[प्रमोद भार्गव]। जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के जरिये राजनीतिक भूगोल बदलने की कोशिश समस्या के हल की दिशा में उल्लेखनीय पहल है। चूंकि यह संविधान में दर्ज प्रावधानों के तहत होगी, इसलिए इसे केंद्र सरकार की मनमानी के रूप में भी नहीं देखा जा सकता है। इसके लिए गृह मंत्री अमित शाह सक्रिय हो गए हैं। शाह ने जम्मू-कश्मीर समस्या के हल के नजरिये से एक उच्चस्तरीय बैठक आहूत कर इस राज्य में विधानसभा क्षेत्रों का नए सिरे से सीमा-निर्धारण के लिए परिसीमन पर गंभीरता से विचार शुरू किया है। इसके लिए परिसीमन आयोग का गठन किया जा सकता है जो जम्मू, कश्मीर और लद्दाख संभाग के वर्तमान राजनीतिक भूगोल का अध्ययन कर रिपोर्ट देगा। आयोग राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में मौजूदा आबादी और उसका विधानसभा व लोकसभा क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व का आकलन करेगा, राज्य में अनुसूचित व अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों को सुरक्षित करने का भी अहम निर्णय लेगा। परिसीमन के नए परिणामों से जो भौगोलिक, सांप्रदायिक और जातिगत असमानताएं दूर होंगी।

इस राज्य में अंतिम बार 1995 में परिसीमन हुआ था। राज्य का संविधान कहता है कि हर 10 साल में परिसीमन जारी रखते हुए जनसंख्सा के घनत्व के आधार पर विधानसभा व लोकसभा क्षेत्रों का निर्धारण होना चाहिए। इसी आधार पर राज्य में 2005 में परिसीमन होना था, लेकिन 2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने राज्य संविधान में संशोधन कर 2026 तक इस पर रोक लगा दी थी। बहाना बनाया कि 2026 के बाद होने वाली जनगणना के प्रासंगिक आंकड़े आने तक परिसीमन नहीं होगा। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राजग सरकार ने 2002 में कुलदीप सिंह आयोग गठित कर परिसीमन प्रक्रिया शुरू की थी। दरअसल दो घरानों की मिलीभगत आजादी के बाद से ही रही है कि इस राज्य में इन दो परिवारों के अलावा अन्य कोई व्यक्ति शासन न कर पाए? हालांकि कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि इस संशोधन को राज्यपाल बदल सकते हैं।

फिलहाल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा की कुल 111 सीटें हैं। इनमें से 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर क्षेत्र में आती हैं। इस उम्मीद के चलते ये सीटें खाली रहती हैं कि एक न एक दिन पीओके भारत के कब्जे में आ जाएगा। फिलहाल बाकी 87 सीटों पर चुनाव होता है। इस समय कश्मीर यानी घाटी में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में चार विधानसभा सीटें हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में जम्मू संभाग की जनसंख्या 53.78 लाख है। यह प्रांत की 42.89 प्रतिशत आबादी है। राज्य का 25.93 फीसद क्षेत्र जम्मू संभाग में आता है। इस क्षेत्र में विधानसभा की 37 सीटें आती हैं। दूसरी तरफ कश्मीर घाटी की आबादी 68.88 लाख है। प्रदेश की आबादी का यह 54.93 प्रतिशत भाग है। कश्मीर संभाग का क्षेत्रफल राज्य के क्षेत्रफल का 15.73 प्रतिशत है। यहां से कुल 46 विधायक चुने जाते हैं। राज्य के 58.33 प्रतिशत वाले भू-भाग लद्दाख संभाग में महज चार विधानसभा सीटें हैं। जनसंख्यात्मक घनत्व और संभागवार भौगोलिक अनुपात में बड़ी असमानता है, जनहित में इसे दूर किया जाना, एक जिम्मेदार सरकार की जवाबदेही बनती है। केंद्र सरकार परिसीमन पर इसलिए भी जोर दे रही है, जिससे अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए भी सीटों के आरक्षण की नई व्यवस्था लागू की जा सके।

वर्तमान में जम्मू क्षेत्र से ज्यादा विधायक कश्मीर क्षेत्र से चुनकर आते हैं, जबकि जम्मू क्षेत्र कश्मीर से बड़ा है। इसे लक्ष्य करते हुए तुलनात्मक दृष्टि से जम्मू संभाग में ज्यादा सीटें चाहिए। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी विडंबना रही है कि राज्य में जो भी परिसीमन हुए हैं, उनमें भूगोल और जनसंख्या को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। नतीजतन जम्मू और लद्दाख संभागों से न्यायसंगत प्रतिनिधित्व राज्य विधानसभा में नहीं हो पा रहा है। भाजपा और जम्मू संभाग का नागरिक समाज इस असमानता को दूर करने की मांग 2008 से निरंतर कर रहा है। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद जब इस राज्य के मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने स्वयं परिसीमन आयोग गठित करने की पहल की थी, लेकिन पीडीपी व नेशनल कांफ्रेंस के विरोध के चलते आयोग का गठन संभव नहीं हुआ। इसीलिए अब जब आयोग के गठन का मुद्दा जोर पकड़ रहा है तो पीडीपी अध्यक्ष व राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो यहां तक कह दिया कि ‘यदि विधानसभा सीटों का पुनर्गठन जबरन किया गया तो सांप्रदायिक आधार पर एक और भावनात्मक विभाजन थोपना तय है।

आतंकवाद के चलते यह राज्य ऐसी दुर्दशा का शिकार हो गया है कि यहां बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय को छोड़, अन्य सभी समुदायों के लोग निराशा में हैं। उनका आबादी का प्रतिशत अच्छा-खासा है, बावजूद उन्हें अपनी ही मातृभमि पर शरणार्थियों का जीवन जीना पड़ रहा है। वर्ष 2011 के जनगणना के आंकड़ों के अनुसार जम्मू में हिंदू आबादी 65.23, कश्मीर में 1.84 और लद्दाख में 6.22 प्रतिशत है। इसी तरह बौद्ध आबादी जम्मू में 0.51, कश्मीर में 0.11 और लद्दाख में 45.87 प्रतिशत है। सिख आबादी जम्मू में 3.57 और कश्मीर में 0.88 प्रतिशत है।

कश्मीर में जब भी समता का कोई प्रयास किया जाता है तो अब्दुल्ला और महबूबा अलगाववाद की भाषा बोलने लगते हैं। वर्ष 1952 के बाद कश्मीर में जो कानून लागू किए गए हैं, उनकी समीक्षा के लिए भी संवैधानिक आयोग बनाने का प्रावधान है, लेकिन जब केंद्र व राज्य सरकारें यथास्थिति बनी रहने में ही जम्मू-कश्मीर के हित के मुगालते में रहे हों, तो संवैधानिक प्रावधान अपनेआप तो लागू होने से रहे? बहरहाल जम्मू-कश्मीर राज्य के हित में गृह मंत्री अमित शाह ने जो संवैधानिक इच्छा शक्ति जताई है, उसका स्वागत के साथ क्रियान्वयन जरूरी है।

बीते करीब दो दशकों से जम्मू-कश्मीर में विधानसभा व लोकसभा क्षेत्र के लिए परिसीमन नहीं किया गया है जिसे जनसंख्या की विविधता के लिहाज से जरूरी समझा जाता है। ऐसे में राज्यपाल के जरिये इस कार्य को अंजाम देना आवश्यक है।

प्रमोद भार्गव

(स्वतंत्र टिप्पणीकार)

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