मनीष खेमका। Income Tax Day In India 2020 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों कहा कि 130 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले हमारे देश में केवल डेढ़ करोड़ लोग ही आयकर देते हैं। उन्होंने कहा कि जब बहुत सारे लोग कर नहीं देते हैं और कर नहीं देने के तरीके खोज लेते हैं तो इसका भार उन लोगों पर पड़ता है जो पूरी ईमानदारी से कर चुकाते हैं। प्रधानमंत्री की यह स्वीकारोक्ति इस मायने में संतोषप्रद है कि वे आयकर से संबंधित इस विसंगति से भलीभंति अवगत हैं।

अपने बेबाक बयानों के लिए चर्चित दिग्गज नेता व भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी इस बात को बात दोहराते रहे हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है तो यहां आयकर खत्म करना चाहिए। उनका कहना है कि आम आदमी के लिए आयकर एक उत्पीड़न है। स्वामी यदि सामान्य नेता होते तो उनकी इस बात को हंसी में उड़ाया जा सकता था, लेकिन हार्वर्ड में पढ़ा और आइआइटी दिल्ली में मैथमेटिकल इकोनॉमिक्स पढ़ा चुका एक अर्थशास्त्री जो भारत का वाणिज्य व उद्योग मंत्री भी रह चुका है, उसकी बातों को नजरअंदाज करना मुश्किल है।

यह अच्छा है कि नरेंद्र मोदी सरकार की पारदर्शी नीतियों के कारण आयकर से जुड़ी महत्वपूर्ण सूचनाएं नीचे तक पहुंच रही हैं। ऐसे में उन पर जनहित में विमर्श स्वाभाविक है। यह बात भी सत्य है कि अमेरिका और यूरोप समेत जिन विकसित देशों का उदाहरण देकर हम भारत की कमतर व्यवस्थाओं का ताना सरकार को देते हैं, वहां के बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर और सुख सुविधाओं के निर्माण में आयकर का महत्वपूर्ण योगदान है। इन विकसित देशों में वहां के 20 से 70 प्रतिशत तक नागरिक आयकर अदा करते हैं। अमेरिकी थिंकटैंक टैक्स पॉलिसी सेंटर के मुताबिक अमेरिका में पचास प्रतिशत से अधिक नागरिक आयकर देते हैं। वहीं भारत में एक प्रतिशत से कुछ अधिक नागरिक ही आयकर अदा करते हैं।

मोदी ने नोट बंदी व जीएसटी जैसे साहसिक कदमों से भारत के कर आधार को सुधारने का भरसक प्रयास किया। नतीजन कर निर्धारण वर्ष 2019 में कर आधार बढ़ने की यह दर 13.5 प्रतिशत रही जो कि पिछले पांच वर्षो में अधिकतम थी। इस दौरान 8.44 करोड़ लोगों से टीडीएस की कटौती की गई। जबकि इसके पिछले वित्त वर्ष में यही आंकड़ा 7.42 करोड़ था। तमाम सख्त कदमों के बावजूद हमें करदाताओं की संख्या और उनसे राजस्व को बढ़ाने में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है जिसका खामियाजा ईमानदार करदाताओं को उठाना पड़ा है। तो क्यों न आयकर को खत्म कर दिया जाए?

इस मामले में भारत चीन का उदाहरण लेकर मध्य मार्ग तो अपना ही सकता है। हमारी निर्भरता व्यक्तिगत आयकर पर अपेक्षाकृत अधिक है। जबकि विश्व की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद चीन के राजस्व में व्यक्तिगत आयकर का योगदान बेहद कम है। चीन का ज्यादातर राजस्व वैट जैसे अप्रत्यक्ष करों व कॉरपोरेट आयकर के माध्यम से आता है। वर्ष 2015 में वहां आयकर से जितनी रकम आई, वह उसके कुल राजस्व का सात प्रतिशत ही था। चीन के दो प्रतिशत नागरिक ही आयकर अदा करते हैं।

भारत जैसे देश में अनेक कारणों से करदाताओं की संख्या बढ़ाने के सरकारी प्रयास सफल नहीं हो पाते। वित्त वर्ष 2013-14 में देश के बड़े किसानों ने 83,433 करोड़ रुपये कमाए, जिनमें से 2,746 किसानों ने एक करोड़ से ज्यादा कमाई की। भारत के सिर्फ चार प्रतिशत बड़े किसानों से 25,000 करोड़ रुपये का आयकर देश को मिल सकता है। नीति आयोग ने यह सिफारिश सरकार से की थी। तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चिंता भी जाहिर की थी कि खेती की आड़ में काले धन को सफेद किया जा रहा है। लेकिन इस पर कुछ किया नहीं जा सका।

इस राजनीतिक समस्या का बेहतर हल यह है कि सरकार जीएसटी जैसे अप्रत्यक्ष करों के माध्यम से राजस्व जुटाने पर अपना ध्यान केंद्रित करे। राजस्व में त्वरित व अप्रत्याशित वृद्धि की संभावनाओं के साथ यह तरीका अधिक लोकप्रिय व न्यायसंगत भी साबित होगा और नागरिक आयकर की चिंता से मुक्त होकर अपने प्रमुख पेशे व कारोबार पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। भारत में जून 2020 तक 1.23 करोड़ सक्रिय करदाता थे। जीएसटी से मासिक राजस्व भी एक लाख करोड़ रुपये को पार कर चुका है। जबकि जीएसटी से पहले राजस्व और रजिस्टर्ड कारोबारियों-करदाताओं की यह संख्या आधी थी। इन उपायों के साथ ही केंद्र सरकार यदि काले धन की परिभाषा भी तय कर दे तो अर्थव्यवस्था को और गति मिल सकेगी।

कायदे से काला धन वह है जो सरकारी भ्रष्टाचार, ठगी, चोरी, डकैती, ड्रग्स व हथियारों की तस्करी जैसे अनैतिक व गैर कानूनी कामों के माध्यम से कमाया गया हो। क्या इस पर आयकर चुका कर इसे जायज ठहराया जा सकता है? यह तो पूरा ही जब्त होना चाहिए। आयकर वास्तव में लगान का ही आधुनिक रूप है। क्या लगान देने में जाने अनजाने चूक हो जाने पर उस किसान के मेहनत से उगाए धान को हम काले धन की संज्ञा दे सकते हैं? देश के विकास के मद्देनजर कर अपवंचना को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता है। लेकिन अपनी लागत, मेहनत और जोखिम से कमाई करने वाले, लोगों को रोजगार व देश को अप्रत्यक्ष कर देने वाले करदाता को अपराधी ठहराना भी कहां तक उचित है? हालांकि मोदी सरकार ने करदाताओं को उत्पीड़न से बचाने के लिए ढेरों प्रयास किए हैं, लेकिन काले धन की सही व तर्कसंगत परिभाषा भारत के भाग्य विधाताओं का मनोबल बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होगी।

[चेयरमैन, ग्लोबल टैक्सपेयर्स ट्रस्ट]