[प्रदीप]। Mission Gaganyaan: भारत जैसा विकासशील देश, जिसकी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थितियां बहुत विकट हैं, मगर इन सबके बावजूद भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पिछली सदी के सातवें दशक में जिस अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की थी वह आज अमेरिका, रूस, फ्रांस, चीन और जापान जैसे देशों को कड़ी टक्कर दे रहा है। कम संसाधनों में भी उसने चंद्रयान-1 को चांद पर भेजकर इतिहास रच दिया।

बेहद कम लागत में तथा पहली ही कोशिश में मंगल ग्रह तक पहुंचने में कामयाब होने वाला भारत दुनिया का पहला देश बना। एक साथ रिकॉर्ड 104 सैटेलाइट का प्रक्षेपण कर भारत ने दुनिया के अंतरिक्ष बाजार में लंबी छलांग लगाई। जिस प्रकार अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री को एस्ट्रोनॉट तथा रूस के अंतरिक्ष यात्री को कॉस्मोनॉट और चीन के अंतरिक्ष यात्री को टैक्नॉट कहा जाता है, उसी तर्ज पर भारतीय अंतरिक्ष यात्री को 'व्योमनॉट' नाम दिया गया है।

भारतीय अंतरिक्ष यात्री को 'व्योमनॉट' नाम दिया 

गगनयान को अंतरिक्ष में लॉन्च करने के लिए भारी-भरकम सैटेलाइटों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम ‘जीएसएलवी मार्क-3’ रॉकेट का उपयोग किया जाएगा। इसका पूरा नाम जिओसिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल मार्क-3 है। यह कक्षीय व्हीकल पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक पर आधारित है। जीएसएलवी रॉकेट के तीन मॉडल हैं। इसके मार्क-1 की भार वहन क्षमता यानी पेलोड का भार 1.8 टन है। मार्क-2 अपने साथ 2.5 टन भारी सैटेलाइट ले जा सकता है, वहीं मार्क-3 अपने साथ चार टन वजन के कम्यूनिकेशन सैटेलाइट को ले जाने में सक्षम है। 

मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजने वाले देश 

चंद्रयान-2 की आंशिक असफलता से रोवर प्रज्ञान के जरिये चांद की सतह की जानकारी इकट्ठा करने में बेशक बाधा आई, मगर ऑर्बिटर लगातार चंद्रमा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां भेज रहा है। इसरो ने साल-दरसाल नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। लेकिन स्वयं के अंतरिक्ष यान से किसी भारतीय को अंतरिक्ष भेजने का सपना पूरा नहीं हुआ है। अभी तक रूस, अमेरिका और चीन ने ही मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजने में सफलता पाई है। अगर सबकुछ योजना के मुताबिक हुआ तो भारत भी 2022 तक मानव को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखने वाले देशों में शामिल हो जाएगा।

12 अप्रैल 1961 को ‘वस्तोक-1’ नामक अंतरिक्ष यान

विश्व की पहली मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान की उपलब्धि रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) को हासिल है। उसने 12 अप्रैल 1961 को ‘वस्तोक-1’ नामक अंतरिक्ष यान से यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजकर पूरी दुनिया को चकित कर दिया था। इसके बाद मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ानों का सिलसिला बढ़ा और बाद में अमेरिका और चीन ने भी इस करिश्मे को अंजाम दिया।

‘गगनयान मिशन’ 

अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजना और उन्हें सकुशल धरती पर लाना बेहद चुनौतीपूर्ण और दुरूह कार्य है। यदि इस अभियान में इसरो सफल हो जाता है तो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वदेशी तकनीकी शक्ति का लोहा पूरी दुनिया को मनवा सकता है। 15 अगस्त 2018 को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘गगनयान मिशन’ के माध्यम से 2022 में या उससे पहले अंतरिक्ष में भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेज देने की घोषणा की थी। हालांकि इसरो काफी लंबे समय से इस अभियान में जुटा हुआ है, मगर प्रधानमंत्री की उक्त घोषणा ने समानवीय अंतरिक्ष उड़ान की एक निश्चित समय सीमा तय कर दी है।

 

‘ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम’

वर्ष 2004 में इसरो के ‘ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम’ के तहत समानवीय अंतरिक्ष मिशन की शुरुआत हो गई थी, लेकिन पर्याप्त रकम की कमी के कारण इस काम में तेजी नहीं आ पा रही थी। इस दौरान इसरो की चंद्रयान, मंगलयान, चंद्रयान-2 वगैरह को लेकर काफी व्यस्तताएं थीं। इस लिहाज से यह सही समय है कि अब इसरो मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन की ओर गंभीरतापूर्वक काम करे। इस अभियान के तहत तीन अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में सात दिनों के लिए भेजने की योजना है।

क्रू मॉड्यूल में तीनों व्योमनॉट्स रहेंगे

संस्कृत शब्द ‘व्योम’ का अर्थ अंतरिक्ष होता है। गगनयान भारतीय अंतरिक्ष यान का भार सात टन, ऊंचाई सात मीटर और करीब चार मीटर व्यास की गोलाई होगी। गगनयान उन्नत संस्करण डॉकिंग क्षमता से लैस होगा। इसमें एक क्रू मॉड्यूल और सर्विस मॉड्यूल होगा। क्रू मॉड्यूल में तीनों व्योमनॉट्स रहेंगे। जबकि सर्विस मॉड्यूल में तापमान और वायुदाब को नियंत्रित करने वाले उपकरण, लाइफ सपोर्ट सिस्टम, ऑक्सीजन और भोजन सामग्री होगी।

गगनयान मिशन के लिए खास केसरिया रंग का स्पेस सूट तैयार किया जा रहा है। इस मिशन के तहत 3.7 टन के अंतरिक्ष कैप्सूल के भीतर तीनों व्योमनॉट्स को रखा जाएगा तथा जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट से उसे अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जाएगा और करीब 16 मिनट में अंतरिक्ष की कक्षा में पहुंच जाएगा। इसे धरती की सतह से 300 से 400 किमी की दूरी वाली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। सात दिनों तक कक्षा में रहने के बाद गगनयान धरती की ओर लौटेगा।

क्रू मॉड्यूल से व्योमनॉट्स बंगाल की खाड़ी में उतरेंगे

पृथ्वी की 120 किमी की ऊंचाई पर क्रू मॉड्यूल सर्विस मॉड्यूल से अलग हो जाएगा। क्रू मॉड्यूल से व्योमनॉट्स अरब सागर या बंगाल की खाड़ी में उतरेंगे। इस संदर्भ में पूर्व में सोवियत संघ के ‘सोयुज टी-11’ यान से अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा के अनुभवों से भी मदद ली जाएगी। मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान से पहले इसरो दो मानव रहित उड़ान भेजेगा, जिससे तकनीकी तथा प्रोग्राम मैनेजमेंट जैसे पहलुओं पर भरोसा बढ़ाया जा सके।

मिशन से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन की राह में अब हमें ज्यादा मुश्किलों का शायद ही सामना करना पड़े, क्योंकि अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत काफी बेहतर स्थिति में है और इसरो ने अब तक जो भी वादे किए हैं, उन्हें निश्चित समयावधि में सफलतापूर्वक पूरे भी किए हैं। इसमें संदेह नहीं है कि इसरो हर चुनौती को स्वीकारता है और उसमें अक्सर वह सफल होता है। अब हमें उस दिन का इंतजार है, जब गगनयान से भारतीय अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष की अनंत संभावनाओं को टटोलने के लिए उड़ान भरेंगे।

[विज्ञान विषय के जानकार]

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