अधिग्रहण, कर संरचना और श्रम सुधारों के लिए नीतियों को तैयार करने की आवश्यकता है। साथ ही निवेश को बढ़ाने, नवाचार को बढ़ावा देने और कौशल विकसित करने की नीतियों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने की जरूरत है।

दिवालिया अधिनियम, जीएसटी अनुकूल पहल है, लेकिन वित्तीय क्षेत्रों में सुधारों को मजबूत और समग्र बनाने की जरूरत है। जब तक मांग को पुनर्जीवित  नहीं किया जाता है, तब तक केवल कॉरपोरेट करों में कटौती करने से निवेश को नहीं बढ़ाया जा सकता है। हमें एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की जरूरत है जो विनियामक मंजूरी को सक्षम बनाता हो, कठोर प्रक्रियाओं को आसान बनाता हो और नीतियों के कार्यान्वयन को गति देता हो और नवाचार तथा परिणामों को पुरस्कृत करता हो। हमारा लक्ष्य विदेशी निवेश के लिए एक साधन के रूप में इसे जोड़ने के साथ भारत को विनिर्माण, डिजाइन व नवाचार के वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना होना चाहिए। यह व्यापक लक्ष्य विनिर्माण क्षेत्र को सुदृढ़ बनाने, अर्थव्यवस्था को तेजी प्रदान करने, रोजगार पैदा करने, आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने और विकसित देशों के संगठन में भारत को शामिल करने के इर्द-गिर्द होना चाहिए।

‘मेक इन इंडिया’ को शुरू हुए पांच वर्ष हो चुके हैं और इसके मूल्यांकन का समय आ गया है। निश्चित रूप से विनिर्माण क्षेत्र में व्यापक परिवर्तन देखने को मिल रहा है जो मुख्य रूप से स्वत: प्रेरित है और एक अच्छी स्थिति में है। भारत में ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को जिस मकसद के साथ शुरू किया गया था, उसे आज वास्तव में हासिल कर लिया गया है या फिर हम उसे हासिल करने की दिशा में कितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, हमें इन चीजों के बारे में भी व्यापक रूप से समझना चाहिए।

[मैनेजमेंट गुरु तथा वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ]