[राहुल लाल]। भारत और चीन के बीच कारोबार में हाल के वर्षों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। वर्ष 2000 में दोनों देशों के बीच कारोबार केवल तीन अरब डॉलर का था, जो 2008 में बढ़कर 51.8 अरब डॉलर का हो गया। इस तरह वस्तुओं तथा सेवाओं के मामले में चीन अमेरिका की जगह लेकर भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बन गया। वर्ष 2018 में दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ता नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया और 95 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। वर्ष 2019 के मामले में अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत-चीन के बीच कारोबार 100 अरब डॉलर को पार कर जाएगा, लेकिन इसके साथ भारत के संदर्भ में व्यापार घाटे में भी वृद्धि हुई है।

चीन के साथ गंभीर व्यापार घाटा

चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2018 में बढ़कर 57.86 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो एक वर्ष पहले 2017 में 51.72 अरब डॉलर का था। हालांकि इस दौरान भारत का चीन को निर्यात भी बढ़ा और यह 2017 में 15.2 अरब डॉलर के मुकाबले 2018 में 18.84 अरब डॉलर हो गया। इसका मतलब है कि चीन ने भारत से कम सामान खरीदा और उससे पांच गुना ज्यादा समान भारत में बेचा।

भारत में चीनी निवेश की स्थिति

भारत चीन से अधिक से अधिक निवेश भी चाहता है। इसका प्रमुख कारण है कि चीन ने अपने विदेशी निवेश का 0.5 प्रतिशत ही भारत में निवेश किया है। इसलिए भारत चीन से सदैव अपने निवेश में वृद्धि का मांग भी करता रहता है। इसी का नतीजा है कि पिछले तीन वर्ष में भारत में चीन का निवेश बहुत तेजी से बढ़ा है। आज यह आठ अरब डॉलर से भी ज्यादा हो गया है। वहीं चीन ने 20 अरब डॉलर निवेश भारत में करने का वादा किया है। लेकिन भारत चीन से कम से कम 50 अरब डॉलर का निवेश चाहता है।

कैसे दूर होगा व्यापार घाटा

चीन का अपने बाजार को लेकर सदैव संरक्षणवादी रवैया रहता है। वह भारतीय सामानों को अपने यहां सही पहुंच प्रदान नहीं करता है। लेकिन चीन-अमेरिका ट्रेड वार के कारण स्थितियां बदल रही हैं। अमेरिका चीन से जो सामान खरीदता है, उनमें से कई पर अमेरीका ने आयात शुल्क बेतहाशा बढ़ा दिया है। इससे चीन में एक रिक्त स्थान उत्पन्न हुआ है। भारत चीन को कम से कम 57 वैसे उत्पाद आसानी से बेच सकता है जो अब तक अमेरिका द्वारा चीन को बेचा जा रहा है। ये 57 उत्पाद न केवल गुणवत्ता में अमेरिकी उत्पादों से बेहतर हैं, अपितु सस्ते भी हैं।

ज्ञात हो अगस्त में भारतीय निर्यात दर में छह प्रतिशत की कमी आई थी। ऐसे में भारतीय निर्यात में वृद्धि करने के लिए चीन पर दबाव बनाना आवश्यक है। भारतीय बाजार अभी स्वयं ही मांग की भारी कमी से जूझ रही है। मांग में कमी के कारण कंपनियों को उत्पादन में कमी करनी पड़ रही है। ऐसे में तीव्र निर्यात दर ही भारतीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान कर सकता है। दूसरी ओर ट्रेड वार के कारण चीन में अधिकांश कंपनियां दबाव में है, लिहाजा वे चीन को छोड़कर जा रही हैं।

भारत को इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए। चीन से व्यापार घाटे को पाटने के लिए भारत ने चीन को जिन उत्पादों की सूची भेजी है उनका निर्यात बढ़ाया जा सकता है। इनमें मुख्य रूप से आइटी, बागवानी, कपड़ा, केमिकल, दवाइयां और डेयरी उत्पाद शामिल हैं। जब तक हम उन उत्पादों के बाजार में नहीं घुसेंगे जिसका चीन बड़े पैमाने पर आयात करता है, तब तक व्यापार घाटे को पाटना मुश्किल है। मसलन चीन करीब 450 अरब डॉलर का इलेक्ट्रिकल मशीनरी, 97 अरब डॉलर का मेडिकल उपकरण और 125 अरब डॉलर का लौह अयस्क आयात करता है। भारत को इनके उत्पादन और निर्यात पर जोर देना होगा।

व्यापार घाटे का असर

अगर किसी देश का व्यापार घाटा लगातार कई वर्षों तक कायम रहता है, तो रोजगार के मौके, विकास दर और मुद्रा के मूल्य पर इसका असर पड़ता है। असल में चालू खाते में एक बड़ा हिस्सा व्यापार संतुलन का होता है। व्यापार घाटा बढ़ता है, तो चालू खाते का घाटा भी बढ़ जाता है।

‘चेन्नई कनेक्ट’ में चीन का आश्वासन

भारत-चीन के वृहत भारतीय व्यापार घाटा आरसीईपी के नींव को भी कमजोर कर रहा है। आरसीईपी 16 देशों का प्रस्तावित साझा बिजनेस ब्लॉक है जिसमें आसियान के 10 सदस्य देशों समेत छह अन्य देश- भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड आपस में मुक्त व्यापार समझौते पर चर्चा कर रहे हैं। भारत को डर है कि आरसीईपी समझौता से भारतीय बाजार और भी चीनी सामानों से भर सकता है। जब भारत में शी चिनफिंग और मोदी अनौपचारिक मुलाकात कर थे, तभी थाइलैंड में आरसीईपी को लेकर 16 देशों के वाणिज्य मंत्रियों की बैठक चल रही थी। आरसीईपी समझौते के अंदर ही भारत चाहता है कि उसे चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड पर आयात शुल्क लगाने का अधिकार मिलता रहे। आरसीईपी समझौते के 25 हिस्से होंगे जिनमें से 21 पर सहमति बन गई है।

दूसरी ओर अमेरिका के साथ ट्रेड वार के कारण चीन ‘संरक्षणवाद’ के विरुद्ध भारतीय समर्थन की मांग कर रहा है। लेकिन चीन के साथ अमेरिका जिस प्रकार का व्यवहार कर रहा है, वैसा ही व्यवहार भारत के साथ चीन का हो रहा है। चीन को भी अब अपना संरक्षणवादी रवैया समाप्त करना चाहिए। इस वर्ष भारत-चीन का द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर रहने की संभावना है, लेकिन चीन, भारत में अपने निर्यात में और भी वृद्धि करने का इच्छुक है। वह भारत के साथ व्यापार को 200 अरब डॉलर तक ले जाना चाहता है। भारत को व्यापार घाटा कम करने के लिए चीन पर लगातार दबाव बनाए रखने की जरूरत है। इस समय चीन के बाद भारत दुनिया के लिए नया उत्पादन केंद्र बनने की क्षमता रख रहा है।

भारत को विनिर्माण पर और जोर देना होगा। भारत के पास कुशल पेशेवरों की फौज है। आर्थिक और वित्तीय क्षेत्र में भी भारत की संस्थाएं शानदार हैं। इन सभी को चीन से जोड़ना होगा। चीन से मुकाबला हेतु भारत को कम लागत पर गुणवत्तापूर्ण उत्पादन करनेवाले देश के रूप में पहचान बनानी होगी। भारत को अगर 2024 तक पांच ट्रिलियन इकोनॉमी वाला देश बनना है, तो भारतीय निर्यात दर को 20 प्रतिशत के दर पर ले जाना होगा, जो वर्तमान में ऋणात्मक है। उम्मीद है कि मोदी और शी के प्रयासों से बनने वाला मंत्री स्तरीय व्यवस्था तंत्र भारत और चीन के आर्थिक संबंधों को संतुलित बनाकर भारत के आर्थिक घाटे कम करेगा।

[स्वतंत्र टिप्पणीकार]