जीएन वाजपेयी। कोरोना की पहली लहर से ठीकठाक ढंग से उबरने के बाद गति पकड़ती भारतीय अर्थव्यवस्था ने अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया। यही कारण रहा कि चालू वित्त वर्ष में उसमें अप्रत्याशित तेज वृद्धि के अनुमान व्यक्त किए जाने लगे। भारतीय रिजर्व बैंक ने देश की जीडीपी में 10.5 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया तो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष को 12.5 प्रतिशत वृद्धि की संभावनाएं दिखीं। यहां तक सब ठीक रहा, लेकिन इसी बीच कोरोना की दूसरी और कहीं ज्यादा खौफनाक लहर ने दस्तक दे दी। उस पर काबू पाने के लिए नाइट कफ्र्यू से लेकर लॉकडाउन जैसे जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनसे र्आिथक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं। परिणामस्वरूप हाल के दिनों में विभिन्न संस्थानों ने भारत की वृद्धि के अनुमानों में एक प्रतिशत तक की कटौती की है।

चिंता की बात यह है कि कोरोना के नए प्रतिरूपों के फैलने की दर कहीं ज्यादा तेज है। इस कारण पूरे देश में खतरे की घंटी बज गई है। विभिन्न इलाकों से आ रही खबरें इसकी पुष्टि करती हैं कि हालात भयावह होते जा रहे हैं। कहीं ऑक्सीजन की किल्लत है तो कहीं अस्पताल में बेड ही नहीं हैं तो कहीं कई दवाएं गायब होती दिख रही हैं। बड़ी तादाद में लोगों की जान जा रही है। केंद्र और राज्य सरकारों का प्रशासनिक ढांचा चरमरा गया है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। मदद के लिए लगाई जा रही पुकार अनसुनी हो रही है।

कोविड-19 की खतरनाक वापसी के लिए क्या कारण हैं और कौन इसका जिम्मेदार है? दरअसल भारतीय जनता यह सोच बैठी कि हमने महामारी को पूरी तरह से मात दे दी है। ऐसा तब हुआ, जब दुनिया के दूसरे हिस्सों से कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर की खबरें आती रहीं। कुछ कथित जानकारों ने कहना शुरू कर दिया कि भारत हर्ड इम्युनिटी की ओर बढ़ रहा है, जबकि देश में टीकाकरण अभियान अभी शुरू ही हुआ है। जनता जब एक थके-मांदे विजेता होने के भाव में डूबी हुई थी, तब शायद शारीरिक दूरी और अन्य नियमों के परित्याग के बीच कोरोना के कुछ नए प्रतिरूप पनप रहे थे। इसी दौरान तमाम दुस्साहसी और लापरवाह लोग र्पािटयों, शादी-विवाह, र्धािमक समारोहों, मेलों और यहां तक कि विरोध-प्रदर्शनों में जुटे थे।

गतिशील भारतीय लोकतंत्र में चुनाव और चुनावी प्रचार अभियान चरम पर था। जिस महामारी को भारी र्आिथक कीमत चुकाकर सख्त कदमों के सहारे नियंत्रित किया गया था, उसे हमने फिर से आमंत्रित कर लिया। नतीजा यह है कि अब रोजाना तीन लाख के करीब नए मामले आ रहे हैं और सैकड़ों लोग मौत के शिकार बन रहे हैं। ये आंकड़े निरंतर बढ़ रहे हैं। कोरोना संक्रमण अब जल्द नहीं जाने वाला। फ्लू, मलेरिया, टीबी आदि बीमारियों की तरह कोविड-19 भी शायद अब टिका रह जाएगा। इसे नियंत्रित करना होगा और एहतियाती कदमों के साथ जीना सीखना होगा। शारीरिक दूरी, मास्क और लगातार हाथ धोते रहने से इसे दूर रखा जा सकता है। टीकाकरण से यह संभव हो सकता है कि अस्पताल जाने की नौबत न आए। मौतों को भी कुछ हद तक रोका जा सकता है, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं।

जानकारों का कहना है कि करीब 50 प्रतिशत आबादी को टीका लगाने के बाद हर्ड इम्युनिटी का लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। इसके बावजूद विदेश से आने वाले लोगों के कारण जोखिम बना ही रहेगा, क्योंकि दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी को टीका लगाने में कम से कम दो साल लगेंगे। तब तक सामान्य जनजीवन की वापसी संभव नहीं दिखती। इस दौरान हम सभी को अनुशासन का परिचय देना होगा। इसका जिम्मा किसी और को नहीं सौंपा जा सकता। जरा सी लापरवाही खुद हमारे लिए, हमारे अपनों के लिए और समस्त समाज के लिए भारी पड़ेगी।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को लेकर चिंता के स्वर सुनाई पड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि यदि संक्रमण पर लगाम नहीं लगाई गई तो उसके तमाम स्वरूप वैश्विक रिकवरी की राह में खतरा बन सकते हैं। इससे पहले कि भारतीय समाज दुनिया में अछूत जैसा बन जाए और भारतीय अर्थव्यवस्था को अपूरणीय क्षति पहुंचे, हमें अपने व्यवहार को अनुशासित बनाकर देश की हरसंभव मदद करनी चाहिए। एक ऐसा देश जो दुनिया भर में वैक्सीन भेजकर सराहना का पात्र बन रहा है, वह कहीं लानत-मलानत का शिकार न बन जाए। हमें ऐसे हालात बनने से रोकने होंगे। इस संक्रमण की पहली लहर से करोड़ों लोगों की बढ़ी र्आिथक दुश्वारियां ही अभी तक दूर नहीं हो पाई हैं। ऐसे में यदि दूसरी लहर से गंभीरता एवं तत्परता से नहीं निपटा गया तो लाखों भारतीय अभाव की गर्त में चले जाएंगे।

वास्तव में र्आिथक दुश्वारियों का व्यापक दुष्प्रभाव कोविड संक्रमण से भी खतरनाक है। मौजूदा भारतीय समाज को शायद हमेशा इस बात का अफसोस रहेगा कि उसकी लापरवाही के कारण भविष्य की पीढ़ियां उसे कभी क्षमा नहीं कर पाएंगी। इस वक्त की सबसे बड़ी आवश्यकता यही है कि ग्राम-शहर, राज्य और केंद्र के रूप में हमारे त्रिस्तरीय लोकतंत्र के सभी अंग समन्वय के साथ आदर्श रूप में काम करें। इसमें सबसे पहला उपाय तो यही होगा कि बिना किसी अपवाद के कोविड अनुशासन का सख्ती से पालन करा जाए। राजनीतिक, कार्यपालिका, नौकरशाहों और अन्य सभी महत्वपूर्ण लोगों को स्वयं एक मिसाल पेश करनी चाहिए।

हाल-फिलहाल वे अपने संकीर्ण हितों से ऊपर उठकर देश को पटरी पर लाने के लिए प्रयास करें। लोगों के जीवन और आजीविका की रक्षा के लिए सभी भौतिक, वित्तीय, ढांचागत और सामाजिक संसाधनों का अधिकतम उपयोग किया जाए। दफ्तर गुलजार हों, फैक्ट्रियों में रौनक रहे और छोटे एवं मझोले उद्यम तेज रफ्तार चलते रहें, लेकिन पर्याप्त सावधानी भी बरती जाए। याद रहे कि जितना किसी का जीवन अनमोल है, उतनी ही महत्वपूर्ण किसी व्यक्ति की र्आिथक सुरक्षा भी है। भारत कोरोना की पहली लहर से बखूबी निपटा, पर लोगों की जिंदगी और अर्थव्यवस्था, दोनों पैमानों पर उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। भारत अब भी इस आपदा को मात दे सकता है, लेकिन उसके लिए जनभागीदारी आवश्यक होगी। हम मिल-जुलकर इस दानव को हरा सकते हैं, जिसने देश पर गहरा आघात किया है।

(लेखक सेबी और एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)