[विवेक काटजू]। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कुछ प्रस्ताव को अपनाने के लिए सक्षम है, जिसका सभी सदस्य देशों को अनुपालन करना होता है। इन्हें आमतौर पर अध्याय 7 प्रस्ताव कहा जाता है। यूएनएससी ने 3 प्रस्तावों को अपनाया है, जो आतंकवादियों और आतंकी संगठनों को एक सूची में रखने में सक्षम बनाते हैं। चूंकि पहले प्रस्ताव की संख्या 1267 थी, इसलिए इन सूचियों को 1267 सूचियों के रूप में जाना जाता है। जब एक आतंकी या आतंकी संगठन को 1267 सूची में डाल दिया जाता है, तो सभी सदस्य देश उसके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए बाध्य होते हैं।

हाफिज सईद, जकी-उर-रहमान लखवी और दाऊद इब्राहिम को इस सूची में शामिल किया गया है। यह तीनों आतंकवादी भारत में भयानक आतंकी वारदातों के लिए जिम्मेदार हैं। जो आतंकी संगठन सूचीबद्ध हैं, उनमें जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए- तैयबा शामिल हैं। पाकिस्तान ने 2002 में इन संगठनों पर मुकदमा चलाया, लेकिन उन्हें अलग-अलग नामों से जारी रखने की अनुमति दी। भारत के खिलाफ पाकिस्तान के हितों को बढ़ावा देने के लिए उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। यह सभी पाकिस्तान में स्वतंत्र रूप से घूमते हैं। हां, हाफिज सईद को पहले भी हिरासत में रखा गया है लेकिन अदालत के हस्तक्षेप के बाद उसे आजाद कर दिया गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पाकिस्तान सरकार ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया।

26/11 मुंबई हमले के मामले में लखवी जेल में बंद था। जेल में रहते हुए वह एक बच्चे का पिता बना और बाद में उसे जमानत दे दी गई। बालाकोट हमले के बाद पाकिस्तान ने फिर से कार्रवाई की है। उसने मसूद अजहर से जुड़े लोगों को हिरासत में लिया है और जमात-उद-दावा और फलाह-ए-इंसानियत पर प्रतिबंध लगा दिया है। ये संगठन लश्कर-ए-तैयबा के सहयोगी हैं।

भारत को यह दृढ़ता से मांग करनी चाहिए कि पाकिस्तान की यह कार्रवाई अस्थायी नहीं बल्कि वास्तविक हो और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इनकी निगरानी करे। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) के माध्यम से भी पाकिस्तान पर शिकंजा कसा जा रहा है। एफएटीएफ भारत सहित 37 सदस्यों वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जो आतंकवादी वित्तपोषण को नियंत्रित करता है। एफएटीएफ द्वारा पाकिस्तान की निगरानी जारी है, क्योंकि उसने सूचीबद्ध आतंकवादी संगठनों को मिलने वाले फंड को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। इनमें जैशए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा शामिल हैं।

इस निगरानी के साथ पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया है, जिससे पाकिस्तान को धन जुटाने में नानी याद आ रही है। यदि पाकिस्तान एफएटीएफ की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, तो इसे काली सूची में भी डाला जा सकता है, जिसका अर्थ है कि वैश्विक बैंकों से इसका अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन बहुत महंगा हो जाएगा, इसके साथ व्यापार करने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। जिससे पाकिस्तान में आर्थिक संकट गहरा जाएगा और चीन पर निर्भरता और अधिक बढ़ेगी। भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान पर दबाव बनाए रखने के लिए निरंतर संवाद जारी रखना होगा। लेकिन अंत में भारत को पाकिस्तानी आतंक के खिलाफ खुद ही युद्ध लड़ना होगा।

[पूर्व सचिव, विदेश मंत्रालय]