हिमाचल प्रदेश, नवनीत शर्मा। मिट्टी का धर्म है महकना। चुपचाप जमीन बनी रहने वाली मिट्टी को जब परिश्रमी हाथ पुचकारते हैं, वह सकारात्मक प्रतिक्रिया देती है, हुंकार भरती है, मैं हूं। बरसात की बूंदों में यह महक और बढ़ जाती है। किसानों-बागवानों ने तो किसी तरह मिट्टी के साथ संवाद जारी रखा, उन्हें रखना ही था, लॉकडाउन के कारण घरों तक सीमित होने को मजबूर उन लोगों ने मिट्टी के साथ बात की, जिनके पास सब्जियां उगाने लायक जमीन थी। मिट्टी परिश्रम और स्पर्श की भाषा समझती है और जवाब वस्तुओं की भाषा में देती है।

किसी की जमीन ने करेलों से जवाब दिया है, किसी की जमीन ने खीरों की भाषा बोली है। जिस आंगन में कैक्टस होते थे, वहां अपने रंगों और सुंदरता के साथ बात करते हुए फूल भी दिखते हैं। यह लॉकडाउन के कारण मिले वक्त का परिणाम है, वरना नौकरी करने वालों के लिए यह काम किसी खेत की मूली नहीं था। खेत में जाना एक दिलचस्प अनुभव होता है। कितना भरपूर बोलती है मिट्टी! यकीनन जिन लोगों ने मिट्टी के साथ संवाद जारी रखा, उनके यहां न केवल सब्जियां उगी होंगी, आत्मविश्वास भी लहलहाया होगा।

हां, अगर मिट्टी इतनी दयालू है और हर स्पर्श का जवाब देती है तो इसे उन वन महोत्सवों की संभाल भी करनी चाहिए, जिनके तहत लाखों पौधे हर साल रोपे जाते हैं। हिमाचल प्रदेश तो जाना ही हरियाली के लिए जाता है। हरा सोना भी कहते हैं कुछ लोग। यह अलग बात है कि कार्बन क्रेडिट्स के इंतजार में अपने हिमालयी मित्रों के साथ हिमाचल प्रदेश अब तक है। काफी हद तक हरियाली को बचाए रखने वाले हिमाचल प्रदेश के सामने चुनौती यह रहती है कि इसे हरे भी रहना है और आíथक रूप से भरे भी रहना है। यानी पर्यावरण संरक्षण का मूल दायित्व निभाने के साथ-साथ औद्योगिक विस्तार भी करना है। मुख्यमंत्री ठाकुर जयराम और उनकी टीम ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के माध्यम से एक राह खोली है जो फिलहाल कोरोना के कारण रुकी हुई है, लेकिन इसे चलना तो है ही। उधर, प्रदेश सरकार का यह भी प्रयास रहेगा कि चीन से नाराज कंपनियों को हिमाचल आकर्षति करे। तब यकीनन ऐसे मॉडल की आवश्यकता रहेगी कि हिमाचल हरा भी रहे और भरा भी रहे।

बहरहाल बरसात आ चुकी है और पौधरोपण की बरसात भी आएगी। प्रदेश सरकार प्रयास कर रही है कि प्रदेश को 27 फीसद हरित आवरण से आगे बढ़ाया जाए। राहत की बात यह है कि 2017 के मुकाबले बीते वर्ष प्रदेश में 334 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। चौंकाने वाली बात यह है कि खुले जंगल में थोड़ी गिरावट दर्ज हुई है। बेशक कानूनी भाषा में प्रदेश में 66 फीसद वन क्षेत्र है। हरियाली के लिए यह आवश्यक है सरकार, विभाग के साथ-साथ लोग भी जंगल का सम्मान करें। उन अनाम पुरखों को मन स्वत: स्मरण करता है जिन्होंने नूरपुर से लेकर बैजनाथ तक राजमार्ग या अन्य राजमार्गो पर भी आम के या अन्य पौधे लगाए। सब्जी बीजने वाला उसके फल का आनंद कुछ दिनों में ले सकता है, लेकिन सैकड़ों वर्ष चलने वाले इन पौधों का फल शायद ही उस पीढ़ी ने चखा हो। यही लोक कल्याण की भावना है। वन विभाग अगर पौधे लगाता है या लगवाता है तो यह समाज के प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य भी है कि कोई पौधा मिट्टी से अलग न हो जाए। मिट्टी और पौधे की जड़ों का स्वभाव ही है कि अगर दोनों हों, आपस में गुंथ ही जाती हैं। इकबाल अजीम ने इसीलिए कहा होगा :

अपनी मिट्टी पे ही चलने का सलीका सीखो, संग-ए-मरमर पे चलोगे तो फिसल जाओगे।

कांग्रेस में दो-दो हाथ : मजबूत लोकतंत्र के लिए विपक्ष का मजबूत रहना अनिवार्य होता है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस खुद को छलनी करने में ही व्यस्त है। प्रदेशाध्यक्ष के खिलाफ मंडी से बजा बिगुल अनुशासन समिति के लिए मुद्दा बन गया है। दो पूर्व विधायकों समेत 12 नेताओं को कारण बताओ नोटिस जारी हो गए हैं। पहले भोज हुआ था, इस आरोप के साथ बयान भी आए थे कि प्रदेशाध्यक्ष भाजपा की बी टीम हैं। नोटिस में यह भी लिखा गया है कि पार्टी की छवि को आंच पहुंची है। अनुशासनहीनता कहीं भी हो बुरी बात है, पर इसमें एक संकेत यह अवश्य दिया गया है कि पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है। छवि बचाना भी स्वयं कांग्रेस का ही काम है। छवि की चिंता उस वक्त भी होनी चाहिए थी, जब वीरभद्र सिंह की सरकार में शिक्षा जैसे अहम विभाग के मुख्य संसदीय सचिव सरेआम गाली-गलौज करते थे।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]