डॉ. सुशील कुमार सिंह। भारत और चीन का द्विपक्षीय व्यापार इन दिनों नई करवट ले रहा है। दोनों देशों के बीच सालाना 95 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार होता है, जो व्यापक तौर पर असंतुलित है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि चीनी उत्पाद भारत में चौतरफा पैर पसार चुके हैं। हालांकि बदली परिस्थितियों के बीच भारत सरकार चीन को झटका देने की फिराक में लगी हुई है। संभव है कि इससे चीन की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचेगी। फिलहाल आंकड़े इशारा करते हैं कि चीनी आयात में कमी आई है। वैसे इसके पीछे एक तो लॉकडाउन के दौरान आयात-निर्यात का ठप हो जाना रहा है, दूसरा दोनों देशों की अर्थव्यवस्था का सिकुड़ना भी है।

संबंधित पड़ताल बताती है कि भारत खिलौने, कार और मोटरसाइकिल के कल-पुर्जे सहित एंटीबायोटिक दवाई व कंप्यूटर और दूरसंचार से जुड़े विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादों व अन्य अनेक सामग्रियों का आयात करता है, जबकि कृषि उत्पाद, सूती कपड़ा, हस्तशिल्प, टेलीकॉम सामग्री व अन्य पूंजीगत वस्तुएं निर्यात करता है। दिलचस्प यह है कि एक तरफ जनवरी से जून तक चीन से आयात में कमी हुई तो दूसरी ओर भारत से चीन भेजे गए माल में बढ़ोतरी हुई, तो क्या यह समझा जाए कि भारत और चीन के बीच व्यापार संतुलन कायम हो रहा है।

बीते तीन महीने में भारत के जो कदम चीन को लेकर उठे हैं, उससे भारत के पक्ष में मामूली बेहतरी आई है। लगातार चीन को भारत की ओर से झटका दिया जा रहा है। इसी में एक नया झटका चीनी खिलौने के आयात पर शिकंजा कसने को लेकर है। गौरतलब है कि चीन से 80 फीसद खिलौने आयात होते हैं, जिसकी कीमत करीब दो हजार करोड़ रुपये है जो घटिया और खराब भी होते हैं और नरेंद्र मोदी सरकार इस पर भी रोक लगाकर चीन को एक और आíथक झटका देना चाहती है।

दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार की पड़ताल बताती है कि अप्रैल में भारत ने चीन को लगभग दो अरब डॉलर का सामान बेचा है जो जुलाई में बढ़कर साढ़े चार अरब डॉलर हो गया। इस लिहाज से भारत ने बीते चार माह में दोगुने से अधिक निर्यात किया है। यह एक अच्छा संकेत है, बावजूद इसके यह समझना ठीक रहेगा कि चीन 13 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश है, जबकि भारत बमुश्किल तीन खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था रखता है। ये आंकड़े यह समझने में मदद कर सकते हैं कि भारत की तुलना में चीन की अर्थव्यवस्था कहां है। ऐसे में विदेशी सामानों पर यदि निर्भरता बनी रहती है तो भारतीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में कठिनाई होगी।

जाहिर है कि भारत किसी दूसरे देश पर निर्भर नहीं रहना चाहता। ऐसे में जरूरी है कि भारत आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़े। बीते मई में 20 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज के बीच आत्मनिर्भर भारत का बिगुल भी बजा था, जिसे जमीन पर उतारना आसान नहीं है। कोरोना काल में या उसके बाद कई देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को मुख्यधारा में लाने में बरसों लगेंगे और इसमें भारत भी शामिल है। ऐसे में आत्मनिर्भरता की ओर मुड़ना मौजूदा परिस्थिति की देन भी है। एक ओर जहां 12 करोड़ से अधिक लोग एकाएक बेरोजगार हो गए, वहीं दूसरी ओर देश की अर्थव्यवस्था हर तरफ से बेपटरी हो गई, जिसे देखते हुए आत्मनिर्भर भारत का अभियान सरकार का अंतिम विकल्प हो गया। यदि पांच साल पहले मेक इन इंडिया पर बारीकी से गौर किया गया होता तो चीन जैसे सामानों का आयात कब का रोका जा चुका होता।

भारत और चीन के बीच जिस तरीके से सीमा विवाद इन दिनों सामने आया, उससे भारत की तल्खी लाजमी है। एक तरफ कोरोना से संघर्ष तो दूसरी तरफ चीन का नया बखेड़ा। देश में चीनी माल का बहिष्कार और सरकार के उठे कई कदम इसका प्रति-उत्तर था। भारत ने जब 59 चीनी मोबाइल एप बैन किए तो चीन ने इसे विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन कहा। लेकिन भारत में चीन की अनेक आíथक संधियों एवं गतिविधियों पर फिलहाल रोक लगा कर चीन को भारत ने यह बताने का प्रयास किया कि जिस बाजार में वह अपना घटिया माल बेचकर मालामाल हो रहा है, उसी के साथ बर्बरता नहीं चलेगी। गौरतलब है कि अमेरिका के बाद चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझीदार है।

मोदी सरकार का चीन पर वर्चुअल से लेकर एक्चुअल स्ट्राइक के मामले में खुलकर आना यह जताता है कि सीमा विवाद सहित अर्थव्यवस्था में चीन की मनमानी नहीं चलेगी। उधर अमेरिका चीन को लेकर जिस तरीके से रुख लिए हुए है, वह भी उसे लगातार नुकसान पहुंचा रहा है। अमेरिका ने भी टिकटॉक पर प्रतिबंध लगाते हुए आरोप लगाया कि यह निजी जानकारी को एकत्र कर रहा है। इसके अलावा भी कई कड़े कदम अमेरिका ने उठाए हैं। चीन और भारत के बीच व्यापार की यात्र दो दशक में जमीन से आसमान पर पहुंच गई। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में भारत का सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर चीन बन गया था और व्यापार लगातार बढ़ता गया। स्थिति यहां तक थी कि कुल व्यापार के 70 फीसद पर चीन काबिज हो गया। जिस तरह चीन के सामान भारत में बिके, क्या उसी तरह सस्ते सामान भारत में नहीं बनाए जा सकते हैं? हमें इस दिशा में प्रयास शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि तभी ही हम चीन को असल मायने में मात दे सकते हैं।

[निदेशक, वाइएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन]