[ पीके मिश्रा ]: दुनिया में हर साल 13 अक्टूबर को अंतरराष्ट्रीय आपदा न्यूनीकरण दिवस यानी आइडीडीआर मनाया जाता है। इस दिन प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए समुदायों और सरकारों के प्रयासों को याद किया जाता है। 2015 में आपदा न्यूनीकरण के लिए सेंदाई फ्रेमवर्क को अपनाने के बाद, ‘सेंदाई सेवन’ अभियान के तहत इस मुहिम की शुरुआत हुई। यह सात लक्ष्यों पर केंद्रित है। इस वर्ष का विषय ‘जोखिम वाली अवसंरचनाओं यानी आधारभूत ढांचे को आपदा से होने वाले नुकसान को कम करने और बुनियादी सेवाओं में बाधा’ से जुड़े लक्ष्य पर केंद्रित है।

प्राकृतिक आपदाओं से भारी भरकम नुकसान

इस साल अभी तक मोजांबिक, बहामास और भारत (ओडिशा में आया चक्रवात) प्राकृतिक आपदाओं के शिकार हुए हैैं। इनसे हुए नुकसान ने ऐसी अवसंरचना के निर्माण की जरूरत को रेखांकित किया जो आपदाओं को सहन करने में समर्थ हो सके। ओडिशा में आए चक्रवात में ही अकेले बिजली क्षेत्र को लगभग 1.2 अरब डॉलर का नुकसान हुआ। इससे यही सबक मिला कि आपदा रोधी अवसंरचना में निवेश का लंबे समय तक कैसे फायदा हो सकता है?

चक्रवात जोखिम शमन कार्यक्रम

विश्व बैंक की सहायता वाले चक्रवात जोखिम शमन कार्यक्रम के तहत तटीय ओडिशा के कुछ हिस्सों में बिजली वितरण नेटवर्क के भूमिगत केबल बिछाने में निवेश किया गया है। इससे इन क्षेत्रों में आपदा के बाद बिजली की आपूर्ति कुछ दिनों के भीतर ही बहाल की जा सकती है जबकि अभी ऐसे इलाकों में कई हफ्ते लग जाते हैं। इससे बिजली की आपूर्ति में बाधा से रोजी-रोटी पर पड़ने वाले असर को भी कम से कम किया जा सकता है। भारत और दुनिया भर में जन उपयोगी सेवाओं को इस तरह के अनुभवों को करीब से देखने और अपनी अवसंरचना में उन्हें शामिल करने के लिए व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।

अवसंरचना क्षेत्र में भारी निवेश

भविष्य में अवसंरचना क्षेत्र में भारी निवेश होगा। इन अवसंरचनाओं को प्राकृतिक एवं मानवनिर्मित आपदा और जोखिम भी झेलने होंगे। इनमें कुछ आपदाएं अप्रत्याशित हो सकती हैं। इस दौरान प्राकृतिक जोखिम के रूप भी बदल सकते हैं। ऐसे में अवसंरचना प्रणाली के डिजाइन, निर्माण, परिचालन और रखरखाव को जोखिम झेलने लायक बनाना होगा। ऐसा इसलिए भी जरूरी होगा, क्योंकि आपदाओं की स्थिति में सार्वजनिक क्षेत्र में दो तिहाई नुकसान अवसंरचना से जुड़ा होता है। इसका सबसे अधिक असर आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग पर पड़ता है और उसे आपदा से उबरने में अच्छा-खासा समय लग जाता है।

अवसंरचना प्रणाली का टिकाऊ होना चिंता का मुद्दा

अवसंरचना प्रणाली का टिकाऊ होना न केवल आपदा प्रबंधन, बल्कि विकास से जुड़ी चिंता का मुद्दा भी है। घरेलू और वैश्विक बाजारों से संपर्क और पहुंच तथा बिजली, पानी और सक्षम संचार प्रणाली आर्थिक विकास और समृद्धि के लिए अनुकूल परिवेश तैयार करते हैं। यह बात सतत विकास लक्ष्य में भी उल्लिखित है। वास्तव में सतत विकास के अन्य लक्ष्यों में भी गुणवत्तापरक अवंसरचना पर निवेश को खास महत्व दिया गया है।

टिकाऊ अवसंरचना निर्माण के लिए पर्याप्त वित्तीय प्रोत्साहन की जरूरत

टिकाऊ अवसंरचना निर्माण के लिए पर्याप्त मात्रा में वित्तीय प्रोत्साहन, मानक, प्रशासन व्यवस्था और क्षमता की जरूरत होती है, लेकिन इसमें जितना निवेश होता है उसकी तुलना में कहीं अधिक लाभ की संभावना होती है। ओडिशा का उदाहरण इसका प्रमाण है। विश्व बैंक के हालिया अध्ययन के अनुसार आपदारोधी प्रक्रिया को मजबूत बनाने में निवेश किए जाने वाले एक अमेरिकी डॉलर से सामाजिक-आर्थिक नुकसान के संदर्भ में चार अमेरिकी डॉलर के बराबर बचत होती है। संभावित वृहद अवसंरचना निवेश, चाहे वह नवीन/हरित विकास के रूप में हो या फिर संशोधित मौजूदा अवसंरचना के रूप में हो, वह आपदारोधी विकास के लिए एक अभूतपूर्व अवसर है। यह दीर्घावधि में आशंकित नुकसान के प्रति हमें सुरक्षा प्रदान करता है।

आपदारोधी अवसंरचना के विकास के लिए तीन मार्गदर्शक सिद्धांत

आपदारोधी अवसंरचना के विकास के लिए तीन मार्गदर्शक सिद्धांत हैं। पहला, अवसंरचना को इस प्रकार विकसित किया जाए कि वह आबादी के पूरे आर्थिक दायरे के लिए भरोसेमंद सेवाएं प्रदान करे जिसमें सभी कमजोर वर्ग शामिल हों। दूसरा, अवसंरचना विकास को विभिन्न सेक्टरों के मद्देनजर अधिक एकीकृत दृष्टिकोण रखना चाहिए और तीसरा, आपदारोधी अवसंरचना का विकास विश्व की बेहतरीन कार्यप्रणाली के अनुकूल हो और वह स्थानीय और राष्ट्रीय संदर्भों को पूरा करता हो। कारगर आपदारोधी प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए इस कार्यप्रणाली में राष्ट्र के विकास की दिशा को बदलने की क्षमता होती है और तेज आर्थिक विकास का रास्ता सुनिश्चित होता है।

आपदा न्यूनीकरण के लिए पीएम मोदी का 10 सूत्री एजेंडा

आपदारोधी अवसंरचना के महत्व को रेखांकित करते हुए आपदा न्यूनीकरण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 10 सूत्री एजेंडा सभी सेक्टरों के विकास के संबंध में डिजास्टर रिस्क रिडक्शन सिद्धांतों की जरूरत पर बल देता है। इसमें आपदारोधी अवसंरचना के लिए वैश्विक गठबंधन भी शामिल है, जिसकी घोषणा 23 सितंबर, 2019 को संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्ययोजना के शिखर सम्मेलन में हुई थी। आपदा जोखिम में कमी के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सहयोग से भारत के नेतृत्व में पिछले दो वर्षों में आपदारोधी अवसंरचना के वैश्विक गठबंधन में कई देशों ने दिलचस्पी दिखाई। इन देशों में अग्रणी बुनियादी संरचना प्रणाली वाले देश, बुनियादी ढांचे के अभाव वाले देश और विकासशील देश शामिल हैं। ऐसे देश इसकी जरूरत और प्रासंगिकता को मानने लगे हैं। यह गठबंधन सरकारों के साथ मानक स्थापित करने वाले संगठनों, वित्त प्रदाताओं, बीमाकर्ताओं और अकादमिक संस्थानों को एक साथ लाने का काम करेगा।

आपदा रोधी प्रणाली बनाने के लिए बुनियादी संरचना क्षेत्रों को ध्यान में रखने की जरूरत

चूंकि विद्युत, दूरसंचार और परिवहन जैसे विभिन्न बुनियादी संरचना क्षेत्रों के बीच आपसी निर्भरता है इसलिए आपदा रोधी प्रणाली बनाने के लिए इन क्षेत्रों को ध्यान में रखने की जरूरत है। इसका अर्थ यह भी हुआ कि आपदा जोखिम प्रबंधन एकमात्र आपदा प्रबंधन प्राधिकार की भूमिका को छोड़कर व्यापक हितधारक शृंखला की ओर आगे बढ़े। आपदारोधी अवसंरचना के लिए वैश्विक गठबंधन के संस्थापक के रूप में भारत के पास विभिन्न देशों से सीखने और अनुभव प्रदान करने का अवसर है। उक्त गठबंधन समान सोच वाले अंशभागियों को समान वैश्विक उद्देश्य से निर्देशित मंच पर लाएगा। यह आगे बढ़ने और आपदा एवं जलवायु रोधी विकास के वैश्विक पथ पर चलने का उचित समय है।

( लेखक प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव हैं )