[ गिरीश पंकज ]: कुछ लोग अफवाहों की ऐसी एकल फैक्ट्री चलाते हैं कि पूछिए मत। उससे निकलने वाला झूठ देखते ही देखते ऐसा वायरल होता है कि लोगों की खोपड़ी घूम जाती है। अफवाहों की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि वे बड़ी प्रामाणिक भी लगती हैं। उनमें तारीख होती है। किसी पत्र या पत्रिका का जिक्र भी होता है। बाकायदा पृष्ठ संख्या भी होती है, जिसे पढ़कर व्यक्ति को लगता है, बात तो सही है। पिछले दिनों इसी फैक्ट्री से निकले एक समाचार पर मेरी नजर पड़ी। खबर चिरकुटलाल जी की फैक्ट्री में तैयार हुई थी। समाचार यह था, ‘1920 में अमेरिका के पेंसिलवेनिया में रहने वाले राबर्ट डिकोस्टा ने अपनी पुस्तक-फ्यूचर वर्ल्ड के पेज नंबर सत्रह में साफ-साफ लिख दिया था कि इक्कीसवीं सदी के प्रारंभ में क्योरोना नामक वायरस पूरी दुनिया में फैलेगा, जिसके शिकार होकर करोड़ों लोग मर जाएंगे। यह वायरस दो साल तक अपना असर दिखाएगा। फिर सब कुछ ठीक हो जाएगा।’

इस समाचार को जब रामलाल ने वाट्सएप पर पढ़ा तो उसने श्यामलाल को फारवर्ड कर दिया। श्यामलाल ने उसे रामस्वरूप को भेज दिया। रामस्वरूप ने फलस्वरूप तक पहुंचा दिया। फलस्वरूप ने देवानंद को भेज दिया। देवानंद ने कलाकंद को और कलाकंद ने परमानंद के पास भेजकर कहा कि ‘देखो पार्टनर, कोरोना के बारे में सौ साल पहले ही भविष्यवाणी हो गई थी।’ इसके बाद उनके द्वारा बनाए कई और झूठ पक-कर बारी-बारी से देश-भ्रमण के लिए निकले। धड़ाधड़ वायरल होने लगे। अब किसको फुरसत है कि गूगल में जाकर उनकी सच्चाई को खंगाले।

उस दिन चिरकुटलाल जी से हमारी भेंट हो गई। हमने उनसे पूछ लिया, ‘आप तो गजब की फैक्ट्री चलाते हैं। कमाल है।’ मेरी बात सुनकर उन्होंने कहा, ‘मगर, मेरी तो कोई फैक्ट्री नहीं है। मैं तो बेरोजगार संघ का राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं। गांव में खेती-बाड़ी है। साल भर का अनाज आ जाता है। उसे खाकर मगन रहता हूं और मुन्नाभाई और सर्किट के माफिक दिन भर लगा रहता हूं वाट्सएप में।’ हमने कहा, ‘लगे रहते हैं, यह तो बड़ी दुर्लभ घटना है। लगे ही रहना चाहिए, लेकिन अफवाह फैलाना ठीक बात नहीं। ऐसी कोई मनगढ़ंत कहानी नहीं लिखनी चाहिए, जिसे पढ़कर लोगों में भ्रम की स्थिति बन जाए। किसी की छवि खराब हो। इस काम से बचना चाहिए। किसी दिन लेने-के-देने न पड़ जाएं।’ चिरकुटलाल मुस्कुराते हुए बोले, ‘आज तक तो हमारा बाल भी बांका नहीं हो सका। होता भी कैसे? हम तो गंजे हैं। कहिए तो आपके बारे में भी कोई स्टोरी बना दूं।’ मैंने उनको नमन किया और कहा, ‘भगवान के लिए यह सब बंद करो। अफवाह फैलाना सबसे बड़ा पाप है।’

एक अफवाह के सिलसिले में जब मैंने चिरकुटलाल जी से पूछा, ‘यह जानकारी आपको कहां से मिली’, तो उन्होंने कहा, ‘एक अखबार है-केम छे सारो छे। उसके पेज नंबर तीन पर यह खबर है।’ मैंने गूगल में सर्च किया तो इस नाम का कोई अखबार ही नजर नहीं आया। मैंने डपटते हुए कहा, ‘ऐसा तो कोई अखबार नहीं है!’ इस पर चिरकुटलाल जी ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘कल सपने में मैंने यह अखबार देखा था। और वह खबर भी मैंने देखी थी। यह सपना मैंने सुबह-सुबह देखा था और सुबह का सपना सच होता है, इसीलिए खबर बनाई है।’

मैंने कहा, ‘एक मछली भी सारे तालाब को गंदा कर देती है। एक झूठ दिल्ली से चलता है और पूरे देश में धीरे-धीरे फैल जाता है। अगर वायरल करने का शौक ही है तो अच्छी-अच्छी बातें वायरल कीजिए।’ मेरी बात सुनकर चिरकुटलाल जी सिर खुजाने लगे और बोले, ‘बाप रे! यह सब तो मुझसे न हो सकेगा। हम ठहरे उलटी खोपड़ी के आदमी और आप मुझे सीधी खोपड़ी का काम करने को कह रहे हैं।’ इतना बोलकर वे श्याममुख हो गए। यानी चले गए। हम भी अपने काम में लग गए। कुछ दिनों बाद अखबार में छपी खबर देखी कि ‘फर्जी खबरें वायरल करने वाले चिरकुटलाल पुलिस की गिरफ्त में।’ यानी जिसका डर था बेदर्दी, वही बात हो गई।

[ लेखक हास्य-व्यंग्यकार हैं ]