[लोकमित्र]। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग चुका है, लेकिन न तो सरकार बनाने का रास्ता खत्म हुआ है और न ही इसके लिए प्रयास खत्म हुए हैं। चूंकि राजनीति में संभावनाएं कभी खत्म नहीं होतीं, न ही यहां बनने वाले या बन सकने वाले समीकरणों की कोई सीमा होती है, इसलिए अब एक ऐसे फार्मूले पर काम हो रहा है जिसमें शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों के ही सपने पूरे हो जाएं। इसके लिए कई सुझाव पेश किए गए हैं।

शिवसेना अपनी ही जिद के जाल में फंस जाएगी?

शिवसेना शायद यह तय ही नहीं कर पा रही कि उसे घोषित मांग के अतिरिक्त और क्या क्या चाहिए? इसकी वजह शायद यह है कि शिवसेना को उम्मीद नहीं थी कि ऐसी स्थितियां बनेंगी और वह अपनी ही जिद के जाल में फंस जाएगी? उसे लग रहा था कि वह नखरा दिखाएगी तो भाजपा मान मनौवल करेगी, इसके बाद वह कुछ और अग्रिम धमकियां देकर मान जाएगी जिससे उसकी ताकत की खुशफहमी भी बनी रहेगी और कमजोरियों से निपटने के लिए सुरक्षित समय भी मिल जाएगा। पर शायद भाजपा और शिवसेना दोनों को ही एक दूसरे को लेकर यही गलतफहमी थी कि वह नहीं, अगला झुकेगा, लेकिन जब दोनों में से कोई नहीं झुका तो दोनों के हाथों से लगाम निकल गई।

शिवसेना के मन में भय

भाजपा के साथ तो फिर भी यह भ्रम बनाए रखने का बहाना है कि दोनों पार्टियों की विचारधारा और लक्ष्य एक हैं, लेकिन जब शिवसेना और एनसीपी किसी मोड़ पर आमने सामने होंगी, तब तो दोनों में से किसी के पास मतदाताओं की सहानुभूति पाने का रास्ता नहीं होगा कि व्यापक वैचारिक हितों के लिए उसने अपनी कुर्बानी दी, इसलिए वोटर उसके प्रति सहानुभूति दिखाते हुए इसकी भरपाई करें। एनसीपी शिवसेना या शिवसेना और कांग्रेस के बीच किसी तरह की अनबन में, किसी को भी मतदाताओं से सहानुभूति नहीं मिलेगी। इसके उलट अवसरवादी होने की उलाहनाएं मिलेंगी यह तय है। यही वजह है कि भाजपा के खिलाफ जहर उगलने के बावजूद शिवसेना, एनसीपी के साथ आगे बढ़ने से झिझक रही है, जबकि एनसीपी उसकी हर बात मानने को तैयार है, लेकिन शिवसेना के मन से यह भय नहीं जा रहा कि अनुभवी शरद पवार उसे खा जाएंगे।

शरद पवार ने अपने अनुभवी अंदाज में शिवसेना को दिखाया आईना

शरद पवार ने एक बार भी शिवसेना की तारीफ में कुछ नहीं कहा, उलटे अपने अनुभवी अंदाज में यह कहते हुए उसे आईना दिखाया है कि मतदाताओं ने उन्हें और कांग्रेस को विपक्ष में बैठने का जनादेश दिया है। हालांकि हकीकत यह भी है कि इस दौरान शरद पवार न केवल लगातार शिवसेना के संपर्क में थे, बल्कि मीडिया की नजर में आई एक मुलाकात के अलावा भी वह शिवसेना के साथ मिलजुल रहे थे, लेकिन कल को अगर दोबारा चुनाव की नौबत आती है तो शरद पवार मतदाताओं को यह बताने और समझाने में जरा भी पीछे नहीं रहेंगे कि शिवसेना किसी भी कीमत पर सरकार बनाने के लिए बेचैन थी।

एनसीपी के आत्म विश्वास से डर रही शिवसेना

शिवसेना एनसीपी के इस आत्म विश्वास से भी डर रही है कि एनसीपी उसे वह हर चीज देने को तैयार है, जो शिवसेना मांगती रही है, मसलन आधे कार्यकाल तक का मुख्यमंत्री पद आदि। शिवसेना को लगता है कि उसकी मांग कम है, उसे और ज्यादा यानी पूरे पांच साल के लिए मुख्यमंत्री का पद मांगना चाहिए, लेकिन अब अचानक यह भी नहीं कह सकती कि उसे पूरे पांच सालों के लिए मुख्यमंत्री पद चाहिए, जबकि उसकी सारी माथापच्ची इसी बात को लेकर है। उसे लगता है कि अगर एनसीपी को बाद के ढाई वर्षों के लिए मुख्यमंत्री का पद मिलेगा तो वह अगले चुनावों को ध्यान में रखकर सरकार चलाएगी और चुनावों के ठीक पहले मतदाताओं को व्यापक तरीके से अपने जाल में फांस लेगी। यानी भय दोनों ही विकल्पों में व्याप्त है।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि फिलहाल इस पूरे समीकरण में कांग्रेस अपनी शर्त को बता पाने की स्थिति में नहीं है, लेकिन उसे यह पता है कि आज वह जिस मोड़ पर खड़ी है उस मोड़ पर उसे सरकार में रहने का फायदा मिलना पूरी तरह सुनिश्चित है। शिवसेना यही सब सोचकर एक कदम आगे बढ़ाती है और फिर दो कदम पीछे चली आती है। हालांकि ऐसा भी हो सकता है कि अपनी नाक बचाने के लिए वह इन सब बातों को सोचने के बावजूद झुकने से परेशानी महसूस करे और कांग्रेस तथा एनसीपी के साथ आगे बढ़ जाए, लेकिन फिलहाल तो शिवसेना अपनी अनुभवहीनता के चलते उलझन में है।

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