विद्या शाह। हाल ही में मैंने दाग देहवली की एक गजल रिकॉर्ड की थी और उसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिये साझा किया गया। एक संगीत प्रेमी ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया दी, मैं इस राग देहलवी को पसंद करता हूं, जिसे आपने गाया है। इस गीत के गीतकार कौन हैं? (दरअसल उन्होंने इसे गीत लिखा, यानी शायद उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि दाग साहब कौन थे, और इसके बाद क्या हुआ होगा उसकी कल्पना आप स्वयं भी कर सकते हैं)। इन दिनों भीतर से मुङो बहुत भारीपन सा महसूस हो रहा है। अपने चित्त को सकारात्मक बनाए रख पाना आजकल बहुत मुश्किल हो रहा है, और वह बार बार इधर-इधर हो जाता है। कला और कलाकार के आस-पास संबंधित तमाम तथ्यों की समझ और परानुभूति का अभाव मन को व्यथित कर रहा है।

एक समय था, जब एक राग का रियाज कई वर्षो तक किया जाता था, और जब तक उसके उच्चतम बिंदु को प्राप्त नहीं कर लिया जाता, तब तक वह प्रदर्शित करने यानी गायन के योग्य नहीं समझा जाता था। कलात्मकता के बहुत उच्च स्तर को हासिल करने के क्रम में कलाकारों द्वारा किए गए अलौकिक समर्पण और भारतीय संगीतकारों द्वारा कला की साधना के लिए इसमें झोंकी गई ऊर्जा के अनगिनत किस्से हैं। ऐसे किस्सों की भी भरमार है, जिनमें रात्रि के समय रियाज के दौरान नींद या थकावट के कारण बाधा आने पर शिष्यों की शिखा किसी ऊंची वस्तु से बांध दी जाती थी, ताकि उन्हें हर हाल में जगाए रखा जा सके। इसके बाद एक बत्ती, दो बत्ती और तीन बत्ती का रियाज किया जाता था। इसमें एक बत्ती के बारे में तो यहां तक कहा जाता है कि वह आठ घंटे तक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। रियाज की यह प्रक्रिया एक साधना की तरह, एक तपस्या की भांति होती है।

इतना ही नहीं, वाद्य यंत्र बजाने वालों की कलाइयों पर भार के रूप में कुछ बांध भी दिया जाता था, ताकि वाद्य यंत्रों पर पड़ने वाला जोर और उसका घनत्व बढ़ सके। दक्षिण भारत के गीत-संगीत से जुड़े तमाम कलाकारों के बारे में भी ऐसी ही कई कहानियां हैं। उन्नीसवीं सदी के प्रसिद्ध संगीतकार और गायक पत्तनम सुब्रमण्यम अय्यर, जिन्हें बगेडा अय्यर के नाम से भी जाना जाता है, राग बगेडा में वे पूरी तरह सिद्धहस्त थे। कहा जाता है कि एक बार उन्होंने तमिलनाडु में अपने ग्राम देवता के पास जाकर इसी राग से उन्हें रिझाया था। दरअसल दरिद्रता के बीच जीवन जीते रहने से आजिज आकर उन्होंने ग्राम देवता के समक्ष अपनी धुन की तान छेड़ते हुए उनसे गुहार लगाई थी कि जब तक उनकी आíथक दशा में सुधार नहीं होगा, तब तक वह अपने संगीत की धुन को बंद नहीं करेंगे। इस तरह की कठिन साधना या तपस्या से संगीत का जो एक व्यापक फलक उभर कर हमारे सामने आया, जिन्हें संगीत विधा के व्याकरण के दायरे में परिभाषित किया गया, वे ही भारत में शास्त्रीय संगीत के मानदंड के रूप में कायम हुए।

शास्त्रीय संगीत के संकुचन के प्रति चिंता : वर्ष 1922 में जानकी बाखले ने भारतीय शास्त्रीय संगीत के पुरोधा पंडित विष्णु नारायण भातखंडे को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने एक इस बात के प्रति भी चिंता जाहिर की थी कि भारत में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत शनै: शनै: विलुप्त होता जा रहा है। इसमें उन्होंने लिखा था, कोई भी इसकी महान उपयोगिता को प्रोत्साहित नहीं करता है। निश्चित रूप से एक दिन ऐसा आएगा, जब लोग इस बारे में पश्चाताप करेंगे। आगामी दशक में अधिकांश अग्रणी संगीतकार और संगीत के विद्वानों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा। सामाजिक दुनिया में होने वाले तीव्र बदलावों के बावजूद लगभग एक सदी के बाद हर गुजरते हुए दिन के साथ शास्त्रीय संगीत का विचार सिकुड़ता जा रहा है और अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए वह संघर्ष कर रहा है।

पारंपरिक विचारों के समक्ष एक बार फिर से चुनौती पैदा हो गई है। हालांकि संगीत का एक मर्मज्ञ श्रोता उसकी शैलियों की बारीकी को बेहतर तरीके से समझता है और संगीत की दुनिया में मौजूद अनेक प्रकार के रागों को जानता है। किंतु जीवन शैली में आए अनेक बदलावों की तरह संगीत की दुनिया में भी व्यापक बदलाव आया है। शास्त्रीय संगीत की खयाल, ठुमरी और ध्रुपद जैसी शैलियों को आज बिसरा दिया गया है।

लेकिन जब दाग साहब ही एक राग बन गए, तो फिर चिंतित होना लाजिमी है। वर्तमान कोविड महामारी के दौर में न केवल कला, बल्कि कलाकार तक, सभी के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। जहां एक ओर कलाकार अपनी मेहनत के बूते इस समृद्ध कला की विरासत को बचाए रखने के लिए सदियों से मेहनत करते आए हैं, वहीं दूसरी ओर पारंपरिक संगीत की तस्वीर दिन-प्रतिदिन धुंधली होती जा रही है। कुछ गंभीर सवालों के गंभीर जवाब चाहिए। अपनी संस्कृति को बचाए रखने और उसे संवíधत करने की जिम्मेदारी किसकी है? कौन इसका संरक्षक होगा? उन हजारों लोगों का क्या होगा, जिनकी आजीविका का साधन कला का यही रूप है? इन सब चीजों के बारे में सोच सोच कर मेरा मन इन दिनों बहुत ही भारी हो गया है।

देवो मोहे धीर, सरस्वती।

[प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका]