आशीष व्‍यास

बीता सप्ताह मध्य प्रदेश, विशेष रूप से इंदौर-भोपाल के लिए उत्साह और सम्मान से भरा था। एक के बाद एक राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिले। साफ शहर का तमगा लेते-लेते इंदौर देश के सबसे साफ-सुथरे पर्यटन शहरों में भी शामिल हो गया। 

टॉप टेन की सूची में मिली जगह

नॉन मेट्रो शहरों में इंदौर एयरपोर्ट को भी पहला स्थान मिला। अभी बैंकॉक जाकर यूएन द्वारा दिया जाने वाला अंतरराष्ट्रीय अवार्ड लेना बाकी है! साफ-सफाई अच्छी होते ही इंदौर-भोपाल रहने लायक शहरों में टॉप 10 की सूची में आ गया। विशेष रूप से इंदौर, यानी 27-28 लाख लोगों ने अपनी आदत में जरा-सा बदलाव क्या किया, एक शहर की किस्मत बदलने लगी।

बदलाव के नायक

कुछ अलग करते-कुछ अलग बनते ऐसे ही शहरों की कहानियां कहती एक पुस्तक है- पोस्टकार्डस ऑफ चेंज। इसमें शहरों के बदलने और बदलाव लाने वाले नायकों की सच्ची कहानियां हैं। इंदौर-भोपाल भी अब इसमें शामिल हैं। यह इसलिए भी खास है, क्योंकि इस किताब को लिखने वाली जानी-मानी अर्थशास्त्री का मध्य प्रदेश से गहरा नाता है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन की अध्यक्ष डॉ. ईशर जज अहलूवालिया का बचपन इंदौर में बीता और ससुराल भोपाल में है। वर्ष 2014 में जब यह पुस्तक आई तब इंदौर-भोपाल या यूं कहें मध्य प्रदेश का इसमें नाम तक नहीं था। अहलूवालिया कहती हैं, ‘वर्ष 2011-14 के बीच देशभर के 38 केस थे।

एक से बढ़कर एक उदाहरण

महाराष्ट्र के 11, कर्नाटक छह, गुजरात के पांच, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के चार-चार, ये सभी सफाई, सीवरेज प्लानिंग, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट करते हुए खुद को बदल रहे थे। जैसे महाराष्ट्र में मलकापुर वह पहला शहर है जिसने अपने निवासियों के लिए चौबीस घंटे जल-प्रदाय निर्धारित किया।

गुजरात का सूरत प्लेग की महामारी वाले शहर से रूपांतरित होकर सबसे स्वच्छ शहरों में से एक बना। पुणो की झीलों को पुराने स्वरूप में लौटा लाना और भुवनेश्वर की समृद्ध विरासत को बनाए रखने के लिए मंदिर के संरक्षण जैसे उल्लेखनीय काम किए गए। हैदराबाद, बेंगलुरु, अहमदाबाद, जयपुर भी ऐसी ही कई कहानियों का जरिया हैं।’ बहुत स्पष्ट है यह संभव हुआ सिर्फ सफाई से। इसीलिए इंदौर से बार-बार पूछा जा रहा है कि यह कैसे हुआ, इस ऊंचाई पर बने रहने और आगे जाने के लिए क्या-क्या करना होगा? देश-दुनिया के दूसरे शहर क्या कर चुके हैं और क्या करने वाले हैं?

इंदौर में तकनीक बनी सहारा

इंदौर से पहले और मैसूर और चंडीगढ़ जैसे शहरों का साफ-सफाई को लेकर अपना एक इतिहास रहा है, लेकिन इंदौर दो साल पहले तक बहुत गंदा था। स्वाभाविक है कि तब यहां सफाई की कोई संस्कृति नहीं थी। जब क्रांतिकारी बदलाव के साथ पहले स्थान का खिताब मिला तो आइआइएम, केपीएमजी (इंटरनेशनल) और बेसिक्स जैसी संस्थाओं ने इंदौर में सफाई को लेकर आई जागरूकता व सामाजिक बदलाव पर अलग-अलग अध्ययन किया। निष्कर्ष निकला-निगरानी के लिए ऑनलाइन मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया गया और दो साल तक शहर को बार-बार याद दिलाया, नियमित रूप से जागरूक भी किया।

धीरे-धीरे बन गई आदत

इसे‘टिगरिंग-एक्टिविटी’का नाम दिया गया। अब जब यह आदत बन गई तो नगर निगम के लिए भी इस सफाई व्यवस्था को बनाए रखना ज्यादा आसान हो गया, उनकी भी अपनी जिम्मेदारी-जवाबदेही निर्धारित हो गई। इंदौर नगर निगम अपने इस स्थान को बनाए रखने के लिए लगातार ऐसा नवाचार भी कर रहा है जो देश में पहली बार होगा। जैसे अगले तीन महीने में 50 हजार घरों में, कचरा घर से बाहर जाने के बजाय घर में ही खाद के रूप में बदलने लगेगा।

एकमात्र ऐसा शहर जिसमें सैनेटरी पैड जैसे कचरे का अलग से कलेक्शन होने लगा है। इंदौर की इस प्रेरणा-सफलता में कई दूरस्थ गांव-शहरों की छोटी-छोटी कहानियां भी शामिल हैं। अभी इनका नाम-इनाम छोटा है, लेकिन काम जरूर बड़ा है। उत्तर प्रदेश में बलिया जिले का एक गांव छितौनी भी उदाहरण है। यहां के लोग प्रत्येक रविवार सफाई-दिवस मनाते हैं। गांव के 60 प्रतिशत लोग सरकारी नौकरी करते हैं इसलिए रविवार को सभी मिलकर सफाई में जुट जाते हैं। तालाब, सड़कें, गलियों को हर रविवार साफ किया जाता है।

याद नहीं आया‘रामनाम’

बीते सप्ताह मध्य प्रदेश दो बड़े राजनीतिक दौरों के दौर से गुजरा। पहला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भोपाल में कार्यकर्ता महाकुंभ में पहुंचना और दूसरा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का चित्रकूट-विंध्य का दौरा। स्वाभाविक था कि पूरे प्रदेश में अचानक से राजनीतिक सक्रियता बढ़ गई। महाकुंभ में प्रदेश भर से जुटे कार्यकर्ता फिर जीत का संकल्प लेकर लौटे।

भीड़ के दावे जहां चर्चा का विषय बने रहे, वहीं लंबे अंतराल के बाद प्रदेश से जुड़े भाजपा के कई बड़े नेता एक मंच पर दिखाई दिए। इसी तरह कांग्रेस पिछले दिनों राम वन गमन पथ को मु्द्दा बनाने के दावे के साथ सक्रिय थी, लेकिन चित्रकूट पहुंचा कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इससे अलग ही रहा। चित्रकूट से लेकर विंध्य के कई शहरों में न राम वन गमन पथ की चर्चा हुई और न ही इसके जरिये राम की।

सोने के बाद भी जगा गया राजू

निगरानी के कई स्तर बनाए जाने के बावजूद सरकारी तंत्र कैसे काम करता है इसका सबूत बनकर सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज हो गया धार का एक किस्सा। जिले के सरदारपुर क्षेत्र के आदिवासी बहुल गांव में रहने वाले नरसिंह बोदर के राशनकार्ड में पिछले 10 साल से बेटे के रूप में पालतू कुत्ता राजू दर्ज था। इस नाम पर चार साल से हर माह पांच किलो राशन भी लिया जा रहा था।

सरकारी रिकॉर्ड दुरुस्त करने के दबाव में इस बार जब सेल्समैन गांव पहुंचा तो उसने नरसिंह से राजू (कुत्ते) का आधार कार्ड मांगा। इसके बाद हुए खुलासे से प्रशासनिक अमला ताबड़तोड़ राजू का नाम हटवाने में जुट गया। जांच और कार्रवाई भी हो ही गई, लेकिन दो महीने पहले ही हमेशा के लिए सो गया राजू सरकारी व्यवस्था को ‘जगाने’ का सबक जरूर दे गया। 

[लेखक: संपादक , नईदुनिया, मध्यप्रदेश ]