अभिजीत। Migrant Laborers In Gulf Countries खाड़ी देशों में प्रवासी मजदूरों के प्रबंधन को लेकर चर्चाएं अक्सर होती रहती हैं। इसी कड़ी में देखें तो एक बड़ा कदम अभी कुवैत ने उठाया है। कुवैत की नेशनल असेंबली के विधि एवं विधायिका समिति ने प्रवासी मजदूरों की संख्या को नियंत्रित करने वाले कानून के प्रारूप को हाल ही में मंजूरी दे दी और इसे कुवैत के संविधान और कानून के दायरे में बताया है। इसे अगले कुछ दिनों में नेशनल असेंबली के सामने रखा जाएगा। इस कानून को लाने के पीछे तर्क यह है कि कुवैत की जनसंख्या मूल निवासी और प्रवासियों के मामले में असंतुलित है जिसे ठीक करने की जरूरत है। अभी कुवैत की कुल जनसंख्या का करीब 70 फीसद भाग प्रवासियों का है और बस करीब 30 फीसद लोग ही वहां के मूल निवासी हैं।

आने वाले वर्षों में विदेशी मजदूरों की संख्या में व्यापक कमी आएगी: कुवैत के प्रधानमंत्री के अनुसार प्रवासियों की संख्या को घटा कर 30 फीसद करना उनका लक्ष्य है। यह विधेयक उसी दिशा में एक कदम है और इसके कानून बनने के बाद दूसरे देश से आए लोगों की अधिकतम संख्या की सीमा तय की जाएगी और वर्तमान संख्या, जो उससे काफी अधिक है, धीरे-धीरे उनको तय सीमा के अंदर लाया जाएगा। इस विधेयक में कुल संख्या तय करने के साथ ही अलग-अलग देशों को लेकर एक कोटा का प्रावधान भी है। उदाहरण के तौर पर भारत के कामगारों की संख्या कुवैत की कुल जनसंख्या के 15 फीसद से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। इसमें आगे क्या फेरबदल होंगे यह अभी निश्चित भले न हो, लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इस कानून के बनने से आने वाले वर्षों में विदेशी मजदूरों की संख्या में व्यापक कमी आएगी। आज प्रवासी कामगार उन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं जहां या तो उनके पास कुशल लोग नहीं हैं या वहां जहां कुवैती काम करना नहीं चाहते।

सऊदी अरब में भी संभावित : सऊदी अरब में भी इस तरह के कानून बनाने को लेकर चर्चा होती रही है। सऊदी अरब में कुछ वर्ष पहले 'निताकत कानून' लाया गया था जिसमें कंपनियों को कहा गया था कि उन्हें कुल कामगारों का कम से कम 10 फीसद वहां के नागरिक को रखना होगा। लेकिन सऊदी अरब ने अभी तक इस संदर्भ में कठोर कदम नहीं उठाया है। ऐसे में कुवैत के नीति निर्माताओं को भी यह सोचना चाहिए कि क्या यह कानून उनके भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रख रहा है या नहीं?

खाड़ी देशों में रोजगार के ज्यादा अवसर और ज्यादा वेतन के कारण पहले तो वहां केरल और तमिलनाडु से ही लोग गए, लेकिन धीरे-धीरे बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से भी लोग वहां जाने लगे। अभी कुवैत की कुल जनसंख्या 42.7 लाख के करीब है जिसमें भारत के लोगों की संख्या सबसे ज्यादा लगभग 9.6 लाख है। इस विधेयक के कानून बनते ही इसका प्रभाव भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। जानकारों के अनुसार इस विधेयक के पास हो जाने के बाद आने वाले कुछ वर्षों में करीब आठ लाख भारतीय कामगारों को कुवैत छोड़ना पड़ेगा। इसका एक बड़ा प्रभाव पूरे देश और खास तौर पर केरल, तमिलनाडु, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे

राज्यों पर पड़ेगा जहां से ये कामगार बड़ी संख्या में जाते हैं। मुख्य रूप से इसके दो प्रभाव होंगे, पहला कुवैत से मिलने वाले रेमिटेंस में कमी आएगी।

अगर 2018 के आंकड़ों को देखें तो भारत को कुल करीब 80 अरब डॉलर रेमिटेंस के रूप में मिले जिसमें से अकेले कुवैत से ही करीब 4.8 अरब डॉलर मिला। स्थानीय विकास में इस रकम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। केरल का उदाहरण हम सबके सामने है कि किस तरह से वहां के विकास में रेमिटेंस का एक बड़ा योगदान रहा है। बीते कुछ वर्षों में बिहार के भी जिन जिलों से कामगार कुवैत गए हैं, वहां भी अब इसका प्रभाव देखा जाने लगा है। इसका दूसरा प्रभाव यह होगा कि आने वाले समय में बड़ी संख्या में बेरोजगार हुए कामगार वापस अपने-अपने गृह राज्य लौटेंगे। यह जहां एक तरफ बेरोजगारों की संख्या को बढ़ाएगा, वहीं श्रम बाजार में भी असंतुलन उत्पन्न करेगा।

अमेरिका में भी भारतीय प्रवासियों पर असर : इसी तरह पिछले महीने अमेरिका ने भी एक एग्जीक्यूटिव निर्देश के जरिये वीसा के कई श्रेणियों में रोक लगा दी थी। यह रोक इस वर्ष के लिए लगाया गया है। इसका एक बड़ा प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा। अमेरिका में भारतीय अमेरिकियों की संख्या करीब तीस लाख है। एक आंकड़े के अनुसार 2004 और 2012 के बीच जारी किए गए करीब पांच लाख एच वन बी श्रेणी का वीसा भारतीयों ने लिया था। यह वीजा ऐसे लोगों को जारी किया जाता है जो विशेष कार्य, शोध या विकास के महत्वपूर्ण कार्यों में लगे हैं। साथ ही यह वीजाधारक कुशल श्रेणी में आते हैं और अच्छे वेतन वाले कार्यों में कार्यरत होते हैं, जैसे इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक और प्रोफेसर आदि। वर्तमान में करीब 70 फीसद एच वन बी वीजाधारक भारतीय हैं। वीजा के निलंबन को लेकर कुछ दिनों पहले ही भारतीयों के एक समूह ने वाशिंगटन में प्रदर्शन किया था। इस निलंबन का असर न सिर्फ इन लोगों पर, बल्कि अमेरिका और भारत की भी कई बड़ी कंपनियों, खास तौर पर प्रौद्योगिकी क्षेत्र की कंपनियों पर भी पड़ेगा।

वर्ष 2018 में सेवा क्षेत्र की भारतीय कंपनियों ने 29.6 बिलियन डॉलर का कार्य अमेरिका के लिए किया था। माइग्रेशन पॉलिसी इंस्टीट्यूट के अनुसार विश्व से करीब 2,19,000 लोगों को वीजा पर लगाए गए रोक का नुकसान उठाना पड़ेगा। काफी कंपनियों ने निलंबन के मद्देनजर नियुक्तियों को रोक दिया है। दूसरी ओर कुशल भारतीय प्रवासियों के अमेरिका पलायन को ब्रेन ड्रेन के तौर पर भी देखा जाता था, ऐसे में इस निलंबन से वहां जाने की प्रवृत्ति में भी कमी आएगी। इसका बेहतर नियोजन हो तो यह हमारे देश के लिए अच्छा होगा। कुशल कामगारों की तलाश में कंपनियों को यहां आना होगा जिससे नए अवसर भी आएंगे।

[शोधार्थी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]