हिमाचल प्रदेश, नवनीत शर्मा। हर आपदा अपने साथ कठिनाइयां तो लाती ही है, कुछ अवसर भी लाती है। कोरोना वायरस के कारण उपजा संकट भी अपवाद नहीं है। यह इस मायने में तो अपवाद है कि यह आपदा अभूतपूर्व है और असामान्य है। हर कठिन घड़ी के साथ कुछ सबक चेतना के साथ चस्पां होते जा रहे हैं। यकीनन भारत इस आपदा के साथ पूरी ताकत के साथ लड़ रहा है, और राज्य भी अपने स्तर पर कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते हैं।

आपदा के गुण ये होते हैं कि यह गैर जरूरी चीजों का मोह कम करती है, एक होना सिखाती है और कोशिश करती है कि व्यक्ति की प्राथमिकताएं बदलें, सोच बदलें। वीरभद्र सिंह अगर प्रेमकुमार धूमल को फेसबुक पर जन्म-दिन की बधाई दें, पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार अगर पक्ष और प्रतिपक्ष के नेताओं का हाल फोन पर लें, प्रधानमंत्री के संबोधन के तत्काल बाद कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर उचित कदमों का स्वागत करें तो यह आपदा के खिलाफ एक होना ही है।

इधर हिमाचल प्रदेश भी सर्वश्रेष्ठ व्यावसायिक दक्षता का परिचय देते हुए कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। राजधानी से लेकर जिलों तक ही नहीं, उपमंडलों तक में जिस उत्साह के साथ सक्रियता दिख रही है, वह रहस्य नहीं। जाहिर है, समाज का साथ भी मिल रहा है। 20 अप्रैल के बाद उम्मीद की जा सकती है कुछ गतिविधियां सामान्य होने की तरफ लौटें। तब तक केवल आवश्यक, बल्कि अनिवार्य काम ही हो रहे हैं। इस बीच हिमाचल प्रदेश ने कोरोना के मामलों पर कई राज्यों की तुलना में नियंत्रण भी साबित किया है। एक खास वर्ग के कुछ लोग अगर वक्त रहते अपने यात्रा वृत्तांत को रहस्य नहीं रखते तो संकेत ऐसे ही थे कि यह आपदा अपेक्षकृत जल्द समेटी जाती और कतिपय लोगों के विरुद्ध हत्या के प्रयास के मामले भी न चलते, उनकी जान भी सांसत में न आती। इस समय रेड जोन में ऊना और सोलन जिले ही हैं, शेष 10 जिलों में शांति है।

मुख्यमंत्री के अलावा अधिकारी और सड़क पर अपने कर्तव्य का निर्वहन करने वाले पुलिस कर्मचारी, राशन और अन्य आवश्यक वस्तुओं को लाने-ले जाने वाले ट्रक चालक, बिजली आपूर्ति बनाए रखने वाले कर्मचारियों की भूमिका कहीं से कमतर नहीं है। इनके घरों में असुरक्षा के ताप को केवल इनकी कर्तव्य परायणता ही कम करती है। कोई शक नहीं कि चिकित्सक और स्वास्थ्यकर्मियों की भूमिका किसी भी वर्णन की मोहताज नहीं।

संयोग से यह सब ऐसे समय में हुआ या हो रहा है जब प्रदेश का कोई स्वास्थ्य मंत्री नहीं है, कोई खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री नहीं है। उनके बगैर ही अगर प्रशासनिक क्षमता का यह उच्च स्तर दिख रहा है तो अनुमान ही किया जा सकता है कि प्रदेश में बाकी बोर्ड या निगमों की कितनी आवश्यकता है। यह ठीक है कि इस आपदा के साथ जंग का खर्च केंद्र उठा रहा है, लेकिन हिमाचल प्रदेश ने यह साबित किया है कि छोटे राज्य का प्रबंधन आसान है और अपने संसाधनों पर ध्यान दें तो हम किसी से पीछे नहीं हैं।

इस आपदा ने सीधे-सीधे एक रेखा खींच दी है कि जरूरत क्या होती है और विलासिता क्या होती है। कोरोना के खत्म होने के बाद भी उम्मीद है कि जिस तरह हाथ धोने का प्रोटोकॉल जारी रहेगा, शारीरिक दूरी का नियम अनिवार्य समझा जाएगा, उसी प्रकार यह भी समझा जाएगा कि राजनीतिक नेतृत्व या नीति नियंता भी वही करेंगे जो आवश्यक होगा। अपने ही मन से पूछना चाहिए कि आज कितने बोर्ड या निगम काम आ रहे हैं। रबी की फसल काटने की अनुमति मिल गई है, लेकिन बाजार तक कैसे जाएगी, क्या विपणन बोर्ड कहीं आएगा। जहां तक शुल्क की बात है, वह किसान को तब भी देना पड़ता है, जब वह घर की दहलीज से सड़क तक फसल लेकर आता है।

रही कोरोना की बात तो हर पक्ष लक्ष्मण रेखा में रहे तो कोई कारण नहीं है कि मानवीय मनोबल के आगे कोई भी आपदा छोटी ही साबित हो। बहरहाल लॉकडाउन-2 की मंशा यही है कि सुरक्षा चक्र न टूटे और अति आवश्यक कार्य भी न रुकें। घरों में रहने वालों को यह समय उनके बारे में सोच कर बिताना चाहिए जो इसलिए बाहर हैं कि आप घर में रह सकें। यह अकारण नहीं है कि मुख्यमंत्री ने वीडियो कॉल करके चिकित्सकों के परिजनों के साथ बात की, उनका हौसला बढ़ाया। यही सकारात्मकता किसी भी बड़ी से बड़ी नकारात्मकता पर जीत दर्ज कर सकती है। तूफानों में पलने वाले ही दुनिया बदलते हैं, यह जिगर मुरादाबादी ने भी कहा था- जो तूफानों में पलते जा रहे हैं, वही दुनिया बदलते जा रहे हैं।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]