डॉ. मोनिका शर्मा। Sri Krishna Janmashtami 2020 श्रीकृष्ण मानवता के प्रतिनिधि और लोक कल्याण के मार्गदर्शक हैं। भारतीय जनमानस की आत्मा में बसे ऐसे अवतार हैं, जिनका जीवन अनगिनत कहानियों और लीलाओं से भरा है। वे निर्माण, ध्वंस, क्रोध, करुणा, आध्यात्मिकता के ही नहीं, बल्कि साहित्य और कला के भी समग्र रूप हैं। वे जीवन में आनंद और प्रेम को भी उतना ही जरूरी मानते हैं जितना विश्वास और मर्यादा की डोर को थामे रहना। उनका जीवन जितना रोचक है, उतना ही मानवीय भी। इसीलिए आम इंसान को बहुत कुछ सिखाता, समझाता उनका चरित्र जीवन जीने के अर्थपूर्ण संदेश संजोए हुए है। उनकी हर बात में जीवन सूत्र छिपे हैं।

इंसान के विचार और व्यवहार स्वयं उनके ही नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज की भी दिशा तय करते हैं। श्रीकृष्ण के संदेश एक ऐसी जीवनशैली सुझाते हैं जो सार्थकता और संतुलन लिए हो। समस्याओं से जूझने की ललक लिए हो। गीता में वíणत उनके संदेश जीवन रण में अटल विश्वास के साथ खड़े रहने की सीख देते हैं। महान दार्शनिक श्री अरविंदो ने कहा है कि गीता एक धर्मग्रंथ एवं एक किताब न होकर एक जीवनशैली है, जो हर उम्र को अलग संदेश और हर सभ्यता को अलग अर्थ समझाती है।

कृष्ण से जुड़ी हर बात हमें जीवन के प्रति जागृत होने का संदेश देती है। मानव मन और जीवन के कुशल अध्येता कृष्ण यह कितनी सरलता और सहजता से बताते हैं कि जीवन जीना भी एक कला है। उनके चरित्र को जितना जानो उतना ही यह महसूस होता है कि इस धरा पर प्रेम का शाश्वत भाव वही हो सकता है जो कृष्ण ने जीया है। यानी संपूर्ण प्रकृति से प्रेम। यही अलौकिक प्रेम हम सबको आत्मीय सुख दे सकता है और इसी में समाई है जनकल्याणकारी चेतना भी।

आज हम कई पहलुओं पर प्रकृति की नाराजगी को ङोल रहे हैं। बाढ़, सूखा, भूकंप जैसा विपदाएं दुनिया भर में कहर ढाती रहती हैं। इसकी वजह भी कुदरत का दोहन ही है। ऐसे में श्रीकृष्ण का प्रकृति के बहुत करीब रहा जीवन बड़ी सीख लिए है। प्रकृति का साथ ही उनके विलक्षण चरित्र को आनंद और उल्लास का प्रतीक बनाता है। वैसे भी पेड़-पौधे हों या जीव-जंतु संपूर्ण प्रकृति की चेतना से जुड़ना ही सच्ची मानवता है। वसुधैव कुटंबकम के भाव को वासुदेव कृष्ण ने मन से जीया है। कान्हा का गायों की सेवा और पक्षियों से प्रेम यह बताता है कि जीवन प्रकृति से ही जन्म लेता है और मां प्रकृति ही इसे विकसित करती है, पोषित करती है। सच में कभी-कभी लगता है कि हम सबमें इस चेतन तत्व का विकास होगा तभी आत्मतत्व जागृत हो पाएगा। प्रकृति से जुड़ा सरोकार का यह भाव मानवीय सोच को साकार करने वाला है। यही वजह है कि विचार, व्यवहार और अपनत्व का यह भाव आज के जीवन में सबसे जरूरी है।

मानवीय स्वभाव की विकृति और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ जनजागरण करने वाले योगेश्वर श्रीकृष्ण सही अर्थो में अत्याचार और अहंकार के विरोधी हैं। ये दोनों ही बातें समाज में असमानता और विद्वेष फैलाने वाली हैं। उन्हें बंधी-बधाई धारणाओं और परंपराओं की जड़ता को तोड़ने वाला माना गया है। उनका चिंतन राष्ट्र-समाज के लिए हितकर विचारों को प्रोत्साहन देने वाला है। वे आमजन को अत्याचार से लड़ने और जागरूक रहने का संदेश देते हैं। वे स्त्री अस्मिता के प्रबल समर्थक हैं। इसीलिए कर्मयोगी श्रीकृष्ण दमन के खिलाफ तो हैं ही मन की पूर्णता के भी समर्थक हैं।

इस बिखराव भरे दौर में राष्ट्र-राज्य की उन्नति के लिए समíपत उनकी सोच सही अर्थो में देश-समाज को दिशा देने वाली साबित हो सकती है। उनकी हर क्रिया में जगत के कल्याण का उद्देश्य निहित है। चेहरे पर खुशी और मस्तिष्क में कर्म की दिशा का ज्ञान है। बालसुलभ बातें और जीवन की गूढ़ समस्याओं का हल निकालने की गहरी समझ है। यही उनके चमत्कारी व्यक्तित्व का सबसे आकर्षक पहलू है। तभी तो श्रीकृष्ण की दूरदर्शी सोच समस्या नहीं, बल्कि समाधान खोजने की बात करती है। श्रीकृष्ण यह समझाते, सिखाते हैं कि जीवन की लड़ाई संयम और सही सोच के साथ लड़ी जाए। यही वजह है कि नीतिराज श्रीकृष्ण का चरित्र सदैव चमत्कारी और कृतित्व कल्याणकारी रहा है। उनका जीवन इस बात को रेखांकित करता है कि जीवन में आने वाली हर तरह की परिस्थितियों में कहीं धैर्य तो कहीं गहरी समझ आवश्यक है।

कर्म के समर्थक श्रीकृष्ण सही अर्थो में जीवन गुरु हैं, क्योंकि हमारे कर्म ही हमारे जीवन की दिशा तय करते हैं। कर्म की प्रधानता उनके संदेशों में सबसे ऊपर है। इसी वजह से कई बार वे ईश्वरीय रूप में भी आम इंसानों से जुड़े से दिखते हैं। तभी तो भाग्य के बजाय कर्म करने पर विश्वास करने की सीख देने वाला मुरली मनोहर का दर्शन आज के दौर में सबसे अधिक प्रासंगिकता रखता है।

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