[विवेक ओझा]। भारत द्वारा प्राकृतिक आपदाओं से निपटने वाली अवसंरचना हेतु एक वैश्विक संगठन के गठन का प्रस्ताव कुछ समय से सुर्खियों में था। भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 13 अगस्त 2019 को इंटरनेशनल कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के गठन को और इसके सचिवालय को दिल्ली में गठित करने को मंजूरी दे दी है। इसे 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय न्यूयार्क में लॉन्च किया जाना प्रस्तावित है। भारत सरकार ने इस बात की मंजूरी दी है कि इस संगठन के सचिवालय का गठन सोसायटीज पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक सोसायटी के रूप में किया जाएगा। इससे संबंधित जिम्मेदारी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को दी गई है। अगस्त माह में ही कैबिनेट ने इस नए संगठन के सचिवालय के लिए 480 करोड़ रुपये व्यय करने को भी मंजूरी दी है।

भारत सरकार ने अंतरराष्ट्रीय सौर संगठन की तर्ज पर एक बार फिर इंटरनेशनल कोएलिशन ऑन डिजास्टर रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के गठन और उसके सचिवालय के गठन का प्रस्ताव करते हुए पर्यावरण के प्रति अपनी सक्रियता व गंभीरता दिखाई है। 27 जून, 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 के ओसाका समिट के दौरान ही जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के साथ हुई बैठक में ग्लोबल कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेसिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के गठन का मुद्दा उठाया और उनसे इस विषय पर समर्थन मांगा। हाल ही में इस बात पर सहमति बनी है कि भारत और ब्रिटेन इसी माह आयोजित होने वाले यूएन क्लाइमेट समिट में मिलकर इस वैश्विक संगठन को लॉन्च करेंगे। जापान ने भी इसके समर्थन की बात की है।

हैंबर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी पहल
वैसे तो इस प्रकार के वैश्विक संगठन के गठन का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2017 के जर्मनी के हैंबर्ग में आयोजित जी-20 समिट में ही कर दिया था। लेकिन हाल के समय में भारत ने इस दिशा में कुछ ऐसे काम किए जिससे समूचे वैश्विक समुदाय का ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ है। सबसे पहले तो वर्ष 2020 के लिए भारत को सर्वसम्मति से ग्लोबल फेसिलिटी फॉर डिजास्टर रिडक्शन एंड रिकवरी (जीएफडीआरआर) का सह अध्यक्ष चुना गया है। इसकी अध्यक्षता करने वाले संगठनों में शामिल होने वाले संगठन इस प्रकार हैं- एसीपी यानी अफ्रीका कैरेबियन एंड पेसिफिक ग्रुप ऑफ स्टेट्स, यूरोपीय संघ और विश्व बैंक।

भारत को जीएफडीआरआर के परामर्शकारी समूह का सह अध्यक्ष बनाने का निर्णय मई माह में ग्लोबल प्लेटफॉर्म फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के छठे सत्र में स्विट्जरलैंड के जेनेवा में लिया गया। जीएफडीआरआर ने यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन और यूरोपियन यूनियन के साथ मिलकर इसी संदर्भ में 13 और 14 मई 2019 को आपदाओं के जोखिम से निपटने संबंधी चौथे वर्ल्ड रिकंस्ट्रक्शन कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया।

क्या है जीएफडीआरआर
जीएफडीआरआर एक वैश्विक साझेदारी है। यह विश्व भर में आपदा जोखिम चुनौतियों से निपटने के लिए उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करने वाला अनुदान पोषण क्रियाविधि यानी ग्रांट फंडिंग मैकेनिज्म है। इसका प्रबंधन विश्व बैंक के द्वारा किया जाता है। यह विकासशील देशों को प्राकृतिक आपदाओं, जलवायु परिवर्तन से जुड़े जोखिमों को समझने में मदद करता है। यह वर्तमान में 400 से अधिक स्थानीय, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, क्षेत्रीय पार्टनर्स के साथ जुड़कर विकासशील देशों को आपदा जोखिम ज्ञान और साक्षरता, वित्तीय सहायता और तकनीकी सहायता देता है। यह सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन के क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रों को मदद देता है। केवल वित्त वर्ष 2016 में ही 80 देशों को इसने वित्त मुहैया कराया। इसका सचिवालय वाशिंगटन डीसी में है और इसके सेटेलाइट कार्यालय ब्रुसेल्स और टोक्यो में हैं।

इसके सदस्य के रूप शामिल देश इस प्रकार हैं- ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी, भारत, इटली, जापान, लक्जम्बर्ग, मैक्सिको, नॉर्वे, सर्बिया, स्वीडन, स्विट्जरलैंड और अमेरिका। इसके अलावा इसके सदस्यों में यूरोपीयन यूनियन, यूएनडीपी, विश्व बैंक और यूएनआइएसडीआर भी शामिल हैं। इसके पर्यवेक्षक सदस्य देशों में शामिल हैं- बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, मोजांबिक, स्पेन, टर्की, ब्रिटेन और वियतनाम। विश्व मौसम विज्ञान संगठन, इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक, ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कॉपरेशन, इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस एंड रेड क्रिसेंट सोसायटी और ग्लोबल नेटवर्क ऑफ सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन फॉर डिजास्टर रिडक्शन भी इसके पर्यवेक्षक सदस्य हैं। इससे इसके महत्व का भी पता चलता है।

भारत और जीएफडीआरआर
भारत वैश्विक आपदा प्रबंधन में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने की चाह रखता है। इसलिए भारत 2015 में जीएफडीआरआर के परामर्शकारी समूह का सदस्य बन गया। इसके बाद भारत ने वर्ष 2017 के जी-20 के हैंबर्ग समिट में इस दिशा में एक वैश्विक संगठन बनाने का प्रस्ताव दिया। इसी विचार को मजबूती देते हुए भारत ने अक्टूबर 2018 में जीएफडीआरआर के परामर्शकारी समूह की सह अध्यक्षता करने की इच्छा जाहिर की। इसके बाद भारत, यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन, यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम और विश्व बैंक ने मिलकर 19 और 20 मार्च 2019 को आपदा का आघात सहने योग्य अवसंरचना (डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर) पर अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। इसके पूर्व भारत सरकार ने ऐसी अवसंरचना के विकास के लिए एक वैश्विक संगठन के विकास के लिए सुझाव देने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया था जिसके लिए एनडीएमए यानी नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी की भी राय ली गई। एनडीएमए यानी राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने इस संबंध में एक ब्लू प्रिंट भी तैयार किया।

यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन रिपोर्ट 2018
यूनाइटेड नेशंस ऑफिस फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन की 13 अक्टूबर 2018 को आपदा से संबंधित एक गंभीर रिपोर्ट आई। दरअसल इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि पिछले करीब दो दशकों में यानी वर्ष 1997 से 2017 के बीच प्राकृतिक आपदाओं से भारत को 80 बिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति हुई है। विश्व बैंक के भारतीय डायस्पोरा के द्वारा भेजे गए रेमिटेंस (वित्त प्रेषण) से संबंधित 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 80 बिलियन डॉलर का रेमिटेंस भेजा गया है। आसियान देशों के साथ 81 बिलियन डॉलर का, चीन के साथ 84 बिलियन डॉलर का हमारा द्विपक्षीय व्यापार है। इतनी बड़ी रकम का नुकसान हमें आपदाओं से हुआ है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले 20 वर्षों में सभी आपदाओं में से 91 प्रतिशत आपदाओं से वैश्विक स्तर पर तीन ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक बाढ़, तूफान, सूखा, गर्म हवाओं और अन्य गंभीर मौसमी दशाओं के चलते ऐसा हुआ है।

इस रिपोर्ट का यह भी कहना है कि प्रत्येक वर्ष वैश्विक स्तर पर 520 बिलियन डॉलर की आर्थिक क्षति आपदाओं के चलते हो रही है और इससे हर साल 2.6 करोड़ लोग निर्धनता की श्रेणी में शामिल होते जा रहे हैं। वर्ष 2019 में अफ्रीकी देश मोजांबिक की पोर्ट सिटी बेइरा, जो लगभग पांच लाख लोगों का निवास स्थान है, वहां आई भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद एक वैश्विक संगठन के गठन पर अधिक बल दिया गया। इस रिपोर्ट के मुताबिक प्राकृतिक आपदाओं से पिछले 20 वर्षों में सबसे ज्यादा आर्थिक क्षति जिन देशों को पहुंची है उनमें ये देश प्रमुख रूप से शामिल हैं- अमेरिका (945 बिलियन डॉलर), चीन (492 बिलियन डॉलर), जापान (376.3 बिलियन डॉलर), भारत (80 बिलियन डॉलर) और प्यूर्टो रिको (71.7 बिलियन डॉलर) आदि। इसके बाद 20 मार्च को दुनिया के 33 देशों ने मिलकर निर्णय लिया कि ग्लोबल कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर का अंतरिम सचिवालय भारत की राजधानी नई दिल्ली में स्थापित किया जाएगा।

भारत ने जिस ग्लोबल कोएलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर के गठन का प्रस्ताव किया है, उसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और कई अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों ने अपना समर्थन दे दिया है। यूनाइटेड किंगडम, इटली, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका के अलावा यूरोपीय संघ में शामिल ऐसे 33 देश भी इसमें शामिल हैं, जिन्होंने भारत के इस प्रस्ताव का समर्थन कर दिया है। इसी माह के आखिरी सप्ताह में आयोजित होने वाले यूएन क्लाइमेट समिट में औपचारिक रूप से भारत के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिए जाने की प्रबल संभावना व्यक्त की जा रही है।

आपदा प्रबंधन के लिए वैश्विक रणनीति
अब तक प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए वैश्विक स्तर पर तीन रणनीति या कार्य योजना बनाई गई। पहला, वर्ष 1994 में योकोहामा स्ट्रेटजी एंड प्लान ऑफ एक्शन जो कि एक सुरक्षित विश्व से संबंधित था। इसके बाद वर्ष 2005 से 2015 के लिए ह्यूगो फ्रेमवर्क फॉर एक्शन का गठन किया गया। इसके बाद 18 मार्च 2015 को 2015 से 2030 के लिए सेंडाई फ्रेमवर्क फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन को अपनाया गया। सेंडाई फ्रेमवर्क कहता है कि डिजास्टर रिस्क में कटौती के लिए प्रत्येक एक डॉलर के खर्च पर सात डॉलर के लाभ की प्राप्ति होगी यानी जितना खर्च होगा उससे सात गुना तक बचत हो सकती है। यह बात बहुत हद तक सच भी है, क्योंकि प्राकृतिक आपदाओं से भवन, राजमार्ग और रेलमार्ग जैसी बड़ी अवसंरचनाएं व्यापक रूप से न केवल प्रभावित होती है, बल्कि कई बार इनका नुकसान इस तरह से होता है कि उसे फिर से तैयार करने या मरम्मत करने में बड़ी धनराशि खर्च होती है। लिहाजा ऐसी आपदाओं के जोखिम को जितना कम किया जाएगा उतने ही परिसंपत्ति को सुरक्षित किया जा सकता है।

भारत ने भी कुछ इसी सोच के साथ अपनी पर्यावरणीय कूटनीति को तेज करना शुरू किया है। इसी माह ही भारत में पहली बार संयुक्त राष्ट्र मरूस्थलीकरण निरोधक संस्था के कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज के 14वें सत्र (कॉप-14) का आयोजन राजधानी दिल्ली के निकट ग्रेटर नोएडा में किया गया है। इस आयोजन में संबंधित विषय पर चिंता जताई गई और कई ठोस निर्णय लिए गए। अब भारत पर भी मरूस्थलीकरण से निपटने का दबाव बढ़ेगा। भारत सरकार ने इस बैठक में भूमि निम्नीकरण की समस्या से निपटने पर जोर देते हुए कहा है कि वह 2029 तक 50 लाख हेक्टेयर भूमि खेती लायक नहीं रह पाने और मरुस्थलीकरण की चुनौती से बाहर निकालकर भूमि का पुनरोद्धार करेगा। इस प्रकार वर्तमान में भारत वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के सकारात्मक विचार दे रहा है। इसी माह के आरंभ में नई दिल्ली में यूएनसीसीडी के विज्ञान और प्रौद्योगिकी समिति ने सॉइल ऑर्गेनिक कार्बन रिपोर्ट भी जारी की है, जिसमें कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर सतत भूमि प्रबंधन के लिए सॉइल ऑर्गेनिक कार्बन पर ध्यान रखना आवश्यक है।
[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]