[ प्रकाश सिंह ]: महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों ने देश की अंतरात्मा को झकझोर दिया है। शायद ही कोई दिन ऐसा होता है, जब अखबार में दुष्कर्म की घटनाएं न छपती हों। हाल की कुछ जघन्य घटनाओं ने विशेष तौर पर देश का ध्यान खींचा है। हैदराबाद में एक महिला के साथ चार लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया और बाद में उसे जिंदा जला दिया। उन्नाव में एक दुष्कर्म पीड़िता को जिंदा जला दिया गया। त्रिपुरा में एक लड़की को उसके प्रेमी और उसकी मां ने मिलकर जला दिया। वह अस्पताल पहुंचते ही मर गई।

महिलाओं के खिलाफ बढ़ते घिनौने अपराध

राजस्थान के टोंक जिले में एक छह साल की लड़की की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। उसका शव स्कूल से ही आधा किलोमीटर दूर पाया गया। इन अपराधों और विशेष तौर से हैदराबाद और उन्नाव की घटना को लेकर जनमानस बुरी तरह उद्वेलित है। कानून-व्यवस्था के प्रति इतना असंतोष है कि लोगों ने पुलिस द्वारा हैदराबाद में दुष्कर्म के आरोपियों की मुठभेड़ में मौत पर खुशी जाहिर की। जानेमाने लोगों ने तेलंगाना पुलिस की प्रशंसा की। ऐसा होना खतरे की घंटी है।

लोगों का वर्तमान क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम से विश्वास उठ गया

इससे स्पष्ट हो जाता है कि लोगों का वर्तमान क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम से विश्वास उठ गया है। अन्य देशों में भी कुछ ऐसा ही वातावरण बन रहा है। स्पेन में एक महिला के साथ हुए दुष्कर्म का वीडियो उसे दिखाकर उसकी प्रतिक्रिया टीवी चैनल पर दिखाई गई। इससे लोगों में भयंकर रोष हुआ। फलस्वरूप जेप्पेलिन टीवी कंपनी, जिसने शो दिखाया था, को क्षमा मांगनी पड़ी। दक्षिण अमेरिका के चिली देश में महिलाओं के एक संगठन ला तेसिस की ओर से बनाया गया वीडियो-‘द रेपिस्ट इज यू’ चर्चा में है। चिली की राजधानी सैंटियागो में करीब 10 हजार महिलाओं ने काले कपड़े और लाल स्कार्फ पहन कर इस गाने को गाया। इसे सामूहिक रूप से मेक्सिको, पेरिस और बार्सिलोना में भी गाया गया।

हिंसा का शिकार होती महिलाएं

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने हाल में महिला अपराध पर एक अध्ययन प्रकाशित किया है जो ईस्टर्न मेडीटेरीनियन हेल्थ जर्नल में छपा है। इसमें कहा गया है कि विश्व भर में महिलाएं, भले ही वह किसी भी वर्ग या समाज की हों, किसी-न-किसी प्रकार की हिंसा का शिकार होती हैं। इस अध्ययन के अनुसार भविष्य में भी स्त्रियों की सुरक्षा एक चिंता का विषय रहेगा।

महिला सुरक्षा के लिए पुलिस में मूलभूत सुधार होना जरूरी

भारत में दुष्कर्म के मामले बढ़ना एक गंभीर चिंता का विषय है। नारी को इस देश में हमेशा सम्मान की दृष्टि से देखा गया है। दुर्भाग्य से हमारे मूल्यों में इधर इतना ह्रास हो गया है कि नारी को बहुत से लोग अब केवल उपभोग की सामग्री समझने लगे हैं। निर्भया कांड के बाद भारत सरकार ने जस्टिस जेएस वर्मा की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा था कि इन घटनाओं का सबसे बड़ा कारण है देश में सुशासन की कमी। वर्मा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में 28 पृष्ठ का एक पूरा अध्याय पुलिस सुधार पर लिखा था। कमेटी ने राज्य सरकारों से आग्रह किया था कि वह पुलिस सुधार संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का तत्काल पालन करे। वर्मा कमेटी की यह सोच थी कि जब तक पुलिस में मूलभूत सुधार नहीं होंगे, तब तक वह महिला सुरक्षा या अन्य समस्याओं से निपटने के लिए सक्षम नहीं होगी।

पुलिस की पुरानी लचर व्यवस्था से महिलाएं सुरक्षित नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस सुधार को लेकर 2006 में आदेश निर्गत किए थे। 13 वर्ष बीत चुके हैैं, परंतु राज्य सरकारों का रवैया आज भी नकारात्मक है। कागज पर दिखाने के लिए तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन कर लिया है, परंतु अगर बारीकी से देखा जाए तो सारा अनुपालन फर्जी है। जमीन पर अभी भी कुछ नहीं बदला है। पुलिस की पुरानी लचर व्यवस्था चली आ रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार ने कुछ नहीं किया है। गृह मंत्रालय ने समय-समय पर राज्य सरकारों को महिला सुरक्षा के बारे में निर्देश भेजे हैं।

दुष्कर्म के मामलों की जांच दो माह में और सुनवाई अधिकतम छह माह में पूरी हो

हाल में गृह सचिव ने सभी मुख्य सचिवों को एक पत्र भेजा है जिसमें उन्होंने विशेष तौर से यह सुझाव दिया कि सभी राज्य पुलिस सीसीटीएनएस के इन्वेस्टिगेशन ट्रैकिंग सिस्टम फॉर सेक्सुअल ऑफेंसेज पोर्टल का प्रयोग करें, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि महिला संबंधी अपराधों की विवेचना दो महीनों में समाप्त हो। कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने भी सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों को एक पत्र लिखा है कि दुष्कर्म के मामलों की जांच दो माह में और सुनवाई अधिकतम छह माह में पूरी कर ली जाए। मंत्री महोदय के अनुसार देश में चल रहे 704 फास्ट ट्रैक कोर्ट के अतिरिक्त 1023 और नए फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाए जाएंगे। आशा की जा सकती है कि इससे स्थिति में कुछ सुधार होगा।

महिलाओं के विरुद्ध अपराध होने के बाद सुस्त पुलिस कार्रवाई 

महिलाओं के विरुद्ध अपराध के दो पहलू होते हैं। एक तो अपराध का होना और दूसरा अपराध होने के बाद प्रशासनिक/पुलिस कार्रवाई। आजकल अपराध के बाद के घटनाक्रम पर विशेष तौर से चर्चा होती है। जैसे कि पुलिस ने रिपोर्ट लिखने में कोताही की, पीड़िता को एक थाने से दूसरे थाने दौड़ना पड़ा, पुलिस ने पीड़िता को संरक्षण नहीं दिया, आरोपियों की स्थानीय नेताओं से साठगांठ थी। ऐसी चर्चा के बीच न्याय प्रक्रिया वर्षों तक चलती रहती है और इसका ठिकाना नहीं रहता कि दंड कब मिलेगा? अपराध होते क्यों हैं, इस पर गंभीरता से कोई नहीं सोचता।

मूल्यों और संस्कारों का अभाव

जब तक हम समस्या की जड़ में नहीं जाएंगे तब तक यह सिलसिला इसी तरह चलता रहेगा। हमें मूल्य और संस्कार मुख्य रूप से दो स्तर पर मिलते हैं। पहले तो परिवार में और बाद में शिक्षण संस्थानों में। आज परिवार में न तो माता-पिता अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं और न ही स्कूल-कॉलेज में अध्यापक गण। मूल्यों का सर्वथा अभाव है। माता-पिता चाहते हैं कि लड़का अच्छे स्कूल में जाए, अच्छे नंबर से पास हो और उसकी अच्छी नौकरी लग जाए। वह लायक बने, अच्छा नागरिक हो, देशभक्त हो, ऐसी कोई शिक्षा नहीं दी जाती। शिक्षण संस्थानों की आजकल जो दुर्गति है, सभी को मालूम है। व्यावसायिक दृष्टिकोण से सारा वातावरण व्याप्त है।

राजनीति का आपराधीकरण

और आगे बढ़ें तो हम देखते हैं कि राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों का प्रतिनिधित्व बढ़ता जा रहा है। यह सब हमारी भावी पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक नहीं है। सबसे ज्यादा गदर मचा रखा है इंटरनेट पर उपलब्ध अश्लीलता ने। सरकार को इसे रोकने या कम-से-कम इस पर अंकुश लगाने के बारे में सोचना चाहिए। हाल में एक खबर आई कि पटना स्टेशन पर वाई-फाई मुफ्त हो गया है। नतीजतन अधिकांश लोग पोर्नोग्राफी देख रहे थे। इनसे आप क्या उम्मीद करते हैं। क्या ये माला जपेंगे? एक तरफ हम ज्वलनशील पदार्थ इकट्ठा करते हैं और दूसरी तरफ चिल्लाते हैं, ‘आग लगी है, आग लगी है।’ इसे संकुचित सोच नहीं तो और क्या कहेंगे। महाभारत में तो केवल एक द्रौपदी रो रही थी, आज हजारों द्रौपदियां भयभीत होकर रो रही हैं।

( लेखक उत्तर प्रदेश एवं असम के पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं )