[ रामिश सिद्दीकी ]: संयुक्त राष्ट्र महासभा का 74वां अधिवेशन भारत और पाकिस्तान के रिश्ते के कारण काफी चर्चा में रहा। भारत-पाक के प्रधानमंत्री जब अमेरिका पहुंचे तभी उनके दृष्टिकोण के बीच का अंतर स्पष्ट हो गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यत: भारत और विश्व से संबंधित मुद्दों पर बात की। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में गांधी सोलर पार्क का उद्घाटन किया। यह संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत का एक उपहार था। इसे सभी ने सराहा। इसके पहले उन्होंने ह्यूस्टन में ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम के जरिये अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के लोगों की ताकत विश्व को दिखाई। इस कार्यक्रम के जरिये मोदी ने उभरते भारत का खाका खींचा और देश की वैश्विक भूमिका को रेखांकित किया।

इमरान का नकारात्मक दृष्टिकोण

इसी समय अमेरिका पहुंचे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने हर जगह अपने नकारात्मक दृष्टिकोण का परिचय दिया। अमेरिका पहुंचते ही उन्होंने यह घोषणा की कि पाकिस्तान तुर्की और मलेशिया के साथ मिलकर एक इस्लामिक अंग्रेजी चैनल शुरू करने वाला है, जिसके माध्यम से वह दुनिया भर में इस्लामोफोबिया जैसी धारणा को खत्म किया जाएगा। वह हर जगह कश्मीर के मुसलमानों की चिंता करते दिखे, लेकिन न्यूयॉर्क के एक कार्यक्रम में जब उनसे चीन में बंदी बनाए गए लाखों उइगर मुसलमानों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने टालमटोल भरा जवाब दिया।

इमरान ने  की पाक की उजली तस्वीर दिखाने की कोशिश

इमरान ने संयुक्त राष्ट्र मंच से महात्मा गांधी की महानता का जिक्र किया, लेकिन इन्हीं गांधी जी के खिलाफ अगर किसी ने सबसे ज्यादा जहर घोला तो वह पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना थे। जिन्ना ने शायद ही कभी सोचा हो कि एक दिन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री गांधी नाम का सहारा संयुक्त राष्ट्र में लेगा। इमरान खान ने अमेरिका में पाकिस्तान की उजली तस्वीर दिखाने की कोशिश की, लेकिन वह इससे अनजान दिखे कि मुल्क को मौजूदा अंधकार से बाहर निकालने के लिए उन्हें सकारात्मक रवैया अपनाना होगा। उन्हें हिंसक विचारधारा और घृणा को पूरी तरह से समाप्त करना होगा।

पाक के लिए सबसे बड़ा खतरा खुद उसकी नीतियां हैैं

कम से कम यह तो इमरान को समझना ही होगा कि नफरत की राजनीति पाकिस्तान को कहीं नहीं ले जाएगी। एक नकारात्मक दृष्टिकोण कभी भी सकारात्मक परिणाम नहीं दे सकता और पाकिस्तान इसका ही प्रमाण है। पाकिस्तान को यह समझ आए तो बेहतर कि भारत उसके लिए सबसे अनुकूल सहयोगी साबित हो सकता है। यह तभी होगा जब पाकिस्तान भारत को अपने लिए सबसे बड़ा खतरा मानने की सनक से मुक्त होगा। उसे पता होना चाहिए कि पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा खतरा खुद उसकी नीतियां हैैं।

धर्म की गलत व्याख्या

इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र में इस्लाम और मुसलमान की दुहाई तो दी, लेकिन ऐसा करते समय उन्हें यह याद नहीं रहा कि इस्लाम में नकारात्मक सोच और हिंसात्मक रवैये के लिए कोई स्थान नहीं। पाकिस्तानी नेतृत्व ने पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का पालन करने के बजाय हमेशा अपने निहित स्वार्थों के अनुरूप धर्म की गलत व्याख्या की है। यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस पर कभी किसी उलमा का फतवा नहीं आया।

शिकायतों, धमकियों से भरा पाक पीएम का यूएन में भाषण

संयुक्त राष्ट्र महासभा में इमरान खान ने अपने भाषण को पूरी तरह इस्लामी रंग देने की कोशिश की। यह कोशिश इस्लामी सिद्धांतों के खिलाफ थी। इस वैश्विक मंच पर उनका संबोधन सिर्फ शिकायतों, शिकवों और धमकियों से भरा हुआ था, जबकि पैगंबर साहब के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके पड़ोसियों को उससे कोई नुकसान न पहुंचे।

पाक को त्यागनी होगी नफरत भरी विचारधारा

वास्तव में इस्लाम में लोगों को केवल दो समूहों-दोस्त और संभावित दोस्त में वर्गीकृत किया गया है। इस परिभाषा के अनुसार कोई भी आपका दुश्मन नहीं है। यदि पाकिस्तान अपना और दक्षिण एशिया का भविष्य बेहतर बनाना चाहता है तो यह जरूरी है कि वह अपनी नफरत भरी विचारधारा त्याग कर इस्लाम की सच्ची शिक्षाओं को अपनाए। यह बदलाव कोई टीवी चैनल नहीं ला सकता।

कश्मीर के मुसलमानों पर आंसू, पाक के मुसलमानों की कोई चिंता नहीं

क्या यह अजीब नहीं कि इमरान खान कश्मीर के मुसलमानों पर तो आंसू बहा रहे हैैं, लेकिन यमन, फलस्तीन, म्यांमार और चीन के मुसलमानों की दयनीय दशा पर एक शब्द भी नहीं कहना चाहते। क्या तुर्की, मलेशिया और पाकिस्तान का टीवी चैनल इन देशों के मुसलमानों की भी चिंता करेगा? एक सवाल यह भी कि क्या कश्मीरियों की चिंता में दुबले हो रहे इमरान खान अपने देश के पख्तूनों, शियाओं, अहमदियों की हालत पर भी गौर फरमाएंगे? पाकिस्तान को यह समझ आना चाहिए कि वह जिस दुष्चक्र में फंस चुका है वह उसे तब तक नहीं तोड़ सकता जब तक उसकी सेना और खुफिया एजेंसियां आतंकियों को संरक्षण देती रहेंगी।

( लेखक इस्लामिक मामलों के जानकार हैैं )