प्रदीप शुक्ला। हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी गठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार में बेशक एक महीना लग गया, लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि देर आयद, दुरुस्त आयद। लंबी माथापच्ची के बाद कांग्रेस और झामुमो में मंत्रिमंडल की सीटों और विभागों का बंटवारा हो गया है और फिलहाल कहीं से कोई विरोध का स्वर सुनाई नहीं दे रहा है। मंत्रिमंडल में हिस्सा न पाने से कुछ तबके जरूर निराश हैं, लेकिन सरकार देर-सबेर बोर्ड और निगमों में इन समाज के प्रतिनिधियों को स्थान देकर इस नाराजगी से भी उबरने में कामयाब हो सकती है। हालांकि सरकार की असल परीक्षा अब शुरू हुई है। जैसा कि दावा किया जा रहा है, सरकार को विरासत में खाली खजाना मिला है। ऐसे में चुनावी वादों को धरातल पर उतारना टेढ़ी खीर साबित होने वाला है।

भारी-भरकम राशि होगी खर्च 

किसानों की कर्जमाफी और बेरोजगारों को भत्ता देने में भारी-भरकम राशि खर्च होगी। इसके अलावा गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को सालाना 72 हजार रुपये देने की योजना अमल में लाने के लिए भी काफी धन की आवश्यकता होगी। इन चुनावी घोषणाओं को अमल में लाने के लिए सरकार को वित्तीय स्थिति मजबूत करनी होगी। खजाने की खस्ता हालत के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पिछली सरकार को दोषी ठहरा रहे हैं। इस पर श्वेतपत्र लाने की भी घोषणा कर चुके हैं। पर वह इससे भलीभांति वाकिफ होंगे ही कि यह सब कुछ महीने तक ही कहा-सुना जा सकता है। जनता में उतना धैर्य नहीं कि वह सरकार की वित्तीय स्थिति मजबूत होने तक वादों की पोटली खुलने का इंतजार करती रहे। ऊपर से भाजपा के रूप में प्रदेश में मजबूत विपक्ष है। बाबूलाल मरांडी के भाजपा में जाने की खबरों के बाद पार्टी आगे की रणनीति पर जिस तरह काम कर रही है वह भी सरकार को मुसीबत में डाल सकती है।

पत्थलगड़ी पर विवादों का साया 

पत्थलगड़ी का जिन्न झारखंड में एक बार फिर बाहर आ गया है। पश्चिम सिंहभूम के सुदूर गुदड़ी प्रखंड में इस विवाद की वजह से सात लोगों की हत्या के बाद हेमंत सरकार पर पत्थलगड़ी समर्थकों के प्रति लचीले रवैये पर सवाल उठने लगे हैं। बकौल पुलिस, यह घटना पत्थलगड़ी का विरोध करने की वजह से घटी। जिन सात लोगों की हत्या हुई, वे गांव में पत्थलगड़ी का विरोध कर रहे थे। इन लोगों पर यह भी दबाव था कि वे सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से परहेज करें। इससे मना करने की कीमत इन्हें जान देकर चुकानी पड़ी। गौरतलब है कि पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के दौरान प्रदेश में बड़े पैमाने पर सुनियोजित तरीके से पत्थलगड़ी की साजिश रची गई थी।

जांच में यह बात सामने आई थी कि भोलेभाले गरीब आदिवासियों को तमाम राष्ट्र विरोधी ताकतों ने बहला-फुसलाकर सरकार के खिलाफ खड़ा कर दिया था। खैर, रघुवर सरकार ने इस आंदोलन को राष्ट्र विरोधी गतिविधि करार देते हुए इससे जुड़े लोगों पर कड़ा कानूनी शिकंजा कसा था। राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल तमाम लोगों पर मुकदमे दर्ज हुए थे। हेमंत सोरेन की सरकार ने पहली कैबिनेट में पत्थलगड़ी समर्थकों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने का निर्णय किया है। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह पूछा है कि देशद्रोह से जुड़ा मुकदमा राज्य सरकार वापस लेना चाहती है या नहीं? राज्य सरकार को इस पर जवाब देना है।

यहां भी एक शाहीन बाग 

दिल्ली के शाहीनबाग की तर्ज पर झारखंड में रांची और धनबाद में भी सीएए विरोधियों का धरना चल रहा है। रांची में हज हाउस के सामने कई दिनों से महिलाएं बैठी हैं, हालांकि राज्य सरकार का रुख इस कानून को लेकर पूरी तरह स्पष्ट नहीं है, लेकिन कानून के समर्थन और विरोध का सिलसिला यहां लगातार चल रहा है। इसकी वजह से हिंसा भी हो रही है। लोहरदगा में सीएए के समर्थन में निकाले गए जुलूस पर विरोधियों ने हमला बोल दिया। हिंसा की वजह से लोहरदगा अशांत है और वहां एक सप्ताह से कफ्यरू लागू है। एक युवक की मौत भी हो चुकी है। इससे पहले गिरिडीह में भी सीएए समर्थकों के जुलूस पर विरोधियों ने हमला किया था।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन स्पष्ट कर चुके हैं कि अगर सीएए, एनआरसी से किसी एक भी व्यक्ति को झारखंड छोड़ना पड़ेगा तो सरकार इसे लागू नहीं करेगी। सीएए समर्थकों और विरोधी लगातार जिलों में आयोजन कर रहे हैं और इससे तनाव भी पैदा हो रहा है, लेकिन अब सरकार की तरफ से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। वैसे मुख्यमंत्री ने चेताया है कि किसी भी प्रकार की अराजकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी और शरारती तत्वों से सख्ती से निपटा जाएगा। फिलहाल सीएए को लेकर विरोध-प्रदर्शन और समर्थन का दौर थमता नहीं दिख रहा है।

(लेखक झारखंड के स्थानीय संपादक हैं)  

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