अरविंद मिश्र। पुलिस सुधारों पर सार्वजनिक रूप से लंबे समय से बहस होती रही है, लेकिन हाल में सरदार वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी से प्रशिक्षित होकर जनसेवा के लिए तैयार आइपीएस अधिकारियों के 2018 बैच को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित करते हुए पुलिसिंग का जो मंत्र दिया, उस पर पुलिस और समाज दोनों को विचार करना होगा। पीएम ने पुलिस और समाज के बीच रिश्ते, पुलिस की कार्यशैली और समाज की अपेक्षाओं जैसे हर मुद्दे पर बारीकी से बात की। कार्यक्रम की शुरुआत में ही तमिलनाडु कैडर की आइपीएस अधिकारी किरण श्रुति ने प्रधानमंत्री के साथ अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि आज जिस प्रकार पुलिस के कामकाज में तनाव बढ़ रहा है, उसे देखते हुए तमिलनाडु में वेल बिंग प्रोग्राम ऑफ कैडर प्रारंभ किया गया है।

इसके अंतर्गत सिपाही से लेकर पुलिस महानिदेशक तक के अधिकारियों को मानसिक तनाव दूर करने में मदद की जाती है। पीएम ने इस बात को स्वीकार किया कि पुलिस एक ऐसा निकाय है, जिसके समक्ष हर क्षण अप्रत्याशित स्थितियों के निर्मित होने की आशंका बनी रहती है। ऐसी परिस्थितियों से निपटने में तनाव होना स्वाभाविक है। इससे बचने के लिए पीएम ने पुलिस बल से योग और प्राणायाम को जीवन का हिस्सा बनाने का आह्वान किया, तो वहीं नियमित प्रशिक्षण को भी जरूरी बताया।

गुजरात के एक प्रतिष्ठित संस्थान से टेक्सटाइल डिजाइनिंग की पढ़ाई करने के बाद यूपीएससी परीक्षा में सफलता अर्जति कर आइपीएस बनीं तनुश्री के अनुभव पर बात करते हुए प्रधानमंत्री ने अधिकारियों से आह्वान किया कि वे अपनी विशेषज्ञता का लाभ समाज को दें। यकीनन अब आइपीएस अधिकारी ही नहीं, सिपाही के रूप में भर्ती होने वाले जवान भी किसी न किसी विषय में स्नातक और अन्य योग्यताएं अर्जति करने के बाद पुलिस में भर्ती होते हैं। यदि उनकी पहचान कर सामाजिक उत्तरदायित्व के कार्यक्रम संचालित किए जाएं, तो इसके सार्थक परिणाम सामने आएंगे। इस दौरान प्रधानमंत्री ने जनप्रतिनिधि और पुलिस के अंतरसंबंधों का भी जिक्र किया। उन्होंने दीक्षांत समारोह में उपस्थित युवा अधिकारियों के समक्ष जिस विनम्रता के साथ यह कहा कि अकादमी के निदेशक ने सिर्फ आपको ही नहीं, मुङो भी प्रशिक्षित किया है, वह सार्वजनिक जीवन के हर उस व्यक्ति के लिए संदेश है, जो ऊंचे पद पर पहुंचते ही अपनी जड़ों को भूल जाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने उद्बोधन में तकनीक को अपनाने का आह्वान किया, लेकिन इसके उपयोग में सावधानी बरतने की हिदायत भी दी। देश के शहरी और ग्रामीण इलाकों में स्थित थानों में भी कंप्यूटर आधारित कामकाज बढ़ने से पुलिस की कार्यशैली में पारदर्शिता बढ़ी है। कोरोना संकट और उसके बाद की परिस्थितियों में जिस प्रकार लोगों की जीवनशैली बदल रही है, उसमें तकनीक की भूमिका बहुत अधिक होगी। देर-सवेर सार्वजनिक संस्थानों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स की महत्ता बढ़ेगी। इसके लिए पुलिस को भी अभी से तैयारी करनी होगी।

इसके साथ ही देश में आए दिन पुलिस की ज्यादती की तस्वीरें भी सामने आती हैं, जो खाकी की साख पर बट्टा लगाने का काम करती हैं। मीडिया में दिखने और बने रहने की चाह में अक्सर कुछ पुलिस के अधिकारी एवं जवान पुलिसिंग के मूल कार्यो को पीछे छोड़ देते हैं। ऐसे पुलिस अधिकारी और जवान जो पुलिसिंग छोड़ वर्दी का प्रभाव दिखाकर अपनी महत्ता स्थापित करना चाहते हैं, उन्हें सिंघम फिल्म से प्रेरित करार देते हुए पीएम ने सही ही कहा कि पुलिस को प्रभाव से नहीं, बल्कि प्रेमपूर्वक व्यवहार से लोगों के बीच अपनी साख बढ़ानी होगी। पुलिस की छवि सुधारने के लिए थाना स्तर पर स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, डिजिटल अनुप्रयोगों को प्रोत्साहन, चाइल्ड फ्रेंडली थानों की स्थापना जैसे कई प्रयासों को भी पीएम ने जरूरी बताया।

हालांकि पुलिस की कार्यक्षमता की अपनी मर्यादा है। संयुक्त राष्ट्र के मानक के अनुसार प्रति एक लाख नागरिक पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए, लेकिन भारत में यह आंकड़ा 144 ही है। देश में लगभग 5 लाख पद खाली पड़े हैं। देशभर में पुलिस थानों में उपलब्ध इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति किसी से छिपी नहीं है, लेकिन इसके बावजूद पीएम ने पुलिसिंग को लेकर जिन बातों का जिक्र किया है, वे नीतिगत और संस्थागत प्रयासों से कहीं अधिक व्यक्तिगत आचरण के विषय हैं। पुलिस की छवि को बदलने के लिए सामाजिक ताने-बाने को स्पंदित करना होगा।

पुलिस रेग्युलेशन एक्ट 1861 में कब और कैसे बदलाव होंगे यह बहस का दूसरा मुद्दा हो सकता है, लेकिन सामाजिक जीवन की दृष्टि ही पुलिस की सृष्टि है। इस बात को स्वीकार कर यदि पुलिस और समाज सम्मिलित रूप से आगे बढ़ें, तो इससे वर्दी को अपनी अहमियत बताने के लिए किसी सिंघम अवतार की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। यहां मध्यप्रदेश कैडर के आइपीएस अधिकारी राकेश कुमार सिंह की यह बात बहुत ही प्रासंगिक हो जाती है कि पुलिस के प्रति कोई भी दृष्टिकोण विकसित करने से पूर्व हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि पुलिस के जवान किसी दूसरे ग्रह से भेजे गए लोग नहीं, बल्कि हमारे और आपके परिवार का ही अभिन्न हिस्सा हैं।

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