[ डॉ. ब्रजेश शर्मा ]: बीते दिनों आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक में एथनॉल से संबंधित जो कई फैसले लिए गए उनमें एक यह भी था कि सरकारी तेल कंपनियां अब चीनी से बनाए गए एथनॉल की खरीद कर सकेंगी। सरकार को उम्मीद है कि एथनॉल की खरीद बढ़ाकर वह इस वर्ष तेल आयात बिल में एक फीसद की कमी कर सकेगी। भारत सरकार ने 1980 में राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति घोषित की थी। इसके तहत डीजल में जैव ईंधन और पेट्रोल में एथनॉल के मिश्रण को प्रोत्साहित किया जाना था। यह वर्तमान में अनिवार्य 10 प्रतिशत से काफी कम है।

एथनॉल कम प्रदूषण उत्पन्न करता है

उल्लेखनीय है कि ब्राजील में 40-50 प्रतिशत एथनॉल का मिश्रण हो रहा है। अपने देश में सकल घरेलू उत्पाद में सड़क परिवहन का हिस्सा 67 प्रतिशत है। अकेले परिवहन क्षेत्र में ही 72 प्रतिशत डीजल और 23 प्रतिशत पेट्रोल का उपयोग सीएनजी-एलपीजी आदि के अलावा किया जा रहा है। आगे यह खपत कई गुना बढ़ेगी। पेट्रोल में एथनॉल मिश्रण एक ज्यादा व्यावहारिक हल माना जाता है। एथनॉल में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होती है जिससे यह कम प्रदूषण उत्पन्न करता है। 10 प्रतिशत अनिवार्य मिश्रण के लिए वर्तमान में लगभग 400-500 करोड़ लीटर एथनॉल की आवश्यकता है, जबकि उत्पादन तीन सौ करोड़ लीटर ही हो रहा है। इसमें से रासायनिक उद्योगों के अलावा 170 करोड़ लीटर एथनॉल आबकारी-शराब बनाने में चला जाता है। लक्षित आवश्यकता और एथनॉल की उपलब्धता के बीच अभी भी भारी अंतर है।

एथनॉल महुआ से भी हासिल किया जा सकता है

वर्तमान में एथनॉल मुख्यतया: गन्ना से हासिल किया जाता है, लेकिन देश में महुआ भी उसका एक समृद्ध स्नोत है। महुआ के वृक्ष मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश तेलंगाना, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल राज्यों में ठीक-ठाक संख्या में हैैं। इसके एक पेड़ की आयु 50-60 वर्ष तक होती है। 500 किलो महुए से लगभग 350 लीटर एथनॉल प्राप्त किया जा सकता है। देश भर में महुआ की अनुमानित उपज 5 मिलियन मीट्रिक टन है जिसमें से केवल 0.85 मिलियन टन ही एकत्र किया जाता है जो संपूर्ण उपज का लगभग 17 प्रतिशत है। शेष महुआ जो एकत्र नहीं होता, जानवरों या पक्षियों द्वारा खा लिया जाता है अथवा अवैध रूप से देसी शराब बनाने के काम में लाया जाता है। यदि महुआ का समुचित उपयोग किया जाए तो देश में भारी मात्रा में एथनॉल का उत्पादन किया जा सकता है। दुर्भाग्यवश एथनॉल के इस महत्वपूर्ण स्नोत पर भारत सरकार का ध्यान नहीं जा सका है।

महुआ से उत्पादित एथनॉल गन्ना से अधिक लाभकारी है

महुआ से उत्पादित एथनॉल गन्ना से उत्पादित एथनॉल की तुलना में आर्थिक, सामाजिक एवं पर्यावरण दृष्टि से अधिक लाभकारी है। महुए का वृक्ष गन्ने की तरह भारी सिंचाई, आयातित रासायनिक खाद एवं कीटनाशक जैसी अतिरिक्त लागत के बिना प्राकृतिक रूप से विकसित होता है। महुआ से सीधे एथनॉल बनाया जा सकता है, जबकि गन्ने से एथनॉल की प्राप्ति के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है जिससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है। यह पूर्ण रूप से स्वदेशी और पर्यावरण के अनुकूल है जिसमें शून्य लागत आती है। इससे अवैध शराब निर्माण को रोकने में भी मदद मिलेगी। इसके अलावा गरीब और हाशिये पर रहने वाले लोगों, आदिवासियों, महिलाओं के लिए यह अतिरिक्त आय का साधन भी बनेगा। देश भर में फैले विशाल वन क्षेत्र में उपजे महुआ के लिए अतिरिक्त भूमि की आवश्यकता नहीं है। महुआ के पेड़ गन्ने की तुलना में वायु से अधिक कार्बन डाई ऑक्साइड अवशोषित कर अधिक ऑक्सीजन भी देते हैैं।

जल संकट को लेकर चेतावनी

हाल में नीति आयोग ने देश में उभरते जल संकट को लेकर चेतावनी दी है, क्योंकि गन्ना उत्पादक क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर का गंभीर रूप से क्षरण हो गया है। वर्तमान में भारत में कुल बोये गए क्षेत्र का लगभग तीन प्रतिशत गन्ना होता है। एथनॉल के 10 प्रतिशत मिश्रण को प्राप्त करने के लिए भारत को गन्ना उत्पादन के लिए अपने सकल बोये गए क्षेत्र का अतिरिक्त चार प्रतिशत समर्पित करना होगा। जाहिर है कि ऐसे में अन्य जीवन उपयोगी फसलों का उत्पादन प्रभावित होगा। परिणामत: इससे भूजल का भारी ह्वास होगा और खाद्यान्न के मूल्यों में भी वृद्धि हो सकती है। समय आ गया है कि भारत सरकार महुआ से एथनॉल उत्पादन पर गंभीरता से ध्यान दे। ईंधन आवश्यकता को पूरा करने में महुआ से हासिल एथनॉल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।