अवधेश कुमार। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की चार दिवसीय भारत यात्रा हाल में हुए कई दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्षों के मुकाबले ज्यादा परिणामकारी तथा भविष्य की दृष्टि से ऐतिहासिक आयाम देने वाली रही है। यद्यपि इस यात्रा के कई कार्यक्रम थे, जिसमें विश्व सौर सम्मेलन से लेकर वाराणसी की यात्रा तथा उत्तर प्रदेश के ही मीर्जापुर में फ्रांस की कंपनी एनवॉयर सोलर प्राइवेट लिमिटेड और नेडा द्वारा निर्मित दादरकलां गांव में 650 करोड़ रुपये से बने 75 मेगावाट के सौर ऊर्जा परियोजना का उद्घाटन शामिल था। इनका भी अपना महत्व है, लेकिन इसके पहले जो 14 समझौते हुए उनके दूरगामी सामरिक, आर्थिक, व्यापारिक तथा रक्षा-सुरक्षा क्षेत्र में व्यापक महत्व से कोई इन्कार नहीं कर सकता।

वास्तव में पहले से ही यह बात साफ हो गई थी दोनों देश रक्षा क्षेत्र में कुछ ऐसा समझौता करेंगे जो भविष्य में हिंद-प्रशांत क्षेत्र का सामरिक परिदृश्य बदल सकता है। रक्षा क्षेत्र में हुए समझौते को ऐतिहासिक मानने से कोई इन्कार नहीं कर सकता। आखिर दोनों देशों की सशस्त्र सेनाओं द्वारा एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल तथा सैन्य साजोसामान का आदान प्रदान करने का समझौता हमने और कितनी शक्तियों से साथ किया है? अमेरिका के बाद फ्रांस ही अकेला ऐसा देश है जिसके साथ यह समझौता हुआ है।

सैन्य साजो-सामान का होगा आदान-प्रदान

अब भारत और फ्रांस की सेनाएं रणनीतिक जरूरतों के मुताबिक एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल व सैन्य साजो-सामान का आदान प्रदान कर सकेंगी। दोनों देशों की सेनाएं साजोसामान की आपूर्ति, युद्ध अभ्यास, प्रशिक्षण, मानवीय सहायता और आपदा राहत कार्यों में भी सहयोग करेंगी। इसका एक महत्वपूर्ण बिंदु समुद्री क्षेत्र में सुरक्षा, जलपोतों की निगरानी तथा जल सर्वेक्षण के संबंध में सहयोग है। साफ है कि दोनों देश अपने नौसेना अड्डे को एक-दूसरे के लिए खोलेंगे। वास्तव में मैरीटाइम अवेयरनेस के तहत भारत और फ्रांस अब एक-दूसरे के नौसैनिक अड्डों को युद्धपोतों को रखने और नेविगेशन यानी आने-जाने के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे।

जिबूती में चीन पर नजर रखेगा भारत

यह बहुत बड़े सहयोग की शुरुआत है। फ्रांस मेडागास्कर के पास हिंद महासागर स्थित रियूनियन द्वीप और अफ्रीकी बंदरगाह जिबूती में भारतीय जहाज को प्रवेश देगा। इससे भारत का समुद्र के रास्ते होने वाला कारोबार मजबूत होगा। ध्यान रखिए जिबूती में चीनी सैन्य अड्डा भी है। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। यहां से चीन की गतिविधियों पर आसानी से नजर रखी जा सकती है। प्रशांत महासागर से जुड़े भारतीय हितों के लिए भी यह द्वीप खास भूमिका अदा कर सकता है। चीन ने अफ्रीकी देश जिबूती में जो नौसैनिक अड्डा बनाया है उसका उद्देश्य क्या हो सकता है? हम उससे आंखें तो मूंद नहीं सकते। इसलिए हमें भी फ्रांस के साथ आना पड़ा है। राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने साफ शब्दों में कहा कि फ्रांस इस क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर बेहद सक्रिय है और यहां स्थिरता को लेकर भारत हमारा अहम सुरक्षा साझेदार है। यानी यह न कोई छिपा समझौता है और न इसके उद्देश्य को अस्पष्ट रखा गया है।

चीन ने नहीं दी कोई प्रतिक्रिया

चीन ने हालांकि भारत फ्रांस संबंधों पर कोई त्वरित प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उसे पता है कि यह कोई निष्क्रिय समझौता नहीं है। हालांकि चीन की गतिविधियां हमारे लिए चिंता का कारण हैं और इस समझौते में इसका ध्यान रखा गया है, लेकिन इसका निशाना केवल वही है, ऐसा कहना भी गलत होगा। दुनिया जिन स्थितियों से गुजर रही है उसे देखते हुए कई देश रक्षा क्षेत्र में एक-दूसरे के साथ आ रहे हैं। कभी भी परिस्थितियां प्रतिकूल हुईं तो फिर ये समझौते उस समय काम आएंगे। फ्रांस और इसके पहले अमेरिका जैसी प्रमुख रक्षा शक्तियों ने यदि भारत को समान महत्व दिया है तो इसका अर्थ है कि भारत की बढ़ती रक्षा शक्ति को उसने स्वीकार किया है। समझौते के अनुसार सहयोग आगे बढ़ता है तो यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र के रक्षा परिदृश्य में कुछ तो बदलाव करेगा।

हिंद-प्रशांत में भारत की नेतृत्व की भूमिका

अमेरिका पहले ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की नेतृत्वकारी भूमिका की घोषणा कर चुका है। फ्रांस का यह समझौता बिना घोषित किए इसे और सुदृढ़ करने वाला है। गोपनीय तथा संवेदनशील जानकारियों की सुरक्षा के बारे में भी जो समझौता हुआ उसे इसी के साथ जोड़कर देखा जाएगा। साथ ही मादक पदार्थ और नशीली दवाओं की तस्करी की रोकथाम के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के समझौते पर भी हस्ताक्षर किए गए। आतंकवाद के खिलाफ सहयोग की घोषणा तो हुई ही। इस तरह रक्षा सहयोग को एक समग्र रूप दिया गया है।

16 अरब डॉलर के समझौतों पर मुहर

हालांकि दोनों देशों के संबंध केवल रक्षा क्षेत्र तक ही सीमित नहीं हैं। फ्रांस और भारतीय कंपनियों के बीच 16 अरब डॉलर के समझौतों पर मुहर लगी है। द्विपक्षीय सहयोग को और आगे बढ़ाने के लिए शिक्षा, मादक पदार्थों की रोकथाम, पर्यावरण, रेलवे, अंतरिक्ष, शहरी विकास और कुछ अन्य क्षेत्रों में भी समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। दोनों देशों ने कुशल कर्मिकों के स्वदेश लौटने के बारे में आव्रजन के क्षेत्र में भी समझौता किया है। एक-दूसरे की शैक्षणिक योग्यताओं को मान्यता देने, साथ ही तेज और मध्यम गति की रेल के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने और रेलवे के आधुनिकीकरण के संबंध में भी समझौता किया है। पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में भी दोनों ने सूचनाओं के आदान-प्रदान पर सहमति व्यक्त की है। स्मार्ट सिटी, शहरी परिवहन प्रणाली और शहरी बस्तियों में विकास की परियोजनाओं में सहयोग के बारे में और जैतापुर परमाणु परियोजना के लिए ईंधन का भी समझौता हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि शिक्षा, आव्रजन के क्षेत्र में समझौते हमारे युवाओं के बीच करीबी संबंधों की रूपरेखा तैयार करेंगे। हमारे युवा एक-दूसरे के देश को जानें, एक-दूसरे के देश को देखें, समझें, काम करें ताकि हमारे संबंधों के लिए हजारों राजदूत तैयार हों। उनका यह कहना सही है कि हम सिर्फ दो सशक्त स्वतंत्र देशों तथा दो विविधतापूर्ण लोकतंत्रों के ही नेता नहीं हैं, बल्कि दो समृद्ध और समर्थ विरासतों के उत्तराधिकारी भी हैं। तो कुल मिलाकर कोई इसे अस्वीकार नहीं कर सकता कि मैक्रों की यात्रा से रक्षा सहित बहुपक्षीय संबंधों की ऐतिहासिक शुरुआत हुई है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)