मुकुल श्रीवास्तव। इंटरनेट तकनीक के विकास के शुरुआती दौर में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा। प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा था, पर जैसे जैसे तकनीक का विकास होता गया इंटरनेट ने विकासशील देशों की ओर रुख करना शुरू किया और नई नई सेवाएं इससे जुड़ती चली गईं। आज इंटरनेट के बगैर जीवन की कल्पना करना थोड़ा मुश्किल है।

जम्मू कश्मीर में लगी इंटरनेट की पाबंदी के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी यह इशारा करती है कि अब इंटरनेट महज एक तकनीक भर नहीं रहा, बल्कि हमारी जीवन शैली का अंग बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट के जरिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(ए) के तहत मौलिक अधिकार है। इंटरनेट के जरिये कारोबार करने के अधिकार को भी अनुच्छेद 19 (1)(जी) के तहत संवैधानिक संरक्षण मिला हुआ है। इंटरनेट को एक तय अवधि की जगह अपनी मर्जी से कितने भी समय के लिए बंद करना टेलीकॉम नियमों का उल्लंघन है। स्कूल-कॉलेज और अस्पताल जैसी जरूरी सेवाओं वाले संस्थानों में इंटरनेट बहाल किया जाना चाहिए। इंटरनेट अब सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ही नहीं जरूरी है, बल्कि हमारा पूरा समाजीकरण उसी से निर्धारित हो रहा है और यह जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है।

इंटरनेट ने लोकाचार के तरीकों को बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहुत सारे रिवाज अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। विवाह तय करने जैसी सामाजिक प्रक्रिया पहले परिवार और खानदान के बड़े-बुजुर्गो, मित्रों, रिश्तेदारों को शामिल करते हुए आगे बढ़ती थी, अब उसमें भी ‘ई’ लग गया है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार वैवाहिक वेबसाइटों पर 2013 में 8.5 लाख प्रोफाइल अपलोड की गई जिनकी संख्या 2014 में 19.6 लाख हो गई। सामाजिक रूप से देखें तो जहां पहले शादी के केंद्र में लड़का और लड़की का परिवार रहा करता था, अब वह धुरी खिसककर लड़के व लड़की की इच्छा पर केंद्रित होती दिखती है। यह अच्छा भी है, क्योंकि शादी जिन लोगों को करनी है, उनकी सहमति परिवार में एक तरह के प्रजातांत्रिक आधार का निर्माण करती है, न कि उस पुरातन परंपरा के आधार पर, जहां माता-पिता की इच्छा ही सबकुछ होती थी।

भारत में एप के माध्यम से घर में बने खाने का तेजी से बढ़ता व्यापार, बदलती जीवन शैली, बढ़ता मध्यम वर्ग और कामकाजी महिलाओं की संख्या में इजाफा और दुनिया में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा स्मार्टफोन धारकों की उपस्थिति ये कुछ ऐसे कारक हैं जिनसे घर पर खाना बनाने की प्रवृत्ति प्रभावित हुई है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अनुसार भारत में खानपान का बाजार 2014 में 23 लाख करोड़ रुपये का था जो इंटरनेट के प्रभाव और इस्तेमाल से इस वर्ष के आखिर तक 42 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है। आज परंपरागत बाजार को ऑनलाइन शॉपिंग कड़ी टक्कर दे रहा है। ऑनलाइन खुदरा व्यापारियों के पास हर सामान उपलब्ध हैं। किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला फर्नीचर, कपड़ों, किराने के सामान से लेकर फल, सौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है। स्नैप डील कंपनी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ऑनलाइन बाजार 800 अरब डॉलर का है जो लगातार बढ़ रहा है और 2025 तक यह लगभग दो हजार अरब डॉलर का हो जाएगा। समय आ गया है कि सरकार आपात स्थिति में इंटरनेट बंद करने के इतर विकल्पों पर विचार करे, क्योंकि इंटरनेट अब एक आवश्यक आवश्यकता बन चुका है।

(लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)