नई दिल्ली [शबरी नायर]। भारत विश्व का सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर भेजने वाला देश है और यहां से करीब पौने दो करोड़ प्रवासी मजदूर दूसरे देशों में गए हैं, जिसमें से 90 लाख के करीब खाड़ी देशों में ही हैं। हालांकि कोरोना महामारी के कारण और रोजगार के नए आयामों के न मिलने से प्रवासी मजदूरों की स्थिति खराब हो गई है और वो भारत लौट रहे हैं।

स्वयं की व्यवस्था से आने वालों को छोड़ दें तो भी  भारत सरकार के 'वंदे भारत मिशन' के द्वारा ही करीब सात लाख भारतीय जिसमें अनुभवी और कुशल मजदूर भी शामिल  हैं, वे वापस आ चुके हैं। प्रवासियों के बड़ी संख्या व उनके प्रभाव के कारण कुवैत, गल्फ कोऑपरेटिव काउंसिल का पहला देश बना जिसने प्रवासी मजदूरों को ध्यान में रख कर कदम उठाने शुरू किए।

प्रवासी मजदूरों को लेकर कानून बनाने की ओर कुवैत ने कदम बढ़ा दिया है जिसका प्रभाव भारत के करीब आठ लाख प्रवासी मजदूरों पर पड़ेगा। इस कानून का कुवैत पर भी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि कम कुशलता और कम वेतन वाले कार्यों में प्रवासी मजदूर बड़ी संख्या में काम  करते हैं। ऐसे में भारतीय मजदूर लौटते हैं तो कई विषयों पर भारत सरकार को सोचना होगा।

सरकार ने स्वदेश यानी स्किल्ड वर्कर्स अराइवल डेटाबेस फॉर  एम्प्लॉयमेंट सपोर्ट नाम से एक व्यवस्था बनाई है ताकि वापस लौटने वाले मजदूर की दक्षता को रिकॉर्ड किया जा सके। वापस आने वाले प्रवासियों, चाहे वो किसी भी देश से आ रहे हों, उन्हें केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं में रोजगार और सामाजिक सुरक्षा के लिए प्रमुखता देनी चाहिए।

जैसे छोटे, मझोले  और सूक्ष्म इकाइयों में निवेश के माध्यम से वापस आने वाले मजदूरों को उनकी दक्षता और अनुभव के आधार पर काम देना एक उपाय हो सकता है। इसके अलावा इन मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा जैसे- सेवा समाप्ति के लाभों का भी हकदार बनाना चाहिए। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि वापस आने वाले मजदूरों को 'संक्रमण के वाहक' न माना  जाए और उन्हें सामाजिक भेदभाव का सामना न करना पड़े। 

अभी आने वाले मजदूर वापस विदेश भी जाने के बारे में सोच सकते हैं, इसलिए भारत सरकार को  उन जगहों और क्षेत्रों को चिन्हित करना चाहिए जहां मजदूरों की मांग है और मजदूरों का कौशल विकास भी उनके अनुसार करना चाहिए। सभी हितधारकों को भी प्रयास करना होगा कि प्रवासी मजदूरों को रोजगार हासिल करने के  लिए ज्यादा भर्ती फीस नहीं देना पड़े। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की दृष्टि से देखें तो सबसे महत्वपूर्ण है कि भारत को अपने द्विपक्षीय प्रवासी मजदूर समझौतों को कुवैत समेत अन्य खाड़ी देशों, जहां बड़ी संख्या में भारतीय मजदूर काम कर रहे हैं, उनके साथ और मजबूत करना होगा। 

कुवैत के मामले पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारत और कुवैत के बेहतरीन संबंधों पर प्रकाश डाला और यह उम्मीद जताई कि फैसला लेने में कुवैत भारत के लोगों की कार्य कुशलता और इस क्षेत्र में अर्जित प्रतिष्ठा को ध्यान  में रखेगा। वर्तमान महामारी के समय प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के तत्वावधान में बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के साथ किए गए मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी अपना समर्थन दिया है।

नीतिगत तौर पर यह कहा जा सकता है कि कुवैत में हो रहे परिवर्तनों को ध्यान में रख कर भारत सरकार को कुवैत के साथ द्विपक्षीय वार्ता को जारी रखने पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही आंतरिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए प्रवासी मजदूरों के लिए एक प्रभावी नीति बनाने पर ठोस कदम उठाना होगा जिसमें भावी प्रवासियों और वापस आने वालों, इन दोनों की समस्याओं का उल्लेख हो। (विशेषज्ञ, अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन)