मनीषा सिंह। जीवित रहने के लिए साफ हवा और पानी चाहिए। हवा इसलिए ताकि हम सांस ले सकें, पर जब हर सांस में हवा के साथ जहर भीतर जाएगा तो जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि भारत में जहरीली हवा ने 2016 में एक लाख से अधिक बच्चों की जान ले ली। ‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य’ नामक रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में पांच साल से कम उम्र के 60,987 बच्चे प्रदूषण के तत्व पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 की वजह से मारे गए। सभी उम्र के बच्चों को मिलाकर देखें तो 2016 में भारत में वायु प्रदूषण के कारण एक लाख बच्चों की मौत हुई। यह दुनिया में सबसे ज्यादा है। दूसरे नंबर पर नाइजीरिया है जहां 47,674 बच्चों की मौत हो गई। पाक में 21,136 बच्चे इसके शिकार हुए।

कम कर रहा उम्र
हवा में बढ़ता प्रदूषण वैसे तो हर उम्र के लोगों के लिए घातक है। इस कारण आम लोगों की जिंदगी औसतन तीन साल तक कम हो रही है। दो साल पहले यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, हार्वर्ड और येल के अर्थशास्त्रियों ने एक अध्ययन किया तो पता चला कि भारत में करीब 66 करोड़ लोग उन क्षेत्रों में रहते हैं जहां की हवा में मौजूद सूक्ष्म कण (पार्टिकुलेट मैटर) का प्रदूषण भारत के ही सुरक्षित मानकों से अधिक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वर्ष 2014 के एक सर्वे में यह भी बता चुका है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 शहर भारत में हैं। वायु प्रदूषण भारत में अकाल मौतों की प्रमुख वजहों में से एक है। इससे संबंधित बीमारियों की वजह से हर साल छह लाख 20 हजार लोगों की मौतें भारत में होती है।

बच्चों और महिलाओं के लिए घातक
बच्चों और महिलाओं के लिए यह ज्यादा जोखिमभरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी रिपोर्ट में कहता है कि खाना पकाने से घर के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण और घर के बाहर के वायु प्रदूषण से दुनिया भर में भारत जैसे निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में बच्चों के स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचा है। दुनिया भर में निम्न व मध्य आय वर्ग के देशों में पांच साल से कम उम्र के 98 फीसद बच्चे डब्लूएचओ वायु गुणवत्ता सामान्य स्तर से ऊपर के स्तर पर पीएम 2.5 से प्रभावित हो रहे हैं, जबकि उच्च आय वर्ग के देशों में 52 फीसद बच्चे डब्लूएचओ वायु गुणवत्ता सामान्य स्तर से ऊपर के स्तर पर पीएम 2.5 से प्रभावित हो रहे हैं।

शहरों के साथ कस्‍बे भी बेहाल  
शहरों और बड़े कस्बों में हालात काफी खराब हैं। दिल्ली जैसे महानगरों में बच्चों पर प्रदूषण की मार के बारे में सुप्रीम कोर्ट कई बार चिंता जता चुका है। दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने राजधानी में वायु प्रदूषण पर यह टिप्पणी की थी, ‘देश की राजधानी में सांस लेना जहर हो गया है। छोटे-छोटे बच्चे, यहां तक कि मेरा पोता भी मास्क पहनता है ताकि वह खुद को जहरीली हवा से बचा सके। ऐसा करने पर वह काटरून कैरेक्टर निंजा की तरह दिखता है।’ लेकिन हालात अब भी जस के तस बने हैं। केवल दिल्ली ही नहीं उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भी प्रदूषण खतरनाक स्तर को पार कर गया है। हर ओर जहरीले धुएं की चादर नजर आने लगी है।

तोहमत झेल रहे गांव 
गांवों के हालात थोड़े बेहतर हैं, लेकिन वहां भी फसलों के अवशेष जलाने से पैदा होने वाला धुआं समस्या पैदा कर रहा है। गांव इसकी तोहमत भी झेल रहे हैं कि शहरों को प्रदूषित धुंध में लिपटाने के लिए वे किसान जिम्मेदार हैं, जो पराली जलाते हैं। यह सच का एक पहलू है, पर ज्यादा बड़ी वजहों में वाहनों, उद्योग धंधों से निकलने वाला धुआं और निर्माण कार्यो से पैदा होने वाली धूल इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। ज्यादा चिंता बच्चों के लिए है। वयस्क इस प्रदूषण की मार थोड़े समय तक झेल लेते हैं, लेकिन बच्चों का नाजुक श्वसन तंत्र ऐसे हमलों को सहन नहीं कर पाता है। यूनिसेफ की एक रिपोर्ट कहती है कि दुनिया में प्रत्येक सात में से एक बच्चा उन क्षेत्रों में रह रहा है जहां घर से बाहर (आउटडोर) वायु प्रदूषण बेहद गंभीर स्थिति में है।

छोटे बच्‍चों के साथ शिकायत 
एक ही दिन में उन्हें नौ से 17 सिगरेटों के धुएं के बराबर धुआं अपने अंदर सोखना पड़ता है। इन्हीं वजहों से अब छोटे बच्चों में भी दमे जैसी शिकायत आम होने लगी है। आंखों में जलन और फेफड़े की सूजन जैसी बीमारियां भी बच्चों को आसानी से जकड़ने लगी हैं। बच्चे हर वक्त घर में नहीं रह सकते। लिहाजा उन्हें इसी प्रदूषित हवा में सांस लेते हुए बीमारियों का शिकार बनना पड़ता है। डब्लूएचओ का कहना है कि दुनिया की आधी शहरी आबादी प्रदूषित हवा का इस्तेमाल करने को मजबूर है, जो सुरक्षित मानकों के हिसाब से ढाई गुना अधिक प्रदूषित है। वर्ष 2012 में वायु प्रदूषण के कारण करीब 37 लाख मौतों का विश्वव्यापी अनुमान लगाया गया था।

प्रदूषण ले रहा हर वर्ष लाखों की जान
एनवायरमेंटल रिसर्च लेटर्स की एक शोध रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण से हर साल करीब 26 लाख लोग असमय मृत्यु का शिकार हो रहे हैं। दुनिया भर में करीब पांच लाख औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले धुएं के कारण 21 लाख मौतें हो रही हैं। इन आंकड़ों और चेतावनियों का संदेश साफ है कि यदि समय रहते वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने की दिशा में कदम न उठाए गए तो यह मामला हमारे नियंत्रण से बाहर जा सकता है। इधर कुछ शहरों में सड़कों को वैक्यूम क्लीनर से साफ करने, कुछ इलाकों में विशालकाय एयर प्यूरीफायर लगाने जैसे उपाय आजमाए गए, पर ये भी तभी कारगर हैं जब जनता हवा के प्रदूषण को कम करने में अपना योगदान दे।

भुगतना पड़ता है नुकसान 
पूरे साल खराब हवा की शिकायत करने वाले लोग दीपावली जैसे त्योहार पर अगर जहरीला धुआं और शोर घोलने वाले पटाखों के इस्तेमाल से और छोटी दूरियों के लिए भी कारों के प्रयोग से खुद को रोक नहीं सकते तो उन्हें शिकायत करने का कोई अधिकार नहीं है। पर समस्या शायद उनके लिए ज्यादा बड़ी है जो खुद तो ऐसा कुछ नहीं करते, लेकिन दूसरों की करनी का नतीजा उन्हें भुगतना पड़ता है। हर जगह जुर्माने की व्यवस्था काम नहीं करती। हवा-पानी साफ रखने की पहल हर किसी को यह सोचते हुए करनी होगी कि इसी से हमारा और भावी पीढ़ियों का जीवन बचा रहेगा, अन्यथा मौजूदा दुनिया के वजूद को ही संकट पैदा हो जाएगा।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है)