अभय कुमार ‘अभय’। कोरोना संक्रमण के एक बार फिर तेजी से बढ़ते हुए दौर में निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इसकी दूसरी लहर दस्तक दे चुकी है। तमाम राज्य सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए अपने अपने स्तर से प्रयासों में जुटी हैं। कुछ राज्यों में वहां की सरकारों ने आंशिक तालाबंदी जैसे अनेक निर्णय लिए हैं तो कई अन्य राज्य तेजी से इस संबंध में निर्णय ले रहे हैं।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजधानी की स्वास्थ्य व्यवस्था को ध्वस्त होने से रोकने के लिए छह दिन के लॉकडाउन की घोषणा की है जो आगामी सोमवार सुबह पांच बजे तक जारी रहेगा। दूसरी ओर केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने उद्योग जगत को आश्वासन दिया है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन नहीं लगाया जाएगा। इस बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इसी आशय की घोषणा की है, लेकिन उन्होंने लॉकडाउन को स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह का नाम दिया है। इस दौरान झारखंड में सरकारी कार्यालय खुले रहेंगे। कृषि, उद्योग और खनन से जुड़ी गतिविधियां जारी रहेंगी।

वैसे पिछले साल के विपरीत इस बार एक नया मॉडल यह अपनाया गया है कि लॉकडाउन के संदर्भ में निर्णय राज्य सरकारों पर छोड़ दिया गया है कि वह अपनी स्थानीय स्थितियों को ध्यान में रखते हुए फैसला करें। यह बेहतर तरीका है, क्योंकि वर्तमान में सभी राज्यों में कोविड संक्रमण की वह अनियंत्रित स्थिति नहीं है, जैसी लखनऊ या दिल्ली जैसे शहरों में है। पिछले साल जैसा केंद्र-नियंत्रित लॉकडाउन उन राज्यों पर जुल्म होता जिनमें फिलहाल संक्रमण अभी बहुत कम है। इस पृष्ठभूमि में यही अक्लमंदी है कि अपनी अपनी स्थितियों को मद्देनजर रखते हुए मुख्यमंत्री लॉकडाउन के बारे में फैसला करें।

कोविड की दूसरी लहर को नियंत्रित करने के सिलसिले में एक अन्य महत्वपूर्ण कदम यह है कि एक मई से 18 वर्ष से ऊपर के सभी देशवासी टीकाकरण करा सकेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि गंभीर व घातक संक्रमण से सुरक्षित रहने का एकमात्र विकल्प वैक्सीन ही है, इसलिए टीकाकरण अभियान युद्धस्तर पर छेड़ा जाना चाहिए। मई से आरंभ होने वाले टीकाकरण के तीसरे चरण में वैक्सीन निर्माताओं को सेंट्रल ड्रग्स लेबोरेटरी द्वारा जारी अपनी मासिक खुराकों का 50 प्रतिशत केंद्र सरकार को देना होगा और शेष वह सीधे राज्य सरकारों व खुले बाजारों में सप्लाई करने के लिए आजाद होंगे, जिसका दाम उन्हें एक मई से पहले घोषित करना होगा।

निजी अस्पतालों को घोषित दाम पर अपनी सप्लाई खुले बाजार से लेनी होगी। केंद्र ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि एक मई के बाद भी प्राइवेट अस्पतालों में वैक्सीन की एक खुराक 250 रुपये के अधिकतम मूल्य पर ही दी जाएगी या खुले बाजार के भाव को मद्देनजर रखते हुए इसमें निजी प्रतिष्ठान वृद्धि कर सकते हैं। इस अस्पष्टता से यह आशंका बढ़ गई है कि निजी अस्पताल अपना वर्तमान वैक्सीन स्टॉक रोक लेंगे, ताकि एक मई के बाद उसे महंगा ‘बेच’ सकें। बहरहाल दिल्ली का लॉकडाउन के साथ नया प्रयोग देश के लिए नाजुक क्षण है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र भारत के मुख्य आर्थिक चालकों में से एक है। इसलिए लॉकडाउन के लाभ खर्च के अनुपात में होने चाहिए।

अगले पांच दिन के भीतर संक्रमण की जंजीर को तोड़ने से स्वास्थ्यकर्मियों को कुछ राहत मिलेगी और उन सुविधाओं को भी बेहतर बनाया जा सकेगा जो संक्रमण की बाढ़ से चरमरा गई थीं। दूसरा, कुछ राज्यों में वायरस संक्रमण की रफ्तार इतनी तेज है कि उसने हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने की गति को बहुत पीछे छोड़ दिया है। तीसरा यह कि आवश्यक दवाओं की कमी व कालाबाजारी हर जगह से रिपोर्ट हो रही है, इस पर तुरंत लगाम कसने की आवश्यकता है। दूसरी लहर में कोविड रोगियों को ऑक्सीजन की अधिक जरूरत पड़ रही है और पर्याप्त ऑक्सीजन न होने की हर जगह से शिकायतें आ रही हैं। गौरतलब है कि देश में केवल नौ औद्योगिक समूह ही ऑक्सीजन सप्लाई करते हैं। ऑक्सीजन उत्पादन दायरे को बढ़ाने की जरूरत उसी समय से महसूस की जा रही थी जब गोरखपुर में सौ से अधिक बच्चे ऑक्सीजन की कमी की वजह से दम तोड़ गए थे, लेकिन सरकारों को इस ओर ध्यान देने की फुर्सत ही नहीं मिली शायद।

बहरहाल लॉकडाउन का लाभ तभी मिल सकेगा जब रोग निगरानी को बेहतर किया जाए, लोग पाबंदी से मास्क लगाएं, होम क्वारंटाइन के संस्थागत विकल्प उपलब्ध कराए जाएं और पिछले साल जैसे प्रवासी मजदूरों के पलायन को रोकने के लिए अनाज सुरक्षा जरूरतों को पूरा किया जाए। केवल लोगों के घरों में बंद रहने से वायरस संक्रमित करना बंद नहीं कर देता है। घर घर जाकर टेस्टिंग व ट्रेसिंग की जरूरत है ताकि लक्षणरहित सुपरस्प्रेडर को स्पॉट किया जा सके। माइक्रो कंटेनमेंट योजना के बावजूद, जनस्वास्थ्य व्यवस्था की रोग निगरानी क्षमता कमजोर है। इसी वजह से दूसरी लहर ने आश्चर्यचकित किया। लॉकडाउन व सार्वजनिक स्थलों के खाली हो जाने से सरकारी मशीनरी को लापरवाह नहीं होना चाहिए। लॉकडाउन रोग नियंत्रण की कारगर योजना नहीं है, यह सिर्फ स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर करने का समय प्रदान करता है, आम जनता को आर्थिक तंगी देने की कीमत पर। (ईआरसी)

[सामाजिक अध्येता]