ब्रजबिहारी। Quad Summit प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से इतनी मजबूत स्थिति में पहुंच चुका है कि दोस्त क्या अब दुश्मन भी उसका लोहा मानने लगे हैं, तो इसमें अतिशयोक्ति नहीं होगी। चुनाव के जरिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को हराने में असफल देश की विपक्षी पार्टयिों को छोड़कर पूरी दुनिया हमारी इस उपलब्धि को स्वीकार भी कर रही है और सराह भी रही है। पिछले हफ्ते शुक्रवार को संपन्न क्वाड का पहला शिखर सम्मेलन इसका ताजा उदाहरण है। इस सम्मेलन से स्पष्ट हो गया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी नीतियों के जवाब में भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और जापान ने 14 साल पहले जिस क्वाड का गठन किया था, वह अब अपने सामरिक महत्व से आगे बढ़कर आíथक जरूरत में बदल गया है और देखा जाए तो पिछले साल आई कोरोना महामारी ने भारत को पूरी दुनिया के आकर्षण का केंद्र बना दिया है।

कोरोना से पहले भारत सहित क्वाड के सभी देश अपनी जरूरतों के लिए चीन पर निर्भर थे। सिर्फ ये देश ही नहीं, बल्कि चीन तो ग्लोबल सप्लाई चेन पर इतना हावी था कि वह पूरी दुनिया को सस्ते माल आपूíत का केंद्र बना हुआ था। अब भारत ग्लोबल फैक्ट्री बनकर उभर रहा है। जब पूरी दुनिया को पीपीई किट की आवश्यकता हुई तो एक भी किट नहीं बनाने वाला भारत सबसे बड़ा आपूíतकर्ता बनकर सामने आया। आज हमारे पास प्रतिदिन 10 लाख पीपीई किट बनाने की क्षमता है। सिर्फ पीपीई किट ही क्यों, कोरोना की वैक्सीन से लेकर सिरिंज तक की वैश्विक आपूíत भारत से हो रही है। हाईड्रोक्लोरोक्वीन से लेकर वेंटीलेटर उत्पादन के मामले में भारत न सिर्फ आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि निर्यात भी कर रहा है।

हाल में अमेरिकी कंपनी जानसन एंड जानसन की सिंगल डोज वैक्सीन के निर्माण का आर्डर भारत की कंपनी को मिलना यह बताता है कि हमारे प्रति भरोसा बढ़ रहा है। इसमें दोराय नहीं है कि भारत की वैक्सीन कूटनीति ने उसे दोस्तों के साथ दुश्मनों का भी सम्मान दिलाया है। स्वास्थ्य के क्षेत्र के अलावा भारत मोबाइल एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के मामले में पूरी दुनिया का ध्यान खींच रहा है। केंद्र सरकार की प्रोत्साहन योजनाओं का नतीजा है कि एपल और सैमसंग जैसी चोटी के ब्रांड सहित दो दर्जन बड़ी कंपनियां अरबों डॉलर का निवेश कर रही हैं। मोदी सरकार के तहत खासकर रक्षा के क्षेत्र में देश की उपलब्धियों ने दुनिया का विशेष ध्यान खींचा है। रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र के प्रवेश और रक्षा उत्पादों की आयात सूची में कटौती के बाद से इस दिशा में खास प्रगति हुई है। हमारी वायु सेना ने देसी कंपनी को एक साथ 83 तेजस लड़ाकू विमानों का आर्डर देकर यह साबित कर दिया कि हम पूरी दुनिया की सेनाओं को विश्वस्तरीय रक्षा निर्यात करने में सक्षम हैं। पिछले पांच साल के दौरान देश के रक्षा निर्यात में सात गुना से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई है। अगले चार साल में इसे पांच अरब डॉलर यानी 35 हजार करोड़ रुपये पर ले जाने का लक्ष्य है।

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत की इस बढ़ती ताकत में उन उद्यमियों का बड़ा हाथ है जिन्हें यूनिकार्न कहा जाता है। यूनिकार्न यानी ऐसे उद्यम जिन्हें उन लोगों ने शुरू किया जिन्हें विरासत में पूंजी नहीं मिली थी। इन लोगों ने अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर ऐसी कंपनियां खड़ी की हैं, जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों को टक्कर दे रही हैं। देश में कम से कम 100 ऐसी यूनिकार्न हैं, जिनमें से प्रत्येक का वैल्यूएशन एक अरब डॉलर यानी 73 अरब रुपये से ज्यादा है। इन कंपनियों में विदेशी निवेशक धड़ल्ले से पैसे लगा कर रहे हैं। जाहिर सी बात है कि इन कंपनियों में उन्हें भविष्य सुरक्षित दिख रहा है। यह सब देश की विपक्षी पार्टयिों को नहीं दिख रहा, क्योंकि उन्हें सिर्फ विरोध करना है। इसलिए वे कहते हैं कि इस देश को सिर्फ दो उद्योगपति चला रहे हैं। दरअसल, उन्हें तो अपना ही जमाना याद है, जब चुनिंदा पूंजीपतियों की ही चलती थी। उन्हें ही प्रोजेक्ट भी मिलते थे और बैंकों से कर्ज भी। आज तो जिसके पास आइडिया है, वह यूनिकार्न है यानी भारत न सिर्फ एक मजबूत राजनीतिक लोकतंत्र है, बल्कि इसका आíथक तंत्र भी समानता के सिद्धांत पर ही चल रहा है।

मोदी सरकार के निजीकरण को बढ़ावा देने के प्रयासों और ईज आफ डूईंज बिजनेस इंडेक्स में सुधार ने भारत को विदेशी निवेशकों के लिए काफी आकर्षक बना दिया है। पूरी दुनिया के मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में भारत की बढ़ती ताकत ने क्वाड देशों को यह आत्मविश्वास दिया है कि अब उन्हें अपनी जरूरतों के लिए चीन पर निर्भर नहीं रहना होगा। भारत उसे पदस्थापित करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। लिहाजा उसे कस कर घेरा जा सकता है। चीन की ही तरह भारत का घरेलू बाजार उसकी सबसे बड़ी ताकत है। श्रम भी दोनों देशों में सस्ता है। स्किल के मामले में भी दोनों में 19-20 का फर्क है, लेकिन चीन के पास भारत की तरह लोकतंत्र नहीं है।