डॉ. स्वदेश सिंह। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि कोरोना का संकट भारत के भविष्य के लिए एक सुअवसर भी लेकर आ रहा है। यह एक ऐसा समय है जब भारत दुनिया में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है और नेतृत्व प्रदान कर सकता है। ये बातें उन्होंने अपने पहले ऑनलाइन बौद्धिक सम्मेलन में कही हैं। ऐसी परिस्थितियों में उनकी इन बातों का गहन विश्लेषण जरूरी हो जाता है।

आज कोरोना के रूप में एक ऐसा वायरस सामने आया है, जिसकी वजह से होने वाली बीमारी का कोई इलाज फिलहाल संभव नहीं दिख रहा है। यह वायरस कहां से आया यह भी ढंग से पता नहीं लग रहा है। लैब से लेकर चमगादड़ तक सभी तरीके के कयास लगाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह अपना स्वरूप भी बदल सकता है। हवा में भी घूम सकता है। किसी को न इलाज पता है, न इसे रोकने का तरीका पता है। इसके प्रभाव से दुनिया ठहर सी गई है। बाजार तहस-नहस चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय संगठन अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं।

विकल्प की तलाश में विश्व

अब तय माना जा रहा है कि जब यह महामारी खत्म होगी तो हम एक नई वैश्विक व्यवस्था में कदम रखेंगे। वह व्यवस्था क्या होगी, किसके नेतृत्व में होगी, उसके मानक क्या होंगे-ये सभी आने वाले समय में विचारणीय प्रश्न बनने जा रहे हैं। पश्चिमी लोकतांत्रिक, बाजारवादी, उदारवादी व्यवस्था, जहां माना जाता था कि लोककल्याणकारी राज्य सभी विषयों की चिंता करेगा, वह दम तोड़ती नजर आ रही है। जो अमेरिका अपने लोगों की दुनिया के हर कोने में चिंता करता था वह आज अर्थव्यवस्था को मानव जीवन से अधिक महत्वपूर्ण मानते हुए लॉकडाउन खोलने पर आमादा है। दुनिया में वैकल्पिक विचारधारा के रूप में आई साम्यवादी व्यवस्था से निकले चीन ने जिस गैरजिम्मेदारी का परिचय दिया है वह किसी से छुपा नहीं है। दुनिया में नंबर एक की ताकत बनने में चीन के ड्रैगन ने इतनी आग उगल दी है कि दुनिया ही भस्म होने के कगार पर आ गई है। एक तीसरा मॉडल इस्लामिक देशों का है जहां से खबरें आ रही हैं कि वे अपने यहां अल्पसंख्यकों और बाहर से काम करने आए मजदूरों के साथ सही बर्ताव नहीं कर रहे हैं।

आज दुनिया में जहां कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या तीस लाख से अधिक हो गई है और मरने वालों की संख्या दो लाख से ज्यादा वहीं भारत जैसे देश में कोरोना के मामले तीस हजार से भी कम हैं और मौतें भी हजार से कम ही हुई हैं। तब्लीगी जमात जैसे अपवाद को छोड़ दें तो करीब-करीब सभी लोग सरकार द्वारा बताए नियमों का पालन कर रहे हैं। हालांकि भारत में जन स्वास्थ्य का ढांचा, मेडिकल सुविधाएं आदि ऐसी नहीं हैं जिन पर गर्व किया जा सके। लाखों लोगों के रोजगार भी ठप हैं। फिर भी कहीं अमेरिका की तरह लोग सरकार के खिलाफ सड़क पर नहीं हैं। भुखमरी से भी मौतें नहीं हो रही हैं।

राज्य के साथ समाज की ताकत

फिर ऐसा क्या है कि भारत दूसरे देशों की तुलना में कोरोना के संकट से ज्यादा अच्छे से लड़ पा रहा है। दरअसल भारत में राज्य के साथ-साथ समाज भी पूरी ताकत से कोरोना के खिलाफ खड़ा है। पुलिस, डॉक्टर्स, नर्स, सफाई कर्मचारी के साथ-साथ समाज की शक्ति अपनी पूरी ताकत के साथ आगे आई है। स्वयंसेवी संस्थाएं, धार्मिक संस्थाएं, यूथ क्लब आदि दिहाड़ी मजदूरों एवं अन्य गरीब लोगों को खाना खिला रहे हैं और जरूरत का सामान उपलब्ध करा रहे हैं। जैन समाज ने अगले दो साल के लिए अपने तमाम मंदिरों के निर्माण कार्य रोक दिए हैं और इस काम के लिए जमा राशि का आधा हिस्सा समाज के कमजोर वर्ग की सेवा में लगाने का संकल्प लिया है। हरियाणा में राधास्वामी सत्संग सात लाख लोगों को अपने केंद्रों के माध्यम से रोज भोजन करा रहा है। अलग-अलग औद्योगिक घरानों, मंदिरों और अन्य सामाजिक संस्थाओं की तरफ से भारी सहयोग राशि पीएम केयर्स फंड में दी गई है। भारत में राज्य की अपनी भूमिका है, लेकिन मूल में समाज है। भारत समाज की ताकत से चलता है। इस समाज की विशेषता है कि यह बहु-केंद्रित है। यानी किसी एक जगह पर कमांड सिस्टम नहीं है। अपनी स्थानीयता, भौगोलिक, सांस्कृतिक विविधता के बीच एक एकता का भाव रखकर यहां का समाज काम करता है। ऐसे में जब संकट आता है तो भारतीय समाज की मौलिक एकता तेजी से उभर कर समाने आती है और वह चुनौतियों से और भी बेहतर तरीके से निपटने में सफल होता है।

फिर भारत में जो जीवन दर्शन विकसित हुआ, परिवार नाम की जो संस्था विकसित हुई, उसने भी समाज को मजबूती प्रदान करने में बड़ी भूमिका निभाई है। जब पश्चिमी देशों में बुजुर्ग ओल्डएज होम में अकेले बीमार पड़े हैं या दम तोड़ रहे हैं तो यहां के वृद्धजन परिवार के बीच आनंद से हैं। परिवार के रूप में इस सामूहिक मिलन के कारण मानसिक तनाव और बीमारियां भी नहीं हो रहीं जो अकेलेपन के कारण दुनिया के अन्य देशों में हो रही हैं। भारत से निकले दर्शन ने व्यक्ति को ही नहीं, बल्कि जीव मात्र को केंद्र में रखकर हमेशा चिंतन किया जिसमें जीव और जगत-सभी की चिंता समवेत रूप से की गई। सभी को एक दूसरे का हमेशा पूरक समझा गया। इसमें दो राय नहीं कि पश्चिमी बाजारवाद की चकाचौंध में हम भी पिछले 25 वर्षो में काफी बहके हैं। हम ग्लोबल सिटिजन बनने के चक्कर में अपने गांव-देश और उसके सांस्कृतिक, सामाजिक मूल्यों को भूलने लगे हैं, लेकिन कोरोना रूपी महामारी ने हमें संभलने का अवसर दिया है कि हम अपनी और अपने देश की वैश्विक स्तर की भूमिका पर पुनर्विचार करें।

दरअसल पश्चिम में विकसित हुई-ये दिल मांगे मोर-वाली व्यक्तिवादी और उपभोक्तावादी संस्कृति का उत्थान पिछले दशकों में हमने देखा और अब उसे एक छोटे से वायरस के सामने गिड़गिड़ाते देख रहे हैं। सारा का सारा पश्चिमी समाज भरभरा कर गिर रहा है।

ऐसे संकट के दौर में आध्यात्मिक चिंतन के आधार पर खड़े हुए और हजारों साल से विद्यमान भारतीय राष्ट्र की महती जिम्मेदारी है कि वह दुनिया को राह दिखाए, लेकिन उसके लिए पहले हमें अपने अंदर जो विश्वास की कमी है उसे दूर करना होगा। हमें अपनी ज्ञान परंपरा, जीवन पद्धति, आर्थिक मॉडल पर एक बार फिर विचार कर अपने संकल्प को मजबूत करना होगा। इसमें दो राय नहीं कि भारत की ज्ञान परंपरा से निकले योग, आयुर्वेद, पंचकर्म तथा प्राकृतिक चिकित्सा, व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र, विश्व तथा सृष्टि को एक अंखडमंडलाकार के रूप में देखने वाला चिंतन, विकेंद्रीकरण तथा स्वावलंबन पर चलने वाली अर्थव्यवस्था और बहु-केंद्रित पांथिक व्यवस्था दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए एक युगानुकूल मॉडल है। वैसे भी दुनिया में अलग-अलग स्तर पर ऐसा बहुत कुछ प्रयोग में आने भी लगा है, जिसका पालन हम सदियों से करते आ रहे हैं जैसे शवों को जलाना, नमस्ते करना और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए योग, ध्यान करना आदि।

ऐसी ही कुछ बातें संघ प्रमुख ने अपने उद्बोधन में कही हैं। उनके अनुसार हमें भारतीय जीवन दर्शन से निकली जीवनचर्या का पालन करने की जरूरत है जिसमें जीव-जगत, पर्यावरण, जल संरक्षण, स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाए। उन्होंने भारत से निकलने वाले एक नए आर्थिक मॉडल की बात भी कही है जिसमें विकेंद्रीकरण, स्वदेशी और स्वावलंबन का प्रमुख स्थान होगा। आज जिस सेवा और त्याग की भावना से प्रेरित होकर सरकार के साथ-साथ संपूर्ण समाज खड़ा है वह दुनिया के दूसरे देशों के लिए अनुकरणीय है।

सैकड़ों वर्षो से चुनौतियां झेलता आ रहा यह देश भारत संकट में और भी मजबूती से खड़ा होता है और यह कोरोना संकट इसका अपवाद नहीं है, लेकिन कोरोना संकट के बाद विश्व में पुनर्निर्माण की जो प्रक्रिया शुरू होगी उसमें हम भारतीय जीवनशैली, चिंतन, दर्शन और आर्थिक मॉडल को प्रस्तुत कर सकते हैं जो दुनिया को ‘भारतीय व्यवस्था’ के आधार पर ले चलने में सक्षम होगा।

सैकड़ों वर्षो से चुनौतियां झेलता आ रहा यह देश भारत संकट में और भी मजबूती से खड़ा हो जाता है। इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण से पैदा हुई महामारी में भी भारत की इस ताकत को देखा जा सकता है। जाहिर है कोरोना संकट के बाद विश्व में पुनर्निर्माण की जो प्रक्रिया शुरू होगी उसमें हम भारतीय जीवनशैली, चिंतन, दर्शन और आर्थिक मॉडल को प्रस्तुत कर सकते हैं जो दुनिया को ‘भारतीय व्यवस्था’ के आधार पर ले चलने में सक्षम होगा।

(प्रोफेसर, राजनीति शास्त्र, दिल्ली विश्वविद्यालय)

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