सुरेंद्र किशोर। आखिर 2जी घोटाले में क्या मिला? लंबे इंतजार के बाद इस सवाल का जवाब मिलने की उम्मीद है, क्योंकि बीते दिनों दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामले में पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा और अन्य को बरी किए जाने के खिलाफ सीबीआइ और ईडी की अपीलों पर दैनिक आधार पर सुनवाई करने का आदेश दिया। 2जी घोटाला केस में दिल्ली हाई कोर्ट को इस आरोप की जांच करनी है कि क्या सीबीआइ की विशेष अदालत ने दस्तावेजी सुबूतों को नजरअंदाज किया और मौखिक गवाही पर भरोसा किया? विशेष अदालत ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 165 में मिली शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया?

2जी स्पेक्ट्रम घोटाला : ध्यान रहे कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में दिल्ली स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत ने 2017 में आरोपितों को दोषमुक्त कर दिया था। इस पर बहुत हैरानी जताई गई थी, क्योंकि इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्टया घोटाला मानकर 122 लाइसेंस रद कर दिए थे और जुर्माना भी लगाया था। किसी केस के बारे में सुप्रीम कोर्ट और लोअर कोर्ट की समझ में इतना बड़ा फर्क क्यों आया? 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मुकदमे में ए राजा और कनिमोझी को दोषमुक्त करते हुए विशेष सीबीआइ अदालत ने 2017 में कहा था, ‘कलाइनगर टीवी को कथित रिश्वत के रूप में शाहिद बलवा की कंपनी डीबी ग्रुप द्वारा 200 करोड़ रुपये देने के मामले में अभियोजन पक्ष ने किसी गवाह से जिरह तक नहीं की। कोई सवाल तक नहीं किया।’ याद रहे उस टीवी कंपनी का मालिकाना हक करुणानिधि परिवार से जुड़ा है।

इस घोटाले में 200 करोड़ रुपये की रिश्वत देने का आरोप लगा है? : माना कि अभियोजन पक्ष द्वारा कोई सवाल नहीं किया गया, क्योंकि शायद मनमोहन सरकार के कार्यकाल में सीबीआइ के वकील को ऐसा करने की अनुमति नहीं रही होगी, पर अदालत के लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम में ऐसे ही मौके के लिए धारा 165 का प्रावधान किया गया है। आखिर इस शक्ति का उपयोग क्यों नहीं किया गया, जबकि यह सूचना उपलब्ध थी कि इस घोटाले में 200 करोड़ रुपये की रिश्वत देने का आरोप लगा है? इस केस का यह सबसे प्रमुख सवाल है। उक्त धारा के अनुसार, न्यायाधीश सुसंगत तथ्यों का पता लगाने के लिए या उनका उचित सुबूत प्राप्त करने के लिए किसी भी रूप में, किसी भी समय, किसी भी साक्षी या पक्षकार से, किसी भी सुसंगत या विसंगत तथ्य के बारे में कोई भी प्रश्न, जो वह चाहे पूछ सकेगा तथा किसी भी दस्तावेज या चीज को पेश करने का आदेश दे सकेगा। न तो पक्षकार और न उनके अभिकर्ता हकदार होंगे कि वे किसी भी ऐसे प्रश्न या आदेश के प्रति कोई भी आक्षेप करें। वे ऐसे किसी भी प्रश्न के प्रत्युत्तर में दिए गए किसी भी उत्तर पर किसी भी साक्षी की न्यायालय की इजाजत के बिना प्रति परीक्षा करने के भी हकदार नहीं होंगे।

ए राजा और कनिमोझी को दोषमुक्त : 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला मुकदमे में ए राजा और कनिमोझी को दोषमुक्त करते हुए विशेष जज की ओर से यह भी कहा गया था कि मैं पिछले सात साल से पूरी तन्मयता के साथ कोर्ट में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक बैठा रहा और इंतजार करता रहा कि सीबीआइ कोई ठोस सुबूत लेकर आएगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं मिला, जो आरोपितों के अपराध को साबित करता हो। फिर चाहे वह कट ऑफ डेट को फिक्स करने की बात हो या पहले आओ पहले पाओ नीति के विरूपण का मामला हो। ऐसी टिप्पणियों के बाद ही यह कहना शुरू किया गया कि इस मामले में तो कुछ था ही नहीं। इसी तरह बोफोर्स घोटाले के बारे में भी कांग्रेस के कई बड़े-छोटे नेताओं ने लगातार यही कहा कि बोफोर्स घोटाला मीडिया की उपज था। आमतौर पर ऐसी बातें अधूरी जानकारी के आधार पर की जाती हैं, क्योंकि जब मामले को उनकी ताíकक परिणति तक पहुंचने ही नहीं दिया गया तो कैसे कहा जाए कि किसी घोटाले में क्या मिला?

घोटालों से जुड़े सवालों का इंतजार : कम ही लोगों को मालूम है कि बोफोर्स मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। मामला विचाराधीन है। याद रहे कि 2005 में दिल्ली हाई कोर्ट ने जब बोफोर्स कांड के आरोपितों को दोषमुक्त करार दे दिया तो तत्कालीन मनमोहन सरकार ने उस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील तक नहीं की। प्रणब मुखर्जी ने तो यह तक कह दिया था कि चूंकि किसी अदालत ने इसे घोटाला नहीं कहा है, इसलिए इसे आधिकारिक तौर पर घोटाला नहीं कहा जा सकता है, पर वकील अजय अग्रवाल की लोकहित याचिका पर जब कभी सुप्रीम कोर्ट विचार करेगा तो उसके सामने एक महत्वपूर्ण तथ्य आएगा। उस पर उसे अपनी राय बनानी होगी।

बोफोर्स सौदे में दलाली का आरोप : दरअसल जिस मामले को निराधार मानकर दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपितों को दोष मुक्त कर दिया था, उसी घोटाले में मिले दलाली के पैसों पर भारत सरकार के आयकर महकमे ने आयकर वसूले। याद रहे कि भारत सरकार के आयकर न्यायाधिकरण ने कहा था कि ओत्तावियो क्वात्रोची और विन चड्ढा को बोफोर्स की दलाली के 41 करोड़ रुपये मिले थे। दलाली के ये पैसे भारत सरकार के खजाने से ही दिए गए थे। लिहाजा ऐसी आय पर भारत में उन पर टैक्स की देनदारी बनती है। आयकर विभाग ने दक्षिण मुंबई स्थित विन चड्ढा के फ्लैट को 12 करोड़ दो लाख रुपये में नीलाम कर दिया था। दूसरे दलाल क्वात्रोची को तो दलाली के पैसे स्विस बैंक की लंदन शाखा से निकाल लेने की सुविधा तत्कालीन मनमोहन सरकार ने प्रदान की थी। जाहिर है सुप्रीम कोर्ट के सामने यह प्रश्न होगा कि जिस बोफोर्स सौदे में दलाली का आरोप प्रमाणित है, उसके आरोपितों को दिल्ली हाई कोर्ट ने दोषमुक्त कैसे कर दिया? उम्मीद की जानी चाहिए कि ये दोनों मामले जल्द ही अपने अंजाम तक पहुंचेंगे और लोगों को इनसे जुड़े सवालों के जवाब मिल सकेंगे।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)