अभिषेक कुमार सिंह। किसी देश के मुखिया या कहें कि राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर उसके कार्यो का मूल्यांकन सिर्फ इससे नहीं होता है कि देश की जनता से उसका कैसा संवाद है, बल्कि यह इससे भी तय होता है कि उसे दुनिया किस नजर से देखती है और कितनी अहमियत देती है। इस संदर्भ को यदि हम भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल को देखें तो पता चलता है कि इंदिरा गांधी के बाद वह भारत के दूसरे ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने सबसे ज्यादा विदेशी दौरे किए हैं और इसके बल पर उन्हें दुनिया में सबसे ज्यादा स्वीकृति मिली है। हालांकि उनके दोनों कार्यकालों की तुलना करें तो बीते वर्ष नवंबर 2019 के बाद से कोरोना काल की स्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी किसी भी विदेश यात्र पर नहीं गए हैं। जबकि इस बीच विदेश मंत्री एस जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ ने इसी वर्ष रूस और ईरान की यात्र की है।

अतिविशिष्ट लोग एयर इंडिया के बोइंग-747 विमान से यात्राएं करते हैं : राजनाथ सिंह ने जून 2020 में रूस की एक यात्रा और की थी। इन विदेश यात्रओं के उल्लेख की यहां आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि हाल में जब राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए अमेरिका में विशेष रूप से तैयार किया गया बोइंग-777 विमान भारत आया तो सवाल उठा कि एक विकासशील देश के हस्तियों के लिए इतने बड़े और महंगे विमान की क्या जरूरत है? यह भी बताया गया है कि ऐसे कुल दो विमान प्रधानमंत्री के लिए एयरफोर्स के बेड़े में रहेंगे, जिनका इस्तेमाल उनके अलावा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति भी करेंगे। अभी तक ये अतिविशिष्ट लोग एयर इंडिया के बोइंग-747 विमान से यात्रएं करते हैं जो सुविधाओं और सुरक्षा के मामले में काफी कमजोर है। जबकि ‘बख्तरबंद’ विमान कहा जा रहा बोइंग-777 इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एयरफोर्स-वन जैसी क्षमताओं से लैस है। देश-विदेश की यात्रओं को महफूज बनाने के नजरिये से ऐसे मजबूत विमान की जरूरत से इन्कार नहीं किया जा सकता जो देश की सत्ता में मौजूद हस्तियों के क्रियाकलाप में सहयोगी होने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध भी करे।

एयर इंडिया वन की खूबियां : बोइंग-777 या फिर एयर इंडिया वन की देखरेख एवं संचालन वायुसेना करेगी। एक बार ईंधन भरा लेने के बाद इनसे दिल्ली से अमेरिका तक बिना रुके सीधी यात्र हो सकेगी। दुश्मन के रडार को भी अपने जैमर से बाधित कर देने वाले इन विमानों पर ग्रेनेड या मिसाइल हमले नहीं हो सकते हैं। इसकी वजह यह है कि इन विमानों में मिरर बॉल सिस्टम को इस्तेमाल में लाया गया है जो अत्याधुनिक इंफ्रारेड सिग्नल के सहारे चलने वाली और अपने लक्ष्य को उन संकेतों से सहारे भेदने वाली मिसाइलों को भ्रमित कर सकता है। इन विमानों की एक खासियत यह भी है कि जरूरत पड़ने पर इनसे हमला भी किया जा सकता है। इसके लिए इन विमानों को लार्ज एयरक्राफ्ट इंफ्रारेड काउंटरमेजर्स (एलएआइआरसीएम) और सेल्फ प्रोटेक्शन सूट्स (एसपीएस) नामक अत्याधुनिक मिसाइल रक्षा प्रणालियों से लैस किया गया है।

ये विमान कई एडवांस और सुरक्षित संचार प्रणालियों भी से लैस : विशेष रूप से डिजाइन किए गए इन विमानों में लगीं ये रक्षा प्रणालियां विमान की तरफ आने वाली मिसाइल को डिटेक्ट करने और उसे जाम करने में मदद करती हैं। इसके अलावा इन विमानों में 12 गार्जयिन लेजर ट्रांसमीटर असेंबली, मिसाइल वाìनग सेंसर और काउंटर-मेजर डिस्पेंसिंग सिस्टम भी लगाया गया है। ये विमान कई एडवांस और सुरक्षित संचार प्रणालियों भी से लैस हैं, जिनकी मदद से आसमान में अत्यधिक ऊंचाई पर भी ऑडियो और वीडियो संचार की सुविधाएं हैकिंग और टैपिंग की किसी समस्या के बिना मिलती हैं। एक जैसे दो विमान लेने का उद्देश्य यह है कि यदि एक विमान में कोई समस्या हुई तो स्टैंटबाई पर मौजूद उसी तरह के दूसरे विमान को तुरंत इस्तेमाल में लाया जा सके।

रखरखाव की जिम्मेदारी: प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जैसी हस्तियों के लिए सिर्फ सुसज्जित और सुरक्षित विमान खरीदना ही काफी नहीं है, बल्कि उनके संचालन, रखरखाव और सुरक्षा के लिए भी विशेष प्रबंध किए जाते हैं। जैसे अभी एयर इंडिया का जो विशेष बोइंग-747 विमान है, उसके संचालन और सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय वायुसेना के पास है। बोइंग-747 के अतिरिक्त भी कुछ विमान हैं जिनकी मदद देश की वीवीआइपी हस्तियों के विदेश दौरों में ली जाती है। इसके लिए जैसे बोइंग-747 के अलावा चार 14-सीटर एंब्रेयर ईआरजे-135, चार 20-सीटर एंब्रेयर 145 विमान भी एयर इंडिया के पास हैं। खासतौर पर यदि प्रधानमंत्री को देश के भीतर ही कहीं विमान से जाना है या कम दूरी पर स्थित पड़ोसी देशों की यात्र करनी है तो ये विमान इस काम में आते हैं।

इन विमानों की सभी व्यवस्थाओं पर खुफिया विभाग की नजर : यह भी उल्लेखनीय है कि एयर इंडिया और भारतीय वायु सेना साझा तौर पर फिलहाल प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए तीन बोइंग विमान तैयार रखती है। इनके लिए इस्तेमाल में आ रहे विमानों को अभी राजदूत, राजकमल और राजहंस कहा जाता है और इन विशेष विमानों की उड़ानें संचालित करने का काम देश के सर्वश्रेष्ठ आठ पायलटों और अलग से तैयार किए गए क्रू मेंबर्स के जिम्मे होता है। दिल्ली स्थित पालम एयरफोर्स स्टेशन पर खड़े इन विमानों की सभी व्यवस्थाओं पर खुफिया विभाग और स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एपीजी) की नजर रहती है। वैसे तो देश की शीर्ष राजनीतिक हस्तियों के लिए ऐसे सुरक्षित विमानों की जरूरत से इन्कार नहीं किया जा सकता है, लेकिन जब बात इनकी कीमत की आती है तो उस पर हंगामा उठ खड़ा होता है।

विशेष विमानों की कीमत : एक अनुमान है कि इन दोनों विमानों की कीमत करीब 8458 करोड़ रुपये है। इस कीमत को लेकर पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक संदेश काफी वायरल हुआ था कि अब देश में एक बार फिर गांधी जी जैसे नेताओं की जरूरत है जो जमीन से जुड़े हों, आसमान से नहीं। गांधी जी की प्रासंगिकता आज पहले से ज्यादा सिद्ध हो रही है। निश्चय ही गांधी जी की विचारधारा वाले नेताओं की हर काल में जरूरत रहेगी, लेकिन इसके लिए दुनिया की मौजूदा जरूरतों और उसके सच से आंखें नहीं चुराई जा सकती हैं। ऐसे में इन तथ्यों को ध्यान में रखना होगा कि प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्रओं के लिए बेड़े में शामिल होने वाले विमानों के दाम विश्व के अन्य नेताओं के विमानों की कीमतों के मुकाबले कम हैं। जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के एयरफोर्स वन के बेड़े में शामिल विमान बोइंग 747-200बी की कीमत 325 मिलियन डॉलर है। इससे भी महंगा विमान कतर के अमीर शेख तमीम अल थानी का विमान बोइंग 747-8आइ है जो ट्रंप के विमान से 175 मिलियन डॉलर महंगा यानी करीब 500 मिलियन डॉलर का है। कतर के अमीर ने अब यह विमान तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एदरेगन को तोहफे में दे दिया है और वर्ष 2021 में उनके लिए इससे भी महंगा विमान सेवा में ले लिया जाएगा।

उधर ट्रंप के बेड़े एयरफोर्स-वन में शामिल बोइंग 747-200बी को भी बदलने की योजना को मंजूरी मिल चुकी है। उनके लिए अब जो विमान आ रहा है, उसकी कीमत 800 मिलियन डॉलर बताई जा रही है। दुनिया के शीर्ष नेताओं और हस्तियों की यात्रओं में इस्तेमाल होने वाले विमानों की सूची में कई और नाम हैं। जैसे रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विमान में सोना चढ़ी टॉयलेट सीट, वॉश बेसिन, शानदार जिम और किंग साइज बेड की मौजूदगी ट्रंप के विमान को फीका कर देती है। ब्रिटेन के शाही परिवार में महारानी एलिजाबेथ द्वितीय रॉयल एयरफोर्स की 32वीं स्क्वाड्रन से यात्र करती हैं। विदेश यात्र के लिए शाही परिवार के लिए ब्रिटिश एयरवेज या वर्जनि एटलांटिक से बोइंग-747 या 777 लीज पर लिया जाता है।

इसी तरह जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल जर्मनी आम्र्ड फोर्सेस के विमान से यात्र करती हैं। उनके विमानों में एयर हॉस्पिटल की भी व्यवस्था है। जबकि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों सामान्य एयरबस ए-330-200 से यात्र करते हैं। इस मामले में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग का नाम उल्लेखनीय है, क्योंकि उनकी यात्रओं के लिए किसी निजी विमान का इंतजाम नहीं है। इसकी जगह वह एयर चाइना के उन्हीं विमानों को इस्तेमाल में लाते हैं, जिनके जरिये आम यात्री सफर करते हैं। जब भी उनका विदेश दौरा होता है, एयर चाइना के दो बोइंग-747-400 विमानों में से किसी एक को उनकी जरूरतों के अनुरूप बेडरूम, लिविंग रूम, कांफ्रेंस रूम के बतौर अस्थायी रूप से परिवíतत कर दिया जाता है। राष्ट्रपति की यात्र से वापसी के बाद फिर से उसे आम पैसेंजर फ्लाइटों में बदल दिया जाता है।

हाल में जब राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए अमेरिका में विशेष रूप से तैयार किया गया बोइंग-777 विमान भारत आया तो सवाल उठा कि एक विकासशील देश के हस्तियों के लिए इतने बड़े और महंगे विमान की क्या जरूरत है? वास्तव में देश-विदेश की यात्रओं को महफूज बनाने के नजरिये से ऐसे मजबूत विमान की जरूरत से इन्कार नहीं किया जा सकता जो देश की सत्ता में मौजूद हस्तियों के क्रियाकलाप में सहयोगी होने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध भी करे।

किसी राष्ट्राध्यक्ष की विदेश यात्रओं के लिए यदि महंगे और सुसज्जित विमानों का आगमन हो रहा है तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर इन यात्रओं से देश और उसकी जनता को क्या हासिल होता है। जब मोदी के विदेशी दौरों की जरूरत का प्रश्न उठता है तो इसका जवाब यह कहकर दिया जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्रओं से प्रवासी भारतीयों को उनके देशों में काफी बल मिला है और वे भारत के निकट आते गए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 में विदेश में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों ने भारत को 70 अरब डॉलर भेजे थे जो 2018 में बढ़कर 80 अरब डॉलर और 2019 में 83 अरब डॉलर हो गई। भारत सरकार के अनुसार प्रधानमंत्री की यात्रओं के कारण विदेशी निवेश में भी बढ़ोतरी हुई है। सरकार का दावा है कि 2015 में दुनिया भर में भारत में सबसे अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आया था।

खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी यात्राओं के दौरान कई बार कहा है कि प्रवासी भारतीयों से जुड़ने का उद्देश्य उन्हें भारत में निवेश के लिए प्रोत्साहित करना है। कोरोना काल में इसमें गिरावट मुमकिन है, क्योंकि विदेशों में रहने वाले भारतीयों के कामकाज पर भी कोविड-19 का असर पड़ा है। प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं का एक प्रत्यक्ष लाभ यह भी हुआ है कि कई ताकतवर देश भारत के काफी करीब आ गए हैं। चीन-पाकिस्तान से विवाद की स्थिति में फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका आदि देशों का भारत को मिलने वाला समर्थन काफी मसलों को शांत कराने में मददगार साबित होता है। इससे साफ है कि प्रधानमंत्री विदेशी दौरे निजी लाभ के लिए नहीं, बल्कि देश की गरिमा बढ़ाने और विकास को गति दिलाने के लिए पूंजी के इंतजाम के उद्देश्य से करते हैं।

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