[ तरुण विजय ]: चंद दिनों पहले हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने जबरन, बहकाकर या फिर शादी करके धर्मांतरण कराने के खिलाफ एक विधेयक पारित किया। इस विधेयक का कई विपक्षी नेताओं ने भी समर्थन किया। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के अनुसार धर्मांतरण विरोधी नया कानून इसलिए जरूरी हो गया था, क्योंकि राज्य के कुछ हिस्सों और खासकर रामपुर एवं किन्नौर में जबरन धर्मांतरण के मामले बढ़ते जा रहे थे, लेकिन इस तरह के मामले देश के अन्य हिस्सों में भी बढ़ते जा रहे हैैं। कुछ राज्यों में तो धर्मांतरण की गति काफी तेज है। ऐसे राज्यों में ओडिशा की गिनती खास तौर पर होती है।

गरीबी से त्रस्त जनजातियों का धर्मांतरण

ओडिशा के गांवों में भूख, गरीबी, बदहाली के कारण त्रस्त जनजातियों का बड़ी संख्या में धर्मांतरण पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है। जहां ईसाई पादरी विदेशी धन का इस्तेमाल कर अपना खूब विस्तार करते हैैं वहीं हिंदू जागरण में लगे संतों को धन एवं कार्यकर्ताओं की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। आम तौर पर राजनीति में सक्रिय लोग हिंदू धर्म के निमित्त साथ देने से कतराते हैैं और ईसाई मतों को प्राप्त करने के लिए धर्मांतरण में लिप्त प्रभावशाली चर्च से राजनीतिक मित्रता लाभप्रद मानते हैैं। इसी ओडिशा में करीब दस वर्ष पहले जन्माष्टमी के दिन संत स्वामी लक्ष्मणानंद जी की हत्या इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि वे जनजातियों और अनुसूचित जातियों के धर्मांतरण का विरोध कर रहे थे।

हिंदू जनजातियों का धर्मांतरण

हिंदुओं और खासकर जनजातियों का धर्मांतरण वस्तुत: जिहादी हमलों से बड़ा षड्यंत्र है। धर्मांतरण में लगे ईसाई प्रचारक आक्रामकता के साथ हिंदू देवी-देवताओं, धार्मिक परंपराओं और पूजा-पद्धतियों का अपमान करते हैैं। वे भारत की सदियों पुरानी सभ्यता-धारा को भुलाने पर नव-धर्मांतरितों को विवश करते हैैं और उन्हें अपने ही पूर्वजों के विरुद्ध विष-वमन के लिए तैयार करते हैैं। हिंदुओं पर सलीबी आक्रमण इतना बढ़ा है कि गत दिनों तिरुपति बाला जी के मंदिर की आय से विदेश यात्रा की तैयारी की गई।

तिरुपति मंदिर व्यवस्था का भार ईसाई नेता के हाथों में

विश्वविख्यात तिरुपति मंदिर व्यवस्था का भार ईसाई नेता जगनमोहन रेड्डी के हाथों में है, जिन्होंने हाल में एक समारोह में दीप प्रज्ज्वलन से मना कर दिया था। कांची में अति वरदराज (औदुंबर काष्ठ से निर्मित विष्णु प्रतिमा) जिनके प्रति 40 वर्ष बाद दर्शन होते हैैं, के लिए एक करोड़ से ज्यादा हिंदुओं का आगमन होता है। इसे देखते हुए वहीं के एक ईसाई चर्च ने अति वरदराज की तरह से अति जीसस की प्रतिमा लगाकर लोगोंं को आकृष्ट करना प्रारंभ किया। इसके साथ-साथ तमिलनाडु में हिंदू प्रतीक चिन्हों को चर्च में स्थापित कर हिंदू लोगों को भ्रमित करने के प्रयास चल रहे हैैं जैसे मंदिर ध्वज स्तंभ की प्रतिकृति चर्च प्रांगण में लाना, मदर मेरी की गोद में बाल जीसस को कृष्ण-यशोदा की तरह दिखाना, कुरुक्षेत्र रण में रथ पर जीसस को कृष्ण की तरह सवार दिखाना।

धर्मांतरण प्रक्रिया को हिंदुओं के खिलाफ क्रूर हिंसा

स्वामी दयानंद सरस्वती ने ईसाई धर्मांतरण प्रक्रिया को हिंदुओं के खिलाफ क्रूर हिंसा बताया था। ईसाई प्रचारक हिंदू देवी-देवताओं राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा के विरुद्ध अपशब्द और अत्यंत घृणास्पद बातों का प्रसार कर नव-धर्मांतरण का अभियान चलाते हैैं। हाल में अरुणाचल प्रदेश के एक वरिष्ठ सत्तासीन नेता ने मुझे बताया कि वहां कभी पांच प्रतिशत ईसाई भी नहीं थे। आज अस्सी प्रतिशत के लगभग ईसाई हो गए हैैं। जो जनजातीय युवा ईसाई बन जाते हैैं, वे अपने माता-पिता और उनकी परंपराओं की खिल्ली उड़ाते हैैं। अरुणाचल यदि अपनी मूल पहचान खो दे, गांवों के त्योहार, भाषा-भूषा पर रोमन रंग चढ़ जाए तो क्या इससे बढ़कर एक समाज और जाति पर कोई दूसरा बदरंग हमला हो सकता है?

धर्मांतरण के मुख्य केंद्र ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड

ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर पूर्वांचल के आठ राज्य, उत्तराखंड के कई क्षेत्र, तमिलनाडु और आंध्र ईसाई धर्मांतरण के मुख्य केंद्र बने हैैं। यहां हर पिन कोड पर चर्च तथा धर्मांतरण केंद्र खुल गए हैैं। इन राज्यों में भी धर्मांतरण विरोधी कानून आवश्यक हैैं, क्योंकि यदि कोई भी भारतीय सभ्यता के पक्ष में बोलता है तो ईसाई देशों के वित्त से पोषित एनजीओ मीडिया के माध्यम से विरोध का वातावरण बनाने में सफल रहते हैैं।

ईसाई एनजीओ सक्रिय

हर चुनाव के समय ईसाई चर्चों पर हमलों की झूठी खबरें, चर्च के आर्च बिशपों द्वारा खुलेआम बयान देकर हिंदू धर्म के प्रति निष्ठा रखने वाले दलों को हराने की अपीलें, 2019 के चुनावों में ईसाई बिशपों द्वारा मोदी को हराने के लिए खुलकर सक्रिय होना, ईसाई देशों द्वारा भारत में राष्ट्रीयतावादी सरकार के विरुद्ध किसी न किसी काल्पनिक भय का निर्माण करना चर्च की दीर्घकालिक योजनाओं के कुछ सार्वजनिक उदाहरण हैैं। रूसी सहायता से बन रहे परमाणु ऊर्जा निर्माण केंद्रों के विरुद्ध पर्यावरण की रक्षा के नाम पर जितने भी आंदोलन हुए उनके पीछे ईसाई एनजीओ सक्रिय थे। यह स्वयं कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में मंत्री नारायण सामी (वर्तमान में वे पुदुचेरी के मुख्यमंत्री) ने स्वीकार किया था।

धर्म पर आघातों के प्रति उदासीनता

कुबेर समान संपदा वाले अनेक संत-महात्माओं के पांच सितारा आश्रम हिंदू रक्षा, धर्मांतरण के विरुद्ध मोर्चाबंदी और धर्म पर आघातों के प्रति उदासीन दिखते हैैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, गायत्री परिवार आदि संगठन जाति-भेद का विरोध करते हुए हिंदू गौरव और धर्मरक्षण की बात ही नहीं करते, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं को हिंदू आस्था दृढ़ करने के प्रयासों में जुटाते हैैं। ईसाई विद्यालयों, संगठनों को संबल और दांन हिंदू उद्योगपतियों, नेताओं और राजनेताओं से ही मिलता है।

भारत को अभारत बनाने का षड्यंत्र

हिंदू समाज को भीतर से खोखला कर स्वामी लक्ष्मणानंद जी जैसे संतों के काम से डरकर उन्हें मार डालना भारत को अभारत बनाने के षड्यंत्र का भाग है। यह धर्म को क्षत-विक्षत कर उसके अनुयायी कम करने का ऐसा षड्यंत्र है जो देश की जड़ों पर अभूतपूर्व हमला है। देश में जनजातीय समाज आठ प्रतिशत है, लेकिन 90 प्रतिशत उग्रवाद, विद्रोह, सामाजिक असंतोष इन्हीं जनजातीय क्षेत्रों में क्यों हैैं? सवाल यह भी है कि हर विद्रोही संगठन, नक्सली हिंसा को ईसाई एनजीओ-चर्च का समर्थन क्यों मिलता है?

चर्च नियंत्रण विद्यालयों में सुभाषचंद्र बोस के चित्र नहीं लगते

क्यों उत्तर-पूर्वांचल के जनजातियों की बोलियों की लिपियों को रोमन में करने को चर्च तत्पर रहता है और देवनागरी अपनाना उसे हिंदूकरण लगता है? क्यों चर्च नियंत्रण के विद्यालयों में शिवाजी, रानी गाइदिन्ल्यू, सुभाषचंद्र बोस के चित्र नहीं लगते और मेहंदी, बिंदी, राखी पर पाबंदी रहती है? यह विडंबना ही है कि तमाम हिंदू इन हमलों से उदासीन सड़क, पानी, बिजली को राष्ट्रीयता मान बैठे हैैं।

( लेखक राज्यसभा के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैैं )