[ भरत झुनझुनवाला ]: विश्व के सबसे बड़े थ्री गार्जेज बांध के साथ तमाम अन्य बांध बनाने वाले चीन में बाढ़ ने पिछले सौ वर्ष के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। चीन के तमाम इलाके बाढ़ के कहर का सामना कर रहे हैं। अपने देश में भी टिहरी बांध के साथ-साथ बिहार की नदियों के किनारे बंधे बनाने के बावजूद हम बाढ़ के प्रकोप से उत्तरोत्तर ग्रसित होते जा रहे हैं। हमेशा की तरह असम भी बाढ़ के प्रकोप का सामना कर रहा है।

जानिए बाढ़ का मूल कारण क्या है

बाढ़ का मूल कारण यह है कि हम नदियों को केवल पानी लाने वाली इकाई के रूप में देखते हैं और उनके द्वारा लाई जाने वाली गाद को नजरअंदाज करते हैं। हम भूल जाते हैं कि हरिद्वार से कोलकता तक का हमारा भूखंड गंगा द्वारा लाई गई गाद से ही बना है। पहले गंगा में जब बाढ़ आती थी तो उसका पानी चारों तरफ फैल जाता था और अपने साथ आई गाद को फैला देता था। इसी गाद से गंगा का क्षेत्र बना। बाढ़ से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए हमने बांध और बंधे बनाए, परंतु प्रभाव उलटा हुआ। गंगा हर वर्ष मानसून के समय कुछ गाद लाकर अपने पेटे में जमा करती जाती है। पूर्व में 5 या 10 वर्ष में जब भारी बाढ़ आती थी तो वह अपने वेग से इस गाद को धकेल कर समुद्र तक पहुंचा देती थी और स्वयं को साफ कर लेती थी।

नदी में जमा गाद से पेटा ऊंचा होने से हल्की सी बाढ़ भी विकराल हो जाती है

भारी बाढ़ के बाद गंगा की पानी को वहन करने की क्षमता बढ़ जाती है और बाढ़ का असर कम हो जाता है। टिहरी बांध और हरिद्वार एवं नरोरा में बैराज बनाकर हमने गंगा का पानी रोक लिया। फलस्वरूप भारी बाढ़ आना अब बंद हो गई है। हर वर्ष की सामान्य बाढ़ में जो गाद गंगा अपने पेटे में जमा करती है वह अब समुद्र तक नहीं पहुंचाई जा रही है। गंगा का पेटा धीरे-धीरे ऊंचा होता जा रहा है और अब हल्की सी बाढ़ ज्यादा विकराल हो रही है। यह हालत अनेक अन्य नदियों की भी है।

फरक्का बैराज के कारण गंगा का वेग कम होने से गाद जमा हो रही है, बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा

फरक्का बैराज ने बिहार में बाढ़ की समस्या को विकराल रूप देने का काम किया है। जल वैज्ञानिक बताते हैं कि नदी पर पुल के खंभों के निर्माण से नदी के बहाव में रुकावट आ जाती है। भागलपुर में पुल के बाद तटों का कटान इसीलिए हो रहा है। फरक्का बैराज के कारण गंगा का वेग कम हो रहा है। फरक्का के ऊपर वेग धीमा पड़ने से वहां पर गाद जमा हो रही है। गंगा का पेटा ऊंचा हो रहा है और बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है।

बिहार में बाढ़ को रोकने के लिए कोसी और अन्य नदियों के किनारे बंधे बनाए गए

कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि फरक्का के कारण पटना तक गाद का जमाव बढ़ रहा है। शायद इसी कारण बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार फरक्का पर पुर्निवचार करने की बात कर रहे हैं। बिहार में बाढ़ को रोकने के लिए कोसी और अन्य नदियों के किनारे बंधे बनाए गए। इसके पीछे विचार यह था कि नदी के प्रवाह को सीमित करने से बाढ़ आनी बंद हो जाएगी। कुछ समय तक ऐसा हुआ भी, लेकिन शीघ्र ही नदियों द्वारा लाई जा रही गाद इन बंधों के बीच जमा होने लगी। आज कई जगह नदी का पेटा अगल-बगल की भूमि से ज्यादा ऊंचा हो गया है। जैसे-जैसे नदी का पेटा ऊंचा होता जा रहा वैसे-वैसे बंधों की ऊंचाई भी बढ़ाई जा रही है। फलस्वरूप कई नदियां भूमि से ऊंचे स्तर पर बह रही हैं।

जो नदी बाढ़ के पानी को बहा ले जाती थी वह आज उस पानी को बहने से रोक रही है

नदियों पर बने बंधों के बीच का भूभाग कटोरे जैसा हो गया है और बंधे टूटने की हालत में बाढ़ का प्रकोप बढ़ रहा है, क्योंकि नदी के ऊंचे स्तर पर बहने के कारण पानी की निकासी अवरुद्ध हो रही है। जो नदी बाढ़ के पानी को बहा ले जाती थी वह आज उस पानी को बहने से रोक रही है। इससे हालात लगातार खराब हो रहे हैं।

हमें बाढ़ के साथ जीने की कला विकसित करनी पड़ेगी

हमें बाढ़ के साथ जीने की कला विकसित करनी पड़ेगी। 1990 के दशक में मुझे गोरखपुर की बाढ़ का अध्ययन करने का अवसर मिला था। लोगों ने बताया कि पहले गांवों को ऊंचे स्थान पर बसाया जाता था। बाढ़ के समय लोग गांव के अंदर सीमित हो जाते थे। पानी खेतों पर एक मीटर ऊंची चादर की तरह फैलकर बहता था और शीघ्र निकल जाता था। धान की ऐसे प्रजातियां उपजाई जाती थीं जो बाढ़ के पानी के साथ बढ़ती जाती थीं। बाढ़ के बाद बीज को खेत में छिटक देते थे तो फसल अपने आप हो जाती थी।

बाढ़ काजीरंगा अभयारण्य में पशुओं के मृत शरीरों को बहा ले जाती है

काजीरंगा अभयारण्य के अधिकारियों का कहना है कि बाढ़ पशुओं के मृत शरीरों को बहा ले जाती है और उस क्षेत्र को साफ कर देती है। इसके साथ ही जमीन को पोषित करती है, जिससे वहां वनस्पतियां उगती हैं।

समुद्र में गाद हजम करने की स्वाभाविक क्षमता होती है

समुद्र में गाद हजम करने की स्वाभाविक क्षमता होती है, जैसे मनुष्य की भोजन की। नदियों से पर्याप्त मात्रा में गाद न मिलने पर समुद्र भूमि को निगलने लगता है। अब तक गंगा हिमालय से गाद लाकर समुद्र की भूख को पूरा कर रही थी। जिस प्रकार हरिद्वार से कोलकता तक की भूमि को उसने पूर्व में बनाया उसी प्रकार वह सुंदरबन को बना रही थी, लेकिन टिहरी बांध में गाद रोक कर और हरिद्वार एवं नरोरा बैराज में गंगा की गाद निकालकर हमने सुंदरबन में गाद की पहुंच को कम कर दिया। इसके कारण समुद्र देश की जमीन को निगल रहा है।

टिहरी बांध और हरिद्वार एवं नरोरा बैराजों द्वारा देश की भूमि का भक्षण किया जा रहा है

देश का भूखंड बढ़ने के स्थान पर कटने लगा है। एक तरह से टिहरी बांध और हरिद्वार एवं नरोरा बैराजों द्वारा देश की भूमि का भक्षण किया जा रहा है। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉरपोरेशन द्वारा कराए गए अध्ययन के मुताबिक टिहरी झील 140 से 170 वर्ष के बीच पूरी तरह गाद से भर जाएगी। इसके बाद हमें बाढ़ के साथ जीना ही होगा। तो अभी से ही ऐसा क्यों न कर लें?

टिहरी, नरोरा, फरक्का आदि बांधों पर पुर्निवचार करना होगा

हमें टिहरी, नरोरा, फरक्का आदि बांधों पर पुर्निवचार करना होगा। मानसून के पानी को टिहरी बांध में रोकने के स्थान पर उत्तर प्रदेश के भूमिगत तालाबों में जल को संग्रहित करना होगा। हरिद्वार और नरोरा से सिंचाई करने के स्थान पर हर गांव में जल संग्रहण कर भूमिगत जल से सिंचाई करनी होगी। सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड के अनुसार उत्तर प्रदेश के भूमिगत तालाबों में हम टिहरी की तुलना में 10 गुना पानी रख सकते है। हम हल्की बाढ़ से बचने के गलत उपाय करके भारी बाढ़ के शिकंजे में आ गए हैं। यानी कुएं से निकलकर खाई में जा गिरे हैं। हमें खाई से निकलने का जतन करना होगा।

( लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं )